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हरे कृष्ण कल शनिवार एकादशी है। विस्तृत मैसेज बाद में करता हूँ।

हरे कृष्ण शनिवार, *जया/भैमी एकादशी* *पारणा:* रविवार सुबह 7:16 से 10:59 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात 7:29 से 11:08 राजकोट, जामनगर, द्वारका *Telegram* http://t.me/Ekaadashi *Whatsapp Channel* https://whatsapp.com/channel/0029Va4KSdn2v1Irozh52O0r *Whatsapp* https://chat.whatsapp.com/JvWM4Ckqz0A1JqhN0SkCUC

हरे कृष्ण शनिवार, *जया/भैमी एकादशी* *पारणा:* रविवार सुबह 7:16 से 10:59 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात 7:29 से 11:08 राजकोट, जामनगर, द्वारका Telegram http://t.me/Ekaadashi Whatsapp Channel https://whatsapp.com/channel/0029Va4KSdn2v1Irozh52O0r Whatsapp https://chat.whatsapp.com/JvWM4Ckqz0A1JqhN0SkCUC युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा: भगवन्! कृपा करके यह बताइये कि माघ मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है, उसकी विधि क्या है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजेन्द्र! माघ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका नाम ‘जया’ है। वह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है। पवित्र होने के साथ ही पापों का नाश करनेवाली तथा मनुष्यों को भाग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है। इतना ही नहीं, वह ब्रह्महत्या जैसे पाप तथा पिशाचत्व का भी विनाश करनेवाली है। इसका व्रत करने पर मनुष्यों को कभी प्रेतयोनि में नहीं जाना पड़ता। इसलिए राजन्! प्रयत्नपूर्वक ‘जया’ नाम की एकादशी का व्रत करना चाहिए। एक समय की बात है। स्वर्गलोक में देवराज इन्द्र राज्य करते थे। देवगण पारिजात वृक्षों से युक्त नंदनवन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। पचास करोड़ गन्धर्वों के नायक देवराज इन्द्र ने स्वेच्छानुसार वन में विहार करते हुए बड़े हर्ष के साथ नृत्य का आयोजन किया। गन्धर्व उसमें गान कर रहे थे, जिनमें पुष्पदन्त, चित्रसेन तथा उसका पुत्र - ये तीन प्रधान थे। चित्रसेन की स्त्री का नाम मालिनी था। मालिनी से एक कन्या उत्पन्न हुई थी, जो पुष्पवन्ती के नाम से विख्यात थी। पुष्पदन्त गन्धर्व का एक पुत्र था, जिसको लोग माल्यवान कहते थे। माल्यवान पुष्पवन्ती के रुप पर अत्यन्त मोहित था। ये दोनों भी इन्द्र के संतोषार्थ नृत्य करने के लिए आये थे। इन दोनों का गान हो रहा था। इनके साथ अप्सराएँ भी थीं। परस्पर अनुराग के कारण ये दोनों मोह के वशीभूत हो गये। चित्त में भ्रान्ति आ गयी इसलिए वे शुद्ध गान न गा सके। कभी ताल भंग हो जाता था तो कभी गीत बंद हो जाता था। इन्द्र ने इस प्रमाद पर विचार किया और इसे अपना अपमान समझकर वे कुपित हो गये। अत: इन दोनों को शाप देते हुए बोले: ‘ओ मूर्खो! तुम दोनों को धिक्कार है! तुम लोग पतित और मेरी आज्ञाभंग करनेवाले हो, अत: पति पत्नी के रुप में रहते हुए पिशाच हो जाओ।’ इन्द्र के इस प्रकार शाप देने पर इन दोनों के मन में बड़ा दु:ख हुआ। वे हिमालय पर्वत पर चले गये और पिशाचयोनि को पाकर भयंकर दु:ख भोगने लगे। शारीरिक पातक से उत्पन्न ताप से पीड़ित होकर दोनों ही पर्वत की कन्दराओं में विचरते रहते थे। एक दिन पिशाच ने अपनी पत्नी पिशाची से कहा: ‘हमने कौन सा पाप किया है, जिससे यह पिशाचयोनि प्राप्त हुई है? नरक का कष्ट अत्यन्त भयंकर है तथा पिशाचयोनि भी बहुत दु:ख देनेवाली है। अत: पूर्ण प्रयत्न करके पाप से बचना चाहिए।’ इस प्रकार चिन्तामग्न होकर वे दोनों दु:ख के कारण सूखते जा रहे थे। दैवयोग से उन्हें माघ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी की तिथि प्राप्त हो गयी। ‘जया’ नाम से विख्यात वह तिथि सब तिथियों में उत्तम है। उस दिन उन दोनों ने सब प्रकार के आहार त्याग दिये, जल पान तक नहीं किया। किसी जीव की हिंसा नहीं की, यहाँ तक कि खाने के लिए फल तक नहीं काटा। निरन्तर दु:ख से युक्त होकर वे एक पीपल के समीप बैठे रहे। सूर्यास्त हो गया। उनके प्राण हर लेने वाली भयंकर रात्रि उपस्थित हुई। उन्हें नींद नहीं आयी। वे रति या और कोई सुख भी नहीं पा सके। सूर्यादय हुआ, द्वादशी का दिन आया। इस प्रकार उस पिशाच दंपति के द्वारा ‘जया’ के उत्तम व्रत का पालन हो गया। उन्होंने रात में जागरण भी किया था। उस व्रत के प्रभाव से तथा भगवान विष्णु की शक्ति से उन दोनों का पिशाचत्व दूर हो गया। पुष्पवन्ती और माल्यवान अपने पूर्वरुप में आ गये। उनके हृदय में वही पुराना स्नेह उमड़ रहा था। उनके शरीर पर पहले जैसे ही अलंकार शोभा पा रहे थे। वे दोनों मनोहर रुप धारण करके विमान पर बैठे और स्वर्गलोक में चले गये। वहाँ देवराज इन्द्र के सामने जाकर दोनों ने बड़ी प्रसन्नता के साथ उन्हें प्रणाम किया। उन्हें इस रुप में उपस्थित देखकर इन्द्र को बड़ा विस्मय हुआ! उन्होंने पूछा: ‘बताओ, किस पुण्य के प्रभाव से तुम दोनों का पिशाचत्व दूर हुआ है? तुम मेरे शाप को प्राप्त हो चुके थे, फिर किस देवता ने तुम्हें उससे छुटकारा दिलाया है?’ माल्यवान बोला: स्वामिन्! भगवान वासुदेव की कृपा तथा ‘जया’ नामक एकादशी के व्रत से हमारा पिशाचत्व दूर हुआ है। इन्द्र ने कहा: तो अब तुम दोनों मेरे कहने से सुधापान करो। जो लोग एकादशी के व्रत में तत्पर और भगवान श्रीकृष्ण के शरणागत होते हैं, वे हमारे भी पूजनीय होते हैं। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन्! इस कारण एकादशी का व्रत करना चाहिए। नृपश्रेष्ठ! ‘जया’ ब्रह्महत्या का पाप भी दूर करनेवाली है। जिसने ‘जया’ का व्रत किया है, उसने सब प्रकार के दान दे दिये और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया। इस माहात्म्य के पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है।

हरे कृष्ण कल सोमवार एकादशी है। विस्तृत मैसेज बाद में करता हूँ।

हरे कृष्ण सोमवार, *विजया एकादशी* *पारणा:* मंगलवार सुबह 7:05 से 10:54 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात 7:11 से 11:04 राजकोट, जामनगर, द्वारका Telegram http://t.me/Ekaadashi Whatsapp Channel https://whatsapp.com/channel/0029Va4KSdn2v1Irozh52O0r Whatsapp https://chat.whatsapp.com/JvWM4Ckqz0A1JqhN0SkCUC युधिष्ठिर ने पूछा: हे वासुदेव! फाल्गुन (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार माघ) के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका व्रत करने की विधि क्या है? कृपा करके बताइये। भगवान श्रीकृष्ण बोले: युधिष्ठिर! एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से फाल्गुन के कृष्णपक्ष की ‘विजया एकादशी’ के व्रत से होनेवाले पुण्य के बारे में पूछा था तथा ब्रह्माजी ने इस व्रत के बारे में उन्हें जो कथा और विधि बतायी थी, उसे सुनो: ब्रह्माजी ने कहा: नारद! यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पाप नाशक है। यह एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्हें समुद्र को पार करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। उन्होंने लक्ष्मणजी से पूछा: ‘सुमित्रानन्दन! किस उपाय से इस समुद्र को पार किया जा सकता है? यह अत्यन्त अगाध और भयंकर जल जन्तुओं से भरा हुआ है। मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके।‘ लक्ष्मणजी बोले: हे प्रभु! आप ही आदिदेव और पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं। आपसे क्या छिपा है? यहाँ से आधे योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप में बकदाल्भ्य नामक मुनि रहते हैं। आप उन प्राचीन मुनीश्वर के पास जाकर उन्हींसे इसका उपाय पूछिये। श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्य के आश्रम पहुँचे और उन्होंने मुनि को प्रणाम किया। महर्षि ने प्रसन्न होकर श्रीरामजी के आगमन का कारण पूछा। श्रीरामचन्द्रजी बोले: ब्रह्मन्! मैं लंका पर चढ़ाई करने के उद्धेश्य से अपनी सेनासहित यहाँ आया हूँ। मुने! अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके, कृपा करके वह उपाय बताइये। बकदाल्भय मुनि ने कहा: हे श्रीरामजी! फाल्गुन के कृष्णपक्ष में जो ‘विजया’ नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी। निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे। राजन्! अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिये: दशमी के दिन सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टी का एक कलश स्थापित कर उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दें। उसके ऊपर भगवान नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें। फिर एकादशी के दिन प्रात: काल स्नान करें। कलश को पुन: स्थापित करें। माला, चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा विशेष रुप से उसका पूजन करें। कलश के ऊपर सप्तधान्य और जौ रखें। गन्ध, धूप, दीप और भाँति भाँति के नैवेघ से पूजन करें। कलश के सामने बैठकर उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा सारा दिन व्यतीत करें और रात में भी वहाँ जागरण करें। अखण्ड व्रत की सिद्धि के लिए घी का दीपक जलायें। फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप (नदी, झरने या पोखर के तट पर) स्थापित करें और उसकी विधिवत् पूजा करके देव प्रतिमासहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण के लिए दान कर दें। कलश के साथ ही और भी बड़े बड़े दान देने चाहिए। श्रीराम! आप अपने सेनापतियों के साथ इसी विधि से प्रयत्नपूर्वक ‘विजया एकादशी’ का व्रत कीजिये। इससे आपकी विजय होगी। ब्रह्माजी कहते हैं: नारद! यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजी ने मुनि के कथनानुसार उस समय ‘विजया एकादशी’ का व्रत किया। उस व्रत के करने से श्रीरामचन्द्रजी विजयी हुए। उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीता को प्राप्त किया। बेटा! जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं, उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! इस कारण ‘विजया’ का व्रत करना चाहिए। इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।

हरे कृष्ण सोमवार, *विजया एकादशी* *पारणा:* मंगलवार सुबह 7:05 से 10:54 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात 7:11 से 11:04 राजकोट, जामनगर, द्वारका Telegram http://t.me/Ekaadashi Whatsapp Channel https://whatsapp.com/channel/0029Va4KSdn2v1Irozh52O0r Whatsapp https://chat.whatsapp.com/JvWM4Ckqz0A1JqhN0SkCUC