
JYOTIRAJ 5G
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मन से सोचा हुए कार्य को वाणी द्वारा प्रकट नहीं करना चाहिए परन्तु भली प्रकार सोचते हुए उसकी रक्षा करनी चाहिए और चुप रहते हुए उस सोची हुई बात को कार्य रूप में बदलना चाहिए कुछ तो पवित्र है इन पर क्रोध करना अच्छा नहीं
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