
Aagam Rahasay(आगम-रहस्य)🔯✡️🕉️⚛️
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About Aagam Rahasay(आगम-रहस्य)🔯✡️🕉️⚛️
⭕Aagam Rahasay (The Screat Of Tantra) यह चैनल केवल उन साधकों के लिए है जो साधना के क्षेत्र में आगे बढना चाहते है और इस चैनल का मात्र एक ही उद्देश्य यह है कि आगम निगम शास्त्रों व भारतीय प्राचीनतम गुढ से गुढ विद्याओं का सही प्रमाणिक ज्ञान से साधकों को अवगत कराना है, और सही प्रमाणिक रूप से भारतीय साधनाओं का ज्ञान ,वेद,शास्त्रों, दर्शन, भक्ति, मीमांसा,ध्यान,योग,कुण्डलिनी जागरण, आयुर्वेद, अनुभूत साधनाओं के ज्ञान को साधकों के समक्ष प्रस्तुत करान और पुन: उसे उसका खोया हुआ सम्मान दिलाकर उस ऊंचाईयों तक पहुंचाना है जहां यह पहले था ! 📧किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए हमें ईमेल करें :- [email protected] 🌐निशुल्क साधना सीखने के लिए हमारे telegram group को ज्वाइन करें जिसे आप निम्न दिये गये लिंक के द्वारा join कर सकते है:- https://t.me/aagamrahasay 👉 गुप्त विद्याओं और सिद्धियों को नि:शुल्क सीखने के लिए हमारे whats app चैनल को follow करेंWhats Aap Page For Nishulak Sadhana Gyan Link:- https://whatsapp.com/channel/0029VaAxcne6xCSYhz1tHL3i ⭕Contact Numbe What's App:- 7018936948 Only for what's aap massage and calling for callme4 app ⭕ whats app massages timing 10:00am to 05:30pm 👉callme4 app id :- nikhilthakur@cm4 🔶Note:- निशुल्क मंत्र तंत्र यंत्र व साधनाओं और गुप्त विद्याओं -सिद्धियों को सीखने के लिये सम्पर्क करें """"" आगम रहस्य साधनापीठ """" द्वारा जन हित मे जारी Mob No. 7018936948
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🚥वशीकरण प्रशिक्षण paid ग्रुप (स्वयं करें और अपने पैसों और कीमत समय को बर्बाद होने से बतायें) आज के समय दुनिया में सौ में से नब्बे लोग वशीकरण करना और कराना चाहते है परंतु उन सब के सामने दिक्कत यह आती है कि वशीकरण करायें किससे या स्वयं हम खुद कैसे कर सकते है यह समस्या सभी व्यक्ति के साथ रहती ही है। अगर किसी तांत्रिक से करानें की कोशिस करें तो वह तांत्रिक ढग लेता है तरह तरह की पूजा अनुष्ठान आदि बताकर बहुत पैसा बताकर ढग लेता है और जब व्यक्ति पैसा दे देता है तो फिर ना तो काम हो पाता है और ना ही पैसा वापिस मिल पाता है तो व्यक्ति बहुत परेशान हो जाता है और ना ही फिर किसी तांत्रिक के ऊपर विश्वास कर पाता है तो ऐसे में क्या करें हम जिससे ना हमारा पैसा बर्बाद हो ना ही समय और हमारा काम भी हो जाये। आजकल वशीकरण का बोलवाला नवयुवक व नवयुवतियों के मध्य ज्यादा प्रचलन में है क्योकि आजकल नव युवक व नव युवती प्रेम में तो पड जाते है परंतु कुछ समय के बाद दोनों के रिश्ते में कमी आने लगती है या दोनों में कोई एक व्यक्ति एक दूसरे से बात करना बंद कर देता है और इससे उम्मीद जो लगा के रखी है वह टूट जाती है। तो फिर वह व्यक्ति तंत्र विद्या का सहारा लेने की कोशिस करता है और वशीकरण करने की तमाम नकाम कोशिस तमाम स्वयंभू बाबाओं और तांत्रिक से करवाने की कोशिस करते है जो सिर्फ पैसा लेकर आपका फायदा उठा लेते है। परंतु अब आप सभी घबराने की जरूरत नहीं है कि इस बार हम लोग आप सभी के लिए वशीकरण विद्या प्रशिक्षण ग्रुप के द्वारा पूर्ण वशीकरण विद्या को सिखायेंगे और साथ में ही आप सभी को वशीकरण के अनेक गोपनीय रहस्य को बतायेंगे तो अब आप सभी स्वयंभू तांत्रिकों व बाबाओं का चक्कर छोड़ कर इस प्रशिक्षण ग्रुप से जुडकर वशीकरण की विद्या को सीख कर अपने रिश्ते को सही मायने में एक नई दिशा दें। 🧭इस वशीकरण प्रशिक्षण ग्रुप में क्या क्या सिखाया व बताया जायेगा:- 1. वशीकरण क्या है और वशीकरण क्यों असफल होता है? वशीकरण की देवियों और शक्तियों का परिचय वशीकरण में प्रयुक्त होने वाली सामग्री, माला, आसन, दिशा, पूजा आदि का वर्णन वशीकरण करने के लिए क्या क्या करना चाहिए क्या वशीकरण करना सही है या गलत है. ❎वशीकरण के भारतीय मंत्र -तंत्र -यंत्र प्रयोग वशीकरण मंत्र सिद्धियां व प्रयोग(वेदोक्त, पुराणोक्त,शास्त्रोक्त,तांत्रोक्त व शाबरोक्त प्रयोग) :- इसमें फुल ,काजल, पुतली, सुपारी, लौंग, इत्र, पान, सुपारी, हवन, तिलक, कीमिया सिंदूर के साथ साथ देवी देवताओं के मंत्रों के साथ वशीकरण करने की साधनायें होगी । वशीकरण तंत्र सिद्धियां व प्रयोग (तांत्रोक्त, वनस्पति ,टोने टोटके व साधनाओं के दुर्लभ प्रयोग):- इसमें तंत्र साधनायें, तांत्रिक हवन, पुतली तंत्र, वनस्पतियों के द्वारा वशीकरण, ग्रामीण व शास्त्रोक्त टोने टोटके आदि के प्रयोग होंगे। वशीकरण यंत्र के प्रयोग( दुर्लभ देवी ,देवताओं के यंत्रों के द्वारा वशीकरण ) इसमें वशीकरण के सारे यंत्रों के प्रयोग, वशीकरण कवच आदि के सारे दुर्लभ प्रयोग होंगे ❎ वशीकरण के सुलेमानी मंत्र तंत्र यंत्र प्रयोग वशीकरण के गोपनीय अमल (दुर्लभ अमलों के आसान प्रयोग):- मोहब्बत का अमल, मोहब्बत का तिलस्म,हमजाद द्वारा वशीकरण का अमल,चुडियों द्वारा वशीकरण,गुलाब के फूल का अमल , इस्माईल जोगी का वशीकरण अमल इत्यादि अनेक प्रकार चमत्कारिक अमल बताये जायेंगे। वशीकरण के इस्लामिक नक्श :- इसमें इस्लामिक नक्शों के द्वारा वशीकरण के अनेकों प्रयोगों सरल तरीके से आप सभी को बताये जायेंगे जो चमत्कारिक है। वशीकरण का इस्लामिक तंत्र :- जिसमें वशीकरण के अनेक सरल तंत्र प्रयोग, टोने ,टोटके आदि बताये जायेंगे 🌚यह सब आप सभी को मिलेगा सिर्फ और सिर्फ वशीकरण विद्या प्रशिक्षण ग्रुप में सीखने को मिलेगा और कहीं नहीं मिलेगा। बस आप सभी को इस ग्रुप से जुडना है और जुडकर आप इन्हें अपने जीवन में उतारें।जितने प्रयोग बतायें जायेंगे उनमें से आप किसी भी प्रयोग को अपनी इच्छानुसार अपनी सुविधा के अनुसार कर सकते है। बस आप उचित और धर्म न्यायोचित कार्य के लिए इनका प्रयोग करें ।किसी गलत की भावना या लालच वश ना करें अन्यथा इसके दुष्परिणाम भी आपको ही भुगतने पडेंगे । 📧इस ग्रुप से कैसे जुडे:- इस ग्रुप से जुडने के लिए हमें मैसेज करना होगा और ध्यान रखें यह एक पैड paid ग्रुप है इसका शुल्क जमा करके आप जुड सकते है।मैं दावे के साथ कहता हूं कि इस ग्रुप से सीखकर आप भी वशीकरण करना सीख जाओगे तो देर किस बात की है जल्दी से जुड जायें और सीखकर आप अपना काम स्वयं करें। इस ग्रुप में बहुत कुछ आप सभी को सीखने को मिलेगा और यह ग्रुप क्लास बाईज रहेगा और एक अलग तरीके से आप सभी सिखाया जायेगा जैसे गुरूकुल या स्कूलों कॉलेजों में सीखाया जाता है और साथ ही प्रैक्टिकल तरीके आपको सीखाया जायेगा। 🙏नमो भगवती Whats app contact: - 7018936948

https://youtu.be/W0E7-VtMUrc?si=wNZmeP9czb57El0m

🤔मंत्र दीक्षा देने का अधिकार और किससे दीक्षा गृहण करनी चाहिये आज के समय को देखकर मैं हैरान और दंग हो जाता हूं क्योंकि आज आध्यात्म से लेकर साधना मार्ग भ्रांति से युक्त हो चुका है और शास्त्रों के जो नियम है उन्हें दर किनारे करके लोग मनमाने ढंग से अपने आपको और अपने आपको स्व:भूत गुरू घोषित करने पर तुले है।क्योंकि यह एक व्यवसाय और व्यापार बन गया है और अपने इस व्यापार व व्यावसाय को बढने के लिए तरह -तरह के प्रलोभन जनमानस के बीच परोस रहे है। जितना लुभावना व आकर्षक प्रलोभन होगा उसका व्यापार व व्यवसाय उतना ही तरक्की कर रहा है और जनमानस इन प्रलोभनों के चक्कर में स्वयं डुबोते जा रहे है। आजकल तो प्रत्येक स्त्री गुरू व आचार्य बन बैठी और प्रत्येक शुद्र लोग अपने को गुरू बना के दीक्षा प्रदान कर रहे है ।जिन्हें दीक्षा का वास्तविक ज्ञान ही नहीं है ना ही तंत्र ग्रंथों का वास्तविक ज्ञान है और लोग भी उनसे दीक्षा लेकर अपने जीवन को नरकागामी बना रहे है। दीक्षा लेने से पहले तो ग्रंथों, शास्त्रों व तंत्र ग्रंथों व तंत्र शास्त्रों का अध्ययन तो कर लो नहीं तो दीक्षा लेकर स्वयं को वर्णसंकर दीक्षित साधक बना बैठेंगे और अपने साथ साथ अपनी पढी को नरकागामी बना देंगे और अपने कुल का ही विनाश कर बैठेंगे आज मैं आपको दीक्षा से संबंधित कुछ गोपनीय बातों से अवगत करा रहा ताकि आप लोग सही मायने अपने जीवन को परमार्थ की ओर अग्रसर कर सके।केवल नाम के आगे बडी -बडी उपाधि व बडे बडे नाम को देखकर दीक्षा ना लें। स्वयं विचार करें और निर्णय लें दीक्षा देने का प्रचलन वैदिक ऋषियों ने प्रारंभ किया था प्राचीनकाल में पहले शिष्य और ब्राह्मण बनाने के लिए दीक्षा दी जाती थी। माता-पिता अपने बच्चों को जब शिक्षा के लिए भेजते थे तब भी दीक्षा दी जाती थी लेकिन आजकल हर कोई गुरु या बाबा बनकर अपने शिष्यों की संख्या बढ़ाने के लिए दीक्षा दे देता है शिष्य भी सभी सांसारिक और वह भी स्वार्थ सिद्ध करने हेतु दीक्षित हो जाते हैं हिन्दू धर्म में 64 प्रकार से दीक्षा दी जाती है। जैसे, समय दीक्षा, मार्ग दीक्षा, शाम्भवी दीक्षा, चक्र जागरण दीक्षा, विद्या दीक्षा, पूर्णाभिषेक दीक्षा, उपनयन दीक्षा, मंत्र दीक्षा, जिज्ञासु दीक्षा, कर्म संन्यास दीक्षा, पूर्ण संन्यास दीक्षा आदि। 📝दीक्षा के विषय में शास्त्रों में कहा गया है कि:- अदीक्षिता ये कुर्वन्ति जपपूजादिकाः क्रियाः । न भवन्ति प्रिये ! तेषां शिलायां न्यस्तबीजवत् ॥ देवि ! दीक्षाविहीनस्य न सिद्धिने च सद्गतिः । तस्मात्सर्वप्रयत्नेन गुरुणा दीक्षितो भवेत् ॥ अदीक्षितोऽपि मरणे रौरवं नरकं व्रजेत् । तस्माद्दीक्षां प्रयत्नेन गृह्णीयुः सर्वमानवाः ॥ (रुद्रयामल) 'समस्त जप और तप का मूल दीक्षा हो है, अतः मनुष्य जिस किसी भी आश्रम में रहता हुआ दीक्षा का आश्रय ग्रहण करके ही निवास करे । प्रिये ! जो मनुष्य अदीक्षित रहकर जप-पूजादि कार्य करते हैं, उनके किये हुए कार्य उसी प्रकार निष्फल होते हैं जिस प्रकार पत्थर पर बोये गये बोज निष्फल होते हैं। हे देवि ! दीक्षारहित मनुष्य की न तो सिद्धि होती है और न सद्गति ही होती है। अतः मनुष्य को सभी प्रकार से प्रयत्न कर गुरु से दीक्षा लेनी चाहिये । जो मनुष्य दीक्षाविहीन मरता है, उसे रौरव नरक की प्राप्ति होती है। अतः समस्त मनुष्यों को प्रयत्न कर दीक्षा ग्रहण करना चाहिये ।' 🙍दीक्षा की आवश्यकता समस्त आश्रमों में है। दीक्षा के बिना कोई भी आश्रम सफल नहीं हो सकता। अतः सभी आश्रमवालों को दीक्षा-ग्रहण करना चाहिये। दीक्षा ग्रहण करने से ही समस्त आश्रमों की मर्यादा सुरक्षित रह सकती है, अन्यथा नहीं । 🤚दीक्षा ग्रहण करना यह भी एक प्रकार का धार्मिक व्रत है। इस धार्मिक व्रत को धारण करनेवाला मनुष्य ही धार्मिक कहलाता है। धार्मिक मनुष्य ही दीक्षारूपी धार्मिक व्रत के यथार्थ तत्त्व और महत्त्व को जानकर दीक्षा ग्रहण करता है। दीक्षा ग्रहण करने के लिये मनुष्य में पूर्वजन्मार्जित पुण्य की विशेष आवश्यकता है। अतः जिस मनुष्य में पूर्वजन्मार्जितः विशेष पुण्य सञ्चित रहते हैं, वही गुरु के द्वारा दीक्षा-ग्रहण करता है 'अनेकजन्मपुण्योधैर्दीक्षितो जायते नरः ।' जिस प्रकार अनुपनीत द्विजातियों को वेदाध्ययन और वेदोक्त कर्म आदि करने का अधिकार नहीं है, उसी प्रकार दीक्षा ग्रहण न करने-वाले अदीक्षितों को भी भगवन्नाम-मन्त्र और देवपूजन आदि करने का अधिकार नहीं है। अतः द्विजाति को गुरु के द्वारा दीक्षा ग्रहण कर अपने को सुसंस्कृत करना चाहिये । द्विजानामनुपनेतानां स्वकर्माध्ययनादिषु । यथाधिकारो नास्तीह स्याच्चोपनयनादनु ।। तथाचादीक्षितानां च मन्त्रदेवार्चनादिषु । नाधिकारोऽस्त्यतः कुर्यादात्मानं शिवसंस्कृतम् ॥ 📓 गृहस्थ को गृहस्थ गुरू को ही दीक्षा देने का अधिकार है? (अघोरी, संन्यासी, वैरागी, शुद्र ,स्त्री,कन्या,नाथपंथी या अपने से निम्न जाति से किसी भी गृहस्थ को दीक्षा नहीं लेनी चाहिये। गृहस्थ साधक को सदचित धार्मिक प्रकाण्ड नित नियमी कर्मकांड करने वाले ब्राह्मण या उच्च जाति के गुणवान,धर्मी, विद्वान,नियत नियम करने वाला ईश्वरीय उपासना करने वाले गृहस्थ साधक से दीक्षा लेनी चाहिये ) वेदादि समस्त शास्त्रों में 'ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत्' (शुक्लयजु-र्वेद ३११११), 'ब्राह्मणो मामकी तनुः' (वामनपुराण ६५।८), 'वर्णानां ब्राह्मणः प्रभुः' (मनुस्मृति १०।३) इत्यादि वचनों के द्वारा ब्राह्मणों का विशेष महत्त्व कहा गया है। ब्राह्मणों के विशिष्ट महत्त्व के कारण ही सभी शास्त्रकारों ने ब्राह्मणों को 'जगद्गुरु' की उपाधि प्रदान की है। अतएव जगद्गुरु ब्राह्मण को चारों वर्णों का 'गुरु' कहा गया है- वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः । (पद्मपुराण, स्वर्गखण्ड ५२।५१) वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः । (ब्रह्मवैवर्तपुराण, गौतमीमाहात्म्य १००४७) वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः । (ब्रह्मपुराण ८०/४७) वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः । (चाणक्यनीति ५।१) 'ब्राह्मणो वै गुरुनृणाम् (हरिभक्तिविलास )१३ ब्राह्मणाः सर्ववर्णानां गुरुरेव द्विजोत्तम । (पद्मपुराण, ब्रह्मखण्ड १४।२) गुरुर्हि सर्ववर्णानां ज्येष्ठः श्रेष्ठश्च वै द्विजः । (महाभारत, शान्ति-पर्व ७२।११) सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने ब्राह्मण में ही गुरुत्व की स्थापना की है, अन्य वर्षों में नहीं की। अतः ब्राह्मण ही चारों वर्णों के गुरु बनने के अधि-कारी हैं। इसलिये चारों वर्णों को उचित है कि वे ब्राह्मण को ही अपना गुरु बनावें । विप्रो विप्रेतरगुरुर्न विप्रो जायते ध्रुवम् । न च विप्रेषु पूजार्हस्तस्माद् विप्रं गुरुं चरेत् ॥ (कौशिकसंहिता) 'ब्राह्मण ब्राह्मण से इतर वर्णं का अर्थात् क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और ब्राह्मण का भी गुरु हो सकता है। निश्चय ही ब्राह्मणेतर किसी का गुरु नहीं हो सकता और न वह ब्राह्मणों के मध्य में पूजा के योग्य हो सकता है। अतः ब्राह्मण को ही गुरु बनाना चाहिये।' धर्माचार्यों ने समस्त वर्षों में गृहस्थ ब्राह्मण को ही श्रेष्ठ गुरु कहा है- 'गृहस्थः सर्ववर्णेषु श्रेष्ठो गुरुरुदाहृतः ।' (सिद्धान्तशेखर) 'सर्वशास्त्रार्थवेत्ता च गृहस्थो गुरुरुच्यते ।' (ज्ञानार्णवे, कुलार्णवे च) १. महाभागवतश्रेष्ठो ब्राह्मणो वै गुरुर्नृणाम् । सर्वेषामेव लोकानामसौ पूज्यों यथा हरिः ॥ (हरिभक्तिविलास ) 'महाभागवत अर्थात् भगवद्भक्त होने के कारण श्रेष्ठ ब्राह्मण ही मनुष्यों का गुरु है, अतः वहें समस्त जनों से हरि (भगवान्) के सदृश ही पूज्य है।' ⚪'समस्त शास्त्रों के अर्थ का ज्ञाता ही गुरु कहलाता है।' उद्धर्तुं चैव संहत्तु समर्थो ब्राह्मणोत्तमः । तपस्वी सत्यवादी च गृहस्थो गुरुरुच्यते ॥ ( शैवाचारप्रदीपिका २।१५, आगमसंहिता) 'तपस्वो, सत्यवादी तथा गृहस्थ उत्तम ब्राह्मण ही सभी का उद्धार तथा संहार करने में समर्थ होने के कारण गुरु कहा जाता है।' कलत्रपुत्रवान् विश्रो दयालुः सर्वसम्मतः । दैवे पित्रेऽरिमित्रे च गृहस्थो देशिको भवेत् ॥(यामले) 'देवकार्य तथा पितृकार्य में स्त्री-पुत्र-सम्मन्न दयालु और सद्गृहस्थ ब्राह्मण ही सर्वसम्मत से पूजा के योग्य है। क्योंकि वह शत्रु और मित्र दोनों को उपदेश देने में समर्थ होता है।' गृहस्थानां गुरुगृही। (तन्त्ररत्नाकर) 'गृहस्थों का गुरु गृहस्थ ही हो सकता है।' अतः स्पष्ट है कि गृहस्थ को दीक्षा देने का अधिकार गृहस्थ ब्राह्मण को ही है, साधु, सन्यासी आदि को नहीं। इसलिये गृहस्थको गृहस्थ ब्राह्मण से ही दीक्षा लेनी चाहिये, साधु, संन्यासो आदि से नहीं । भिक्षुभ्यश्च वनस्थेभ्यो वर्णिभ्यश्च महेश्वरि । गृहस्थो भोगमोक्षार्थी मन्त्रदीक्षां न चाचरेत् ॥ (त्रिपुरा रहस्य) 'हे देवि ! भोग और मोक्ष को चाहनेवाले गृहस्थ भिक्षुकों, वन-वासियों और ब्रह्मचारियों से मन्त्रदीक्षा ग्रहण न करें।' जो गृहस्थ अज्ञानवश साधु, संन्यासी, वनवासी आदि से दीक्षा लेते हैं, उनका कल्याण नहीं होता, यह स्पष्ट लिखा है- यतेर्दीक्षा पितुर्दीक्षा या दीक्षा वनवासिनः । विविक्ताश्रमिणो दीक्षा न सा कल्याणदायिका ॥ ( गणेशविर्माषणी ) 'यति (संन्यासी), पिता, वनवासी और विविक्ताश्रमी (संसार-त्यागी) से जो दीक्षा ली जाती है, वह कल्याणदायिनी नहीं होती ।' पितुर्दीक्षा यतेर्दीक्षा दीक्षा च वनवासिनः । अनाश्रमाणां या दीक्षा सा दीक्षा दुःखदायिनी ॥ ( ताराकल्पतन्त्र ) 'पिता से, यति (संन्यासो) से, वनवासो से और आश्रम-विहीनों से जो दीक्षा ली जाती है, वह दुःखायिनी होती है।' अतः जो गृहस्थ साधु, संन्यासी आदि से दीक्षा लेते हैं, वे घोर पाप का प्राप्त होते है 👧स्त्री द्वारा मंत्रदीक्षा- आज की मंत्र दीक्षा प्रतिस्पर्धा में भी देवियाँ पीछे नहीं रही। जिनको स्वयं मंत्राधिकार नहीं, वे दूसरे को क्या मंत्रदान करेंगी। बहुसंख्यक भोले नर नारी इनसे दीक्षा लेकर अपने दोनों लोक नष्ट कर रहे हैं। शास्त्रों में सिर्फ सौभाग्यवती स्त्री जो सभी धर्मां का पूर्ण से नियम के साथ पालन करती है जो संपूर्ण संस्कारों से युक्त हो और पतिव्रता हो और साथ ही सर्वमन्त्रार्थतत्त्वज्ञा, सदाचारिणी और सौभाग्यवती आदि सद्गुणों से सुसम्पन्न हो और जिस स्त्री में उक्त सद्गुण हों और उच्चकुल से हो वही स्त्री गुरु होने के योग्य कही गयी है और दीक्षा देने के योग्य मानी गई हो। 👉🏻अनुपनीत- जिसको यज्ञोपवीत का अधिकार ही नहीं वे मंत्रदीक्षा कर यज्ञोपवीत पहिना रही हैं। स्त्री की बात को छोड़े, पुरुषों को भी ब्राह्मण के अलावा अधिकार शास्त्र नहीं दे रहा है। ब्राह्मणेतर से मंत्रदीक्षा लेने का शास्त्रीय विचार- शिष्य सुनिश्चित नरकगामी होता है। तथा अनेक विपत्तियाँ है। ब्राह्मणेतरान् वर्णान् गुरुन् मोहात् करोति यः। सयाति नरकं घोरं विपन्नोऽपि भवेद् ध्रुवम्।। (ब्रह्मपुराण) अपने से नीच वर्ण की जाति से मंत्र लेने वाले श्वान की योनि जन्म लेता है। यो नरः नीच वर्णेभ्यो मंत्र ग्रहणमाचरन्। न मंत्रफलमाप्नोति श्वयोनिं चाधिगच्छाति।। (स्कन्द पुराण) यदि उच्च वर्ण वालों ने अपने से नीच वर्ण या ब्राह्मण के आचार्य के अतिरिक्त किसी से दीक्षा ली है तो वह प्रायश्चित करे, तथा श्रेष्ठ गुरु का वरण करे। वर्णोत्कृष्टो हीनवर्ण गुरुमोहाद् यदाचरेत्। प्रायश्चितं तदाकृत्वा गुरुमन्यं समाश्रयेत्।। (विश्वामित्र संहिता) जब ब्राह्मण के अतिरिक्त अन्य जाति से मंत्र ग्रहण का यह विचार है तब स्त्री का क्या कहना? "स्त्री शूद्र द्विज बन्धूनाम्।" कौशल्याजी को हवन करते हुए प्रमाण को आदर्श मानना चाहते हैं, पर जहाँ कौशल्या स्वयं हवन नहीं कर रही हैं- "अग्नि जुहोतिस्म तदा मन्त्रवत्कृत्मंगला।" (वाल्मीकि रामायण) इसका वास्तविक तात्पर्य है कि कौशल्या निर्विघ्नता के लिए ऋत्विजों द्वारा हवन करा रही थी। श्रीराम ने हवन करवाते हुए देखा। "हावयन्ती हुलाशनम्" अगले श्लोक में यह लिखकर स्पष्ट ही कर दिया। अत: कौशल्या जी के हाथ से नहीं, ब्राह्मणों द्वारा हवन का प्रमाण है। 👉🏻और तो और कन्या भी हवन नहीं कर सकती- यहाँ यह तर्क उठता है कि स्त्री हवन नहीं कर सकती किन्तु कन्या तो कर सकती है। इसके लिए शास्त्रों ने कन्या को तो यत्र में प्रवेशाधिकार नहीं दिया क्योंकि वह अधवा है। यज्ञ में मात्र सधवा जा सकती है। न वै कन्या न युवती नामन्त्रज्ञो न बालिशः। होता स्यादग्नि होत्रस्य नातो नासंस्कृतस्तथा।। (मनु स्मृति) नैव कन्या न युवती नाल्पविद्यो न बालिशः। परिवेष्टाग्नि होत्रस्य भेवन्ना संस्कृतस्तथा।। (महाभारत शान्ति पर्व) ऐसे अनेक प्रमाण हैं, किन्तु विस्तार भय से इतना ही पर्याप्त है। निष्कर्षत: स्त्री को यज्ञ में आहुति देने का, मंत्रदीक्षा का भी अधिकार नहीं। 👉🏻सिद्धमन्त्रार्थतत्त्वज्ञा स्त्री भी स्त्रियों को दीक्षा दे सकती है कुछ परिवार में सौभाग्यवती स्त्री से सौभाग्यवती स्त्रियों में दीक्षा-ग्रहण करने की कुलप्रथा है। जिस परिवार में स्त्रियों से दीक्षा-ग्रहण की कुलप्रथा है, उस परिवार में कुलप्रथा के अनुसार सौभाग्य-बत्ती सास आदि स्त्रियों से उनकी पुत्रवधू आदि स्त्रियाँ दीक्षा ग्रहण कर देवाराधनादि शुभ कर्म करने की अधिकारिणी बन जाती हैं। जो पुत्रवधू अपनी सास आदि से दीक्षा ग्रहण नहीं करती, वह देवाराध-नादि शुभकर्म करने के सर्वथा अयोग्य मानी जाती है। अतः विवाह के बाद पुत्रवधू अपनी ससुराल में जब सर्वप्रथम आती है, तब उसके लिये अपनी सौभाग्यवती सास आदि से दीक्षा ग्रहण करना आवश्यक हो जाता है। स्त्रियः शूद्रादयश्चापि बोधनीया हिताऽहितम् । तथार्हा माननीयाश्च नार्हन्त्याचार्यकं क्वचित् ॥ (योगिनीतन्त्र ) 🔴मन्त्र-दोक्षा देने वाली स्त्री को सर्वमन्त्रार्थतत्त्वज्ञा, सदाचारिणी और सौभाग्यवती आदि सद्गुणों से सुसम्पन्न होना चाहिये। जिस स्त्री में उक्त सद्गुण हों, वही गुरु होने के योग्य कही गयी है। साध्वी चैव सदाचारा गुरुभक्ता जितेन्द्रिया । सर्वमन्त्रार्थतत्त्वज्ञा सुशीला पूजने रता ॥ गुरुयोग्या भवेत्सा हि विधवा परिवर्जिता । स्त्रियो दीक्षा शुभा प्रोक्ता मातुश्चाष्टगुणा स्मृता ॥( योगिनीतन्त्र ) 'साब्वो, सदाचारिणी, गुरुभक्ता, जितेन्द्रिया, सर्वमन्त्रार्थतत्त्वज्ञा, सुशीला, देवपूजनादि कार्यानुरक्ता स्त्री ही गुरु बनने के योग्य है। इन समस्त गुणों से युक्त स्त्रियों से दीक्षा ग्रहण करना शुभप्रद कहा है। किन्तु विधवा स्त्री से दीक्षा ग्रहण करना त्याज्य कहा है। अन्य स्त्रियों की अपेक्षा माता के द्वारा दीक्षा ग्रहण करने से आठ गुना अधिक फल प्राप्त होता है।' ♦️अपने से श्रेष्ठ वर्ण वाले व्यक्ति को शिष्य बनाने से हानि होती है जो हीनवर्णवाला अज्ञानवश अथवा लोभवश अपने से श्रेष्ठ वर्ण-वाले को अपना शिष्य बनाता है, वह मृत्यु के बाद क्रमशः शुकर, गर्दभ आदि पापयोनियों को भोगकर चाण्डाल योनि को प्राप्त करता है। अब आप सभी स्वयं लीजिये की इन तथा कथित गुरुओं व साध्वियों, स्त्रियों जो स्वयं को स्वयंभू देवी मान कर बैठी है उनसे दीक्षा लेना उचित है या नहीं ।सोचो समझों और सही से निर्णय लो।

https://youtube.com/shorts/kn-GLAHBpaw?feature=share

एक लोटा जल से करें अपनी समस्याओं का अंत एक लोटा जल किस्मत में भारी बदलाव ला सकता है। यदि गंभीरता से केवल एक लोटे जल के साथ कुछ क्रियाएं कर दी जाए ,तो व्यक्ति के जीवन की बहुत सी समस्याएं ,दुःख ,रोग-शोक-कष्ट ,ग्रह बाधा दूर हो सकती है। सफलता बढ़ सकती है और सुख प्राप्ति के साथ आय के साधन बढ़ सकते हैं। इसके लिए करें बस इतना है कि सुबह सूर्योदय पूर्व उठें और नित्यकर्मों से निवृत्त हो स्नान कर ले ,शुद्ध वस्त्र धारण कर एक लोटा शुद्ध जल लें ,उसमे एक चुटकी रोली ,थोड़ा गुड और लाल फूल डालें ,अब उगते सूर्य को यह जल अर्पित करें अपने हाथों को सर की उंचाई तक रखते हुए ,यहाँ केवल इतना ध्यान दें की सूर्य उगता हुआ हो जिसे आप देख सकें अर्थात लालिमा युक्त निकलता सूर्य हो न की तपता हुआ सूर्य दूसरा यह की इस चढ़ते जल के छींटे आपके पैरों पर न पड़ें अर्थात किसी ऐसे स्थान पर गिरें जिससे आपके पैरों पर छींटे न आयें ,न ही यह किसी अशुद्ध स्थान पर गिरें ,इस समय सूर्य का या गायत्री मंत्र बोल सकें तो और अच्छा है। यह क्रिया किसी भी शुक्ल पक्ष के रविवार से शुरू करें और लगातार करते रहें ,यदि किसी कारणवश रोज संभव नहीं है तो रविवार-रविवार जरुर करें | इसके साथ एक क्रिया और केवल रविवार -रविवार करें रात्री में सोते समय अपने सिरहाने एक लोटा जल में थोड़ा सा दूध डालकर रख लें ,ध्यान दें की यह गिरे -फैले नहीं ,,सुबह[सोमवार ] उठाकर इसे किसी पीपल के वृक्ष को चढ़ा दें ,यहाँ यह ध्यान दें की कोई आपको टोके नहीं। एक लोटे जल की क्रियाओं से आपके ग्रह दोष ,बाधा दोष ,अशुभता ,रोग-शोक-कष्ट धीरे धीरे समाप्त होने लगेंगे ,जीवन में नवीन ऊर्जा और उमंग का संचार होने लगेगा ,दैनिक दिनचर्या व्यवस्थित-शुभ और मंगलमय हो जायेगी ,पित्र दोष में कमी आने लगेगी ,ईष्ट कृपा बढ़ जायेगी, स्वास्थय अच्छा होने लगेगा ,सफ़लता बढ़ जायेगी