
ब्रजधाम दर्शन
February 15, 2025 at 07:52 AM
रसिक दोऊ खेलन लागे होरी।
उततें निकसे नन्दनन्दन, इत बरसाने की गोरी ॥
बाजत ताल मृदंग झांझ, डफ मुरली मधुर धुनि थोरी।
गोपी वाल सबें जुर आये, भवन रह्यों नहीं कोरी ॥
स्यामा स्यामा की या छबि उपर, सब डारत तृण तोरी।
तारी दे ललितादिक भाखत, भली बनी यह जोरी॥
खेल मच्यौ ब्रजवीथिन महियां, कुंज कुंज वर खोरी।
‘मुरारीदास’ प्रभु फगवा दीयौ, लोचन लगी ठगौरी॥
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