
AIGC Central Official Channel.
February 12, 2025 at 07:47 AM
*History of AIGC*
साथियों,
अत्यंत हर्ष का विषय है कि आज हम वर्ष 2025 में ऑल इण्डिया गार्ड्स काउंसिल का 60 वां स्थापना दिवस समारोहपूर्वक मना रहे हैं।
जैसा कि आप सबको विदित है, आज ही के दिन, 18 फरवरी 1966 को, अत्यंत विषम परिस्थितियों में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम में सरदार अत्तर सिंह आहूजा के नेतृत्व में हमारे पूर्वजों की सर्वप्रथम बैठक हुई थी। इसके बाद जो हुआ, वह भारतीय मजदूर आंदोलन के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
एआईजीसी, सही मायनों में, एक स्वतंत्र, गैर-राजनीतिक एवं अनुशासित मजदूर संगठन है जो ट्रेड यूनियन अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत है। भारतीय रेल के सभी 18 जोनों एवं 72 मंडलों में इसका विस्तार है।
एआईजीसी का स्वयं का एक समृद्ध संविधान है जिसकी रचना कॉ० एम एम डिसूज़ा ने बड़ी लगन एवं मेहनत से की थी।
साथियों, आपने कभी सोचा है कि रेलवे में तमाम मजदूर संगठनों के होते हुए भी, खासतौर पर गार्ड संवर्ग के लिए, एक और संगठन की आवश्यकता क्यों पड़ी ? ऐसी कौन सी परिस्थिति थी, जिसने सरदार एवं साथियों का तत्कालीन रेल मजदूर संगठनों से मोह भंग किया और एक नये संगठन, जो पूरी तरह से सिर्फ और सिर्फ गार्ड हित के लिए समर्पित हो, की स्थापना के लिए प्रेरित किया। साथियों, एक प्रकार से कहा जाए तो, एआईजीसी का जन्म उस हताशा का परिणाम था जो रेल प्रशासन तथा मान्यता प्राप्त ट्रेड यूनियनों की गार्ड कैटेगरी के प्रति जानबूझकर की जा रही अपमानजनक उपेक्षा से फैली थी और जिसे हमारे सरदार ने काफी शिद्दत से महसूस किया था। उन्होंने तय किया कि हताशा के इस वातावरण से निकलने एवं गार्ड कैटेगरी को उसका वाजिब हक एवं सम्मान दिलाने का बस एक ही रास्ता है और वह है संगठन का रास्ता। वह रास्ता, जिसकी मंजिल तो तय थी किन्तु डगर अनजानी थी, साथ चलने वाला भी कोई नहीं था। यदि कुछ था तो वह था भगीरथ का वो जज्बा, जिसने मां गंगा को इस धरती पर उतरने के लिए विवश कर दिया था। सरदार यानि अत्तर सिंह आहूजा, जो थे तो एक सामान्य से दिखने वाले रेलवे गार्ड, किन्तु अप्रतिम साहस एवं हौसले ने उन्हें भारतीय रेल तथा भारतीय मजदूर संगठनों के इतिहास में किसी किवदंती के रूप में स्थापित कर दिया।
साथियों, आपने दशरथ मांझी का नाम तो सुना ही होगा, जिसने अपने प्यार की खातिर, अकेले ही विशालकाय पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था। कुछ ऐसा ही इस सरदार ने भी किया। वह अकेला ही निकल पड़ा, संपूर्ण भारत की यात्रा पर। जिस भी स्टेशन से वह गुजरता, वहां रखे लाईन बक्सों को देखकर उस गार्ड का नाम अपनी डायरी में नोट कर लेता। कुछ महीनों की यात्रा के पश्चात उसके पास बहुत सारे गार्ड बंधुओं के नाम एकत्र हो गए। वापस आकर उसने इन सभी लोगों और हर ज्ञात गार्ड मुख्यालय के लिए Branch Secretary/AIGC के नाम से पोस्टकार्ड लिखा और उनसे फरवरी माह के तीसरे हफ्ते में दिल्ली आने का आह्वान किया। इस आह्वान का व्यापक असर हुआ और इसी के फलस्वरूप नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम की वह ऐतिहासिक बैठक हुई जिसका जिक्र इस लेख के आरंभ में किया गया है।
"मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल
मगर
लोग आते गए और कारवां बनता गया।"
भारतवर्ष के चारों कोनों से आए हुए सौ से अधिक गार्ड बन्धुओं ने इस बैठक में भाग लिया और गार्ड कैटेगरी के भविष्य की वह रूप रेखा तय की जो आगे चलकर रेल मजदूरों के संघर्ष में एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ।
इस बैठक के ठीक तीन महीने बाद नागपुर में एआईजीसी की पहली General Body Meeting आयोजित की गई। तत्कालीन संसद सदस्य श्री एम एल सिंघवी General President, कॉमरेड पी आर चौधरी Executive President तथा कॉमरेड अत्तर सिंह आहूजा General Secretary निर्वाचित हुए।
15 अक्टूबर 1966 को AIGC का पंजीकरण स्वीकृत हुआ। साथियों, आप खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे जब आपको पता चलेगा कि इस अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, उपगृहमंत्री श्री विद्या चरण शुक्ल तथा उपरेलमंत्री श्री राम सुभग सिंह ने हमारे नवजात संगठन के लिए शुभकामना संदेश भेजा था। इसके बाद तो बहुतेरे सांसद हमारे संगठन से जुड़ते गए और संसद के दोनों सदनों में समय-समय पर हमारी आवाज उठाते रहे।
30 जनवरी 1967 को एआईजीसी के नेतृत्व में पहली बार काला बिल्ला लगाकर चौबीस घंटे के "भूख-हड़ताल आंदोलन" को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।
1968 का रेल बजट जब संसद में पेश किया जा रहा था तो बीस से अधिक सांसदों ने गार्ड कैटेगरी से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर संसद में अपनी राय रखी थी। यह अभूतपूर्व घटना गार्ड कौन्सिल के प्रयासों का ही नतीजा था।
19 सितंबर 1968 को AIRF के आह्वान पर रेलवे में "महा-हड़ताल" की घोषणा हुई जिसमें एआईजीसी ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। कॉ० आहूजा एवं कॉ० सी एल उपाध्याय जैसे एआईजीसी के बहुत सारे नेता इस दौरान गिरफ्तार व प्रताड़ित किए गए।
1968 में ही भारत सरकार द्वारा रनिंग एलाउएंस को लेकर "अशरफ कमेटी" का गठन किया गया जिसमें एआईजीसी ने भी अपना प्रतिनिधि मंडल भेजा। किंतु असली लड़ाई अभी बाकि थी।
1968 के नवंबर महीने में, पूर्वोत्तर रेलवे के बनारस मण्डल में एक जबरदस्त "Mass Sick Movement" चलाया गया जो, एआईजीसी ही नहीं वरन् ट्रेड यूनियन मूवमेंट के इतिहास में, मील का पत्थर साबित हुआ। बनारस के तत्कालीन DTS (आजकल इन्हें DRM कहा जाता है) के हिटलरशाही रवैये के खिलाफ बनारस डिवीजन के कुल 228 गार्डों में से 224 गार्डों ने एक साथ Reported Sick कर दिया। इससे पूरे डिवीजन में तीन दिनों तक रेल परिचालन ठप्प हो गया। दिल्ली तक हड़कंप मचा और Dy COPS को तुरंत दिल्ली से बनारस भेजा गया। बनारस आकर इन्होंने एआईजीसी के तत्कालीन Divisional Secretary कॉ० सी एल उपाध्याय के साथ एक Agreement sign किया जिसमें एआईजीसी के 17 सूत्री Charter of Demands को स्वीकार किया गया। इस Charter का एक demand उस DTS का On spot Transfer भी था। इस जीत ने हमारे हौसले को और उड़ान दे दी।
1969 में एआईजीसी ने VAN GUARD नाम से अपने मुखपत्र का प्रकाशन आरंभ किया।
1970 में AIREC से संबद्धता प्राप्त हुई।
इसी वर्ष Miabhai Tribunal का गठन हुआ। NFIR के विरोध के बावजूद, AIGC को 30 दिसम्बर 1970 को ट्रिब्यूनल के समक्ष अपनी मांगों को रखने का अवसर मिला।
हमारे सतत प्रयासों का एक प्रतिफल ये मिला कि रेलवे बोर्ड, वित्त मंत्रालय की सहमति से इस बात के लिए तैयार हो गया कि रनिंग एलाउएंस के दस प्रतिशत पर ही आयकर की कटौती की जाए।
1971 में भारत सरकार ने तीसरे वेतन आयोग का गठन किया। 21 सितंबर को AIGC के प्रतिनिधि मंडल ने आयोग से मुलाकात कर अपना मेमोरेंडम दिया। मार्च 1973 में आयोग ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें गार्ड को 290 - 480 का वेतनमान दिया गया जबकि अन्य समकक्ष कैटेगरी को 330 - 560 का वेतनमान दिया गया। यह गार्ड कैटेगरी को नीचा दिखाने का एक कुत्सित प्रयास था जिसे गार्ड्स काउंसिल किसी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर सकता था। 18 अप्रैल 1973 को एआईजीसी की सभी शाखाओं से भारत के प्रधानमंत्री को "प्रोटेस्ट टेलीग्राम" भेजे गए और तीसरे वेतन आयोग की सिफारिशों का विरोध किया गया। 22-23 अप्रैल को नई दिल्ली में विशेष अधिवेशन बुलाया गया जिसमें 10 जून से Work to Rule Movement आरंभ करने का निर्णय लिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से लेकर रेलमंत्री श्री ललित नारायण मिश्रा तक को मेमोरेंडम दिए गए। इसका असर यह हुआ कि तीसरे वेतन आयोग की इस सिफारिश को तत्काल अमल में लाने से रोक दिया गया। कई दौर की बातचीत और Work to Rule की पूरजोर तैयारियों के बीच एक साल का समय निकल गया किन्तु कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। आखिरकार, 20 जनवरी 1974 को बिहार के गया में Work to Rule Movement शुरू करने का निर्णय ले लिया गया और 10 मार्च 1974 से यह ऐतिहासिक आंदोलन आरंभ हो गया। AIRF ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया। पूरे भारत में इस आंदोलन का व्यापक प्रभाव देखने को मिला और जहां तहां मालगाड़ियां खड़ी होने लगीं। इसके चलते मेल/एक्सप्रेस गाड़ियों का भी अत्यधिक विलंबन होने लगा। रेल प्रशासन ने स्थिति से निबटने के लिए मालगाड़ियों को बिना गार्ड और बिना ब्रेकवान के चलाने का प्रयास किया। कहीं कहीं गार्ड के स्थान पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को बैठाया गया किन्तु स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती चली गई। सबसे अधिक प्रभाव इस्टर्न और साउथ इस्टर्न रेलवे में देखने को मिला जहां कोयले की आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई और बहुत से कारखानों में उत्पादन ठप्प हो गया। इस बीच AIRF ने आंदोलन से अपना समर्थन वापस ले लिया। जब आंदोलन तोड़ने के सारे हथकंडे फेल हो गए तब जाकर सरकार के कानों पर जूं रेंगी और 16 मार्च 1974 को तत्कालीन रेल उपमंत्री मोहम्मद शफी कुरैशी ने AIGC के साथ एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया जिसमें हमारी मांग को मान लिया गया साथ ही आंदोलन में शामिल किसी भी गार्ड के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं करने का आश्वासन दिया गया।
इस साल की एक और बड़ी घटना थी AIREC का Work to Rule और NCCR का All India Strike. AIGC ने दोनों ही आंदोलनों में बढ़चढ़कर भाग लिया। Central एवं Western Railway के गार्ड व मोटरमैनों ने सामुहिक रूप से बाम्बे की उपनगरीय रेल सेवा को रोकने का निर्णय लिया और अक्खी बम्बई ने इतिहास में पहली बार देखा कि तीन मई की आधी रात से अगले चौबीस घंटे तक एक भी ट्रेन नहीं चली। इस आंदोलन में एआईजीसी के पदाधिकारियों समेत सौ से अधिक गार्ड जेल में डाल दिए गए, प्रताड़ित किए गए और कुछ को तो नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा।
22 मार्च 1976 को रेलवे बोर्ड ने एक आदेश निकाला, जिसके अनुसार रनिंग स्टाफ को मिलने वाले रिटायरमेंट बेनेफिट को 75% से घटाकर 45% कर दिया गया। हालांकि तीसरे वेतन आयोग ने इसे 75% ही रखा था। एआईजीसी ने तत्काल एक विरोध पत्र तत्कालीन रेलमंत्री कमलापति त्रिपाठी को भेजा। आश्वासन के सिवा कुछ और न होता देख दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की गई।
समय बीतता जा रहा था और Work to Rule आंदोलन के फलस्वरूप हुए समझौते को लागू करने में सरकार टाल मटोल कर रही थी। ऐसे में, एआईजीसी ने Fast unto Death का बिगुल फूंक दिया। 16 अक्टूबर 1978 को बड़ी संख्या में एआईजीसी के केंद्रीय पदाधिकारी एवं गार्ड तत्कालीन रेलमंत्री मधु दंडवते के सरकारी आवास के बाहर भूख हड़ताल पर बैठ गए। रेलमंत्री को धरना स्थल पर आना पड़ा। उन्होंने एआईजीसी के प्रतिनिधिमंडल को उसी दिन रेलवे बोर्ड में वार्ता के लिए आमंत्रित किया। एक निश्चित समय सीमा के भीतर हमारी मांगों को पूरा करने के लिखित आश्वासन पर भूख हड़ताल समाप्त किया गया।
1980 में रनिंग एलाउएंस निर्धारित करने के लिए भल्ला कमिटी का गठन किया गया। एआईजीसी ने चार बार इस कमिटी से मुलाकात कर अपना सुझाव रखा।
तब मालगाड़ियों के ब्रेकवान की दशा अत्यंत दयनीय हुआ करती थी। इसमें कार्य करना अत्यंत जोखिम भरा एवं दुश्कर होता था। अतः अप्रैल 1980 में हुए लखनऊ अधिवेशन में यह निर्णय लिया गया कि यदि 10 मई तक ब्रेकवान की स्थिति में सुधार नहीं किया गया तो मालगाड़ियों का परिचालन पूरी तरह से रोक दिया जाएगा। इस आशय का नोटिस रेलमंत्री को दिया गया। अतीत में किए गए हमारे सफल आंदोलनों का प्रभाव था कि रेलमंत्री ने तत्काल मेम्बर मैकेनिकल को आदेश दिया और उन्होंने 2 मई को एआईजीसी के साथ मिलकर यथाशीघ्र ब्रेकवान में आवश्यक सुधार के आदेश जारी कर दिए।
22 फरवरी 1981 को एआईजीसी ने नई दिल्ली में एक सेफ्टी सेमिनार का आयोजन किया जिसका उद्घाटन तत्कालीन रेलमंत्री श्री केदार पाण्डेय ने किया था। इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी मजदूर संगठन ने सेफ्टी सेमिनार का आयोजन किया था।
इस बीच एक अवांछित घटनाक्रम में, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष एम एस गुजराल के साथ हुए विवाद एवं ऑल इंडिया टिकट चेकिंग स्टाफ एसोसिएशन तथा NFIR के कतिपय पदाधिकारियों की शह पर एआईजीसी के जेनरल सेक्रेटरी कामरेड सी एल उपाध्याय को 14/2 के तहत सर्विस से रिमूव कर दिया गया। रेलमंत्री के आदेश पर भी उनको वापस नहीं लिया गया। वे नौकरी पर वापस तभी आ सके, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस बर्खास्तगी आदेश पर स्टे दिया।
गार्ड एवं असिस्टेंट गार्ड को Re-structuring नहीं देने के खिलाफ 1 सितंबर 1983 को देशभर से रेलमंत्री को टेलिग्राम भेजकर तथा 3 अक्टुबर से सभी DRM Offices के सामने 24 घंटे के Relay Fast का आयोजन किया गया। इसके साथ ही 14 जुलाई से 20 जुलाई तक Protest week भी मनाया गया।
रेलवे बोर्ड अभी भी गार्ड एवं असिस्टेंट गार्ड के वेतन निर्धारण पर चुप्पी साधे हुए था। थक हार कर एआईजीसी ने एक बार फिर से तत्कालीन रेलमंत्री श्री गनी खान चौधरी के आधिकारिक आवास के सामने 24 घंटे के "धरना" का आयोजन किया। 1000 से अधिक गार्डों और 6 सांसदों ने इस धरना में भाग लिया। स्वयं रेलमंत्री, रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों के साथ धरना स्थल पर आए और बताया कि रिस्ट्रक्चरिंग का कार्य शुरू हो चुका हैऔर इसे जल्दी ही पूरा कर लिया जाएगा।
26 जनवरी 1985 को गाजियाबाद में एआईजीसी के मुख्यालय "रेल गार्ड भवन" का भव्य उद्घाटन किया गया। इस अवसर पर 500 से अधिक गार्ड जूटे थे। इस भवन को बनाने में देशभर से गार्ड साथियों ने योगदान दिया था। किंतु सबसे उल्लेखनीय योगदान श्री महावीर सिंह का था जिन्होंने पैसे कम पड़ने पर बेटी की शादी के लिए रखे गहनों को भी बेच दिया था।
31 मार्च 1985 को चौथे वेतन आयोग ने एआईजीसी को अपनी बात रखने का अवसर दिया।
9 जुलाई को आखिरकार रिस्ट्रक्चरिंग का आदेश जारी हुआ किन्तु A Spl Guard के लिए 550-750 वेतनमान के एआईजीसी की मांग के बनिस्पत 450-700 का वेतनमान ही दिया गया। अपनी मांग के समर्थन में एआईजीसी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के सरकारी निवास के सामने 24 नवंबर 1985 को विशाल धरना का आयोजन किया। पहले से भी अधिक संख्या में गार्ड साथियों ने इसमें अपनी भागीदारी निभाई। प्रतिनिधिमंडल को प्रधानमंत्री निवास के अंदर सरकारी कार से ले जाया गया। प्रधानमंत्री के आश्वासन पर धरना समाप्त हुआ।
30 जून 1986 को चौथे वेतन आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति बनाई और थोड़े बहुत संशोधनों के साथ 5 सितंबर 1986 को इसे स्वीकार कर लिया गया।
रनिंग स्टाफ के पे- एलीमेंट को रेलवे बोर्ड ने कम कर दिया था जिसके विरोध में एआईजीसी दिल्ली स्थित CAT के Principal Bench में गई जिसने पे- एलीमेंट को बरकरार रखने का आदेश दिया।
4 जून 1988 को तत्कालीन रेल राज्यमंत्री श्री माधवराव सिंधिया ने एआईजीसी के धरना स्थल पर आकर हमारी मांगों को मानने का भरोसा दिया।
19 दिसंबर 1990 को तत्कालीन रेल राज्यमंत्री श्री जनेश्वर मिश्र ने गाजियाबाद स्थित रेल गार्ड भवन का दौरा किया।
इक्कीसवीं सदी में भी हमारा संघर्ष जारी रहा। 2016 में नई दिल्ली के जन्तर-मन्तर का ऐतिहासिक धरना तो आपको याद ही होगा।
इसके अलावा 36 घंटे की भूख हड़ताल, काली पट्टी बांध कर ड्यूटी करने से लेकर 2019 के पोस्टकार्ड अभियान तक, एवं इसके बाद के कोरोना काल में अनेकों ट्विटर अभियान हमारे अनवरत संघर्ष की जिन्दा मिसाल हैं। 2024 में लाइन बाक्स को लेकर पूरे भारत में हर लॉबी स्तर पर धरना प्रदर्शन दिया। वर्ष 2025 में 24.01.25 के जे पी ओ को लेकर सभी लॉबी में ट्रेन मैनेजर द्धारा ब्लैक डे के रूप में प्रर्दशन किया गया।
साल दर साल, एआईजीसी अपने आप को और भी सुदृढ़ एवं विस्तृत करता चला गया। छोटे छोटे संघर्ष और उनसे जुड़े विस्तृत सरोकार एआईजीसी को इस कैटेगरी के लिए अपरिहार्य करते चले गए। यूनियन तो बहुतेरे बने किन्तु परिवार एआईजीसी का ही बना। गार्ड के लिए लड़ी जाने वाली हर लड़ाई एआईजीसी की लड़ाई बन गई।
3.01 से लेकर UMID card में ward-entitlement के संशोधन तक, माईलेज के एरियर से लेकर पे- एलीमेंट रिटेन रखने तक हर छोटी-बड़ी उपलब्धि के पीछे एआईजीसी का अंतहीन संघर्ष छिपा है।
अभी भी हम तमाम मुद्दों पर संघर्ष कर रहे हैं। चाहे वह Level 6 में सीधी भर्ती की बात हो या MACP की, EOTT का विरोध हो या लाईन बॉक्स हटाने का विरोध हो, सड़क से लेकर रेलवे बोर्ड और कोर्ट तक में हमारा संघर्ष जारी है। भले ही इन मुद्दों पर रेलवे बोर्ड से लेकर चाटूकार यूनियनों तक से हमें सौतेला व्यवहार देखने को मिल रहा है किन्तु बहुत जल्द हमारी जीत होगी। सत्य की जीत होगी। आप साथियों के संघर्ष और विश्वास की जीत होगी।
एआईजीसी का इतिहास अनेकानेक घटनाओं, संघर्षों एवं उपलब्धियों से भरा पड़ा है। इसने हमेशा ही कामगार वर्गों के संघर्ष में उनका साथ दिया है। NCCRS, AIREC, AILRSA तथा AILRO के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया है और न केवल अपने वेतन एवं भत्तों को बरकरार रखने में सफलता पाई है बल्कि पे- एलीमेंट को भी कम नहीं होने दिया है।
एआईजीसी ने हमेशा से ही सभी मजदूर एवं जन-विरोधी नीतियों का प्रतिकार किया है। हम रेलवे एवं अन्य सरकारी संस्थाओं के नीजिकरण के खिलाफ देशभर के मजदूर संगठनों के साथ मिलकर मजबूती से लड़ रहे हैं। हमारे साथियों ने जमीन पर उतरकर भारत की पहली प्राईवेट ट्रेन तेजस का विरोध किया था।
हम NPS को समाप्त कर पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने के लिए हो रहे देशव्यापी आंदोलन में सहभागी हैं।
साथियों, हमारे बड़े- बुजुर्गों ने तो अपना काम बखूबी किया और अब भी करते आ रहे हैं। अब आपकी बारी है कि आप एआईजीसी के इस समृद्ध एवं गौरवशाली इतिहास में अपना स्थान कहां और कैसे खोज पाते हैं !
जय हिंद !
जय भारत !!
एआईजीसी जिन्दाबाद !!!
गार्ड एकता जिन्दाबाद !!!!
❤️
👍
🙏
15