
Chandra Shekhar Aazad
January 23, 2025 at 08:41 AM
दलित दूल्हा घोड़ी चढ़े, 25 बराती, 30 घराती,
75 पुलिस वाले, फिर भी क्यों जातिवाद की जंजीरें हमें जकड़े हुए हैं?
आजादी के 75 साल बाद भी, हमारी अस्मिता पर सवाल उठते हैं,
क्या यही हमारा इतिहास है, या हमें इसे बदलने की ताकत नहीं?
हमारी अस्मिता, हमारी पहचान, हर दिन घायल हो रही है,
जातिवाद का यह जहर समाज के दिल में समाया हुआ है।
जब तक हम इसे न उखाड़ फेंकें, यह जंजीरें हमें जकड़े रखेंगी,
हमारी गरिमा, हमारी आज़ादी, तब तक अधूरी रहेगी।
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