
कविता कोश ❣️❣️
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हिंदी भाषा, भाषा ही नहीं जीवन की परिभाषा है। 🚩❣️🙏
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जीना चाहते हो? कठोर पाषाण को भेदकर, पाताल की छाती चीरकर अपना भाग्य संग्रह करो; वायुमंडल को चूमकर, झंझा-तूफ़ान को रगड़कर, अपना प्राप्य वसूल लो; आकाश को चूमकर, अवकाश की लहरी में झूमकर, उल्लास खींच लो। कुटज का यही उपदेश है— भित्वा पाषाणपिठरं छित्वा प्राभन्जनी व्यथाम्। पीत्वा पातालपानीयं कुटज श्चुम्बते नभः॥ दुरंत जीवन-शक्ति है। कठिन उपदेश है। जीना भी एक कला है। लेकिन कला ही नहीं, तपस्या है। जियो तो प्राण ढाल दो ज़िंदगी में, मन ढाल दो जीवनरस के उपकरणों में! ठीक है। कुटज हजारीप्रसाद द्विवेदी