thandi dhoop…jalti chhaon
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एक दोस्त बाद-ए-सबा का पहला झोंका महसूस हुआ था, दिखा नहीं था बाद-ए-सबा से उठती ख़ुश्बू मुझको ख़ूब ही भायी थी बाद-ए-सबा में ऐसा क्या था किसकी ख़बर वो लायी थी नसीम-ए-सहर जैसी ही है वो एक दोस्त भी है, अंजान भी है अल्फ़ाज़ से उसके जानूं उसको लहजे से भी पहचानूं उसको क़लम हाथ में थामे जब वो क्या नक़्श उभारा करती है जब भी लिखे कोई अफ़साना वो रूहों को सँवारा करती है ख़्वाब में अपने जीने वाली आँसू भी संभाला करती है कोई झोंका हवा का आया इक दिन एक दोस्त भी साथ में लाया इक दिन हर बात में कैसे हँस देती है कितने ग़म हैं, सह लेती है सबकी ख़ातिर जाने कितने किरदारों में रह लेती है डर लगता है मुझको अकसर शायद अब कहना है बेहतर डर लगता है मुझको अकसर ख़ुद को कहीं न खो बैठे वो अपने ख़्वाब की सारी परियाँ कहीं किसी दिन हार न जाएँ नाम आँखों की दहलीज़ों के कहीं किसी दिन पार न जाए जी में आता है मैं कह दूँ सुनो ज़रा तुम जी भर रो लो आँखों में है क़ैद जो दरिया सुनो ज़रा तुम उसे भी खोलो किरदारों के ख़ोल उतारो एक दिन अपना जीवन जी लो लेकिन ये सब तल्ख़ सी बातें कैसे उस से एक दम कह दूँ दोस्त भी है, अंजान भी है वो सोचता हूँ मैं तन्हा बैठा ये सब बातें रहने भी दूँ कोई लतीफ़ा आज सुनाऊँ उसको फिर मैं ख़ूब हँसाऊँ लेकिन फिर ये डर है मुझको कहीं अगर वो जी भर हँस ले उसका जी फिर भर न आए बाँध के रखा है जो अब तक वो दरिया कहीं बह न जाए बाद-ए-सबा का पहला झोंका अगली सुबह कहीं नम न आए!