
AIBEA All India Bank Employees Association
February 2, 2025 at 08:30 AM
ऑल इंडिया बैंक इम्प्लॉयिस एसोसिएशन
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*बजट 2025 – बेहद निराशाजनक*
यह बजट बेहद निराशाजनक है। सभी को उम्मीद थी कि सरकार ऐसे उपायों की घोषणा करेगी, जो आम जनता की मूलभूत समस्याओं का समाधान करेंगे। लेकिन इस बजट में न तो जनता की समस्याओं को गंभीरता से लिया गया है और न ही अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद चुनौतियों पर ध्यान दिया गया है।
सरकार को पता है कि देश में बेरोजगारी खतरनाक रूप से बढ़ रही है और शिक्षित युवाओं को ठीक से रोजगार नहीं मिल रहा है। बिना नौकरियों के विकास और प्रगति की बातें करना एक झूठा सपना है। सरकार जिस भी जीडीपी वृद्धि की बात कर रही है, उसका सारा लाभ कॉरपोरेट्स को मिल रहा है, जबकि गरीब और अधिक परेशान होते जा रहे हैं। बजट में ‘शून्य गरीबी’ का दावा किया गया है, लेकिन हकीकत यह है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
लोग लगातार बढ़ती महंगाई और मूल्य वृद्धि से परेशान हैं, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है। गरीबी बढ़ी है और आय में असमानता खतरनाक रूप से बढ़ चुकी है। रुपये का मूल्य गिर रहा है और अमेरिका द्वारा हाल ही में लगाए गए टैरिफ को लेकर गंभीर चिंता बनी हुई है। सरकार के अपने आंकड़ों से भी साफ है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है।
लेकिन बजट में इन सभी समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया गया है और केवल औपचारिक बयान और खोखले आश्वासन दिए गए हैं। कृषि क्षेत्र में संकट को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। किसान अभी भी संकट में हैं, और स्वामीनाथन समिति की सिफारिश के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) देने की उनकी मांग पूरी नहीं की गई है। वित्त मंत्री कृषि को विकास का इंजन बता रही हैं, लेकिन किसानों की हालत बद से बदतर बनी हुई है।
*MSME* (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम) क्षेत्र नोटबंदी और जीएसटी से जुड़ी समस्याओं के कारण गहरे संकट में है, लेकिन उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कोई पैकेज नहीं दिया गया है। MSME क्षेत्र का संकट बेरोजगारी को और बढ़ाएगा।
स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों को पर्याप्त बजट आवंटन के बिना कैसे मजबूत किया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। मनरेगा ग्रामीण रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन है, लेकिन अतिरिक्त बजट आवंटन के बिना यह योजना अपने उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाएगी।
*पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) को और अधिक क्षेत्रों में विस्तारित किया गया है और मौद्रीकरण (Monetization) का लक्ष्य भी बढ़ा दिया गया है, जो सार्वजनिक क्षेत्र पर और अधिक हमलों की ओर संकेत करता है। बीमा क्षेत्र में 100% एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) की अनुमति देना एक बेहद पिछड़ा कदम है।*
बैंकिंग क्षेत्र में भी, जब सरकार खुद दावा कर रही है कि सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और रिकॉर्ड मुनाफा कमा रहे हैं, तब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। इसके बजाय, सरकार ने 5 बैंकों में सरकारी इक्विटी का बड़ा हिस्सा निजी हाथों में देने का फैसला किया है। *बड़े कॉरपोरेट ऋण डिफॉल्ट्स को सरकार के आईबीसी (इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड) के तहत सुलझाने के नाम पर बैंकों को भारी घाटा सहने के लिए मजबूर किया जा रहा है* लेकिन इस बजट में इसके लिए कोई समाधान नहीं दिया गया है।
बैंक कर्मचारी लंबे समय से पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बहाल करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन बजट में इसका कोई उल्लेख नहीं है। *बैंक कर्मचारियों और अधिकारियों को परिलाभों (Perquisites) पर आयकर के भारी बोझ का सामना करना पड़ रहा है* लेकिन बजट में इस पर भी कोई राहत नहीं दी गई है।
कुल मिलाकर, यह बजट बहुत बड़ी निराशा है।
*सी.एच. वेंकटचलम*
महासचिव, AIBEA
मो.: 98400 89920
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