Media Prime News
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February 16, 2025 at 04:13 AM
*शिक्षक लगा रहे झाडू:स्कूलों में सफाईकर्मियों के 27986 पद, सिर्फ 5301 भरे* *बीकानेर* स्कूल में झाडू लगाते ये शिक्षक किसी स्वच्छता अभियान में शामिल नहीं हैं। बल्कि ये इनका रोज का काम है। प्रदेश के अधिकतर स्कूलों में यही हालत है। प्रदेश के स्कूलों में साफ-सफाई जैसे कामों के लिए सहायक कर्मचारियों के 27986 पद स्वीकृत हैं। लेकिन, इनमें से 22685 पद खाली हैं। वहीं, शौचालयों की सफाई के लिए जमादारों के सिर्फ 520 पद स्वीकृत हैं। इसमें से 376 पद खाली हैं। इस वजह से प्रदेश सरकार साफ-सफाई जैसे कार्यों के लिए हर स्कूल को महीने का 500 से एक हजार रुपए का बजट देती है। इतने बजट में शौचालय और स्कूल परिसर की सफाई संभव ही नहीं है। ऊपर से इस शिक्षा सत्र में अभी तक सफाई के मद में मिलने वाला बजट नहीं मिला है। मजबूरी में प्रिंसिपल शौचालय की सफाई के लिए अपनी जेब से पैसा देकर निजी कर्मचारी रखते हैं। प्रदेश में 65299 सरकारी स्कूल हैं। अधिकारियों का दौरा होता है तो वे सफाई व्यवस्था पर सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। ये अच्छी बात है, लेकिन इसके लिए कोई स्थाई व्यवस्था नहीं है। बीकानेर कलेक्टर नम्रता वृष्णि दो महीने पहले एक स्कूल पहुंचीं। सफाई ना होने पर एक आरएएस अधिकारी को जांच के लिए भेज दिया। जांच में बचने के लिए शिक्षकों ने खुद सफाई की ताकि कोई कार्रवाई ना हो। वो आरएएस अब हर महीने स्कूल की चेकिंग करती हैं। कार्रवाई से बचने के लिए शिक्षक अब पढ़ाई के साथ खुद झाडू लेकर स्कूल की सफाई कर रहे हैं। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर भी कई बार स्कूलों में सफाई को लेकर सख्ती दिखा चुके हैं। लेकिन अभी तक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ है। *स्कूलों को समय पर बजट तक नहीं देती सरकार* मौजूदा वित्तीय वर्ष मार्च में समाप्त हो जाएगा। स्कूलों को अब तक शौचालय सफाई के लिए दिए जाने वाल बजट नहीं मिला है। यानी जून से जो स्कूल खुले वो फरवरी तक कैसे साफ होंगे। कौन सा ऐसा कार्मिक है जो 10 महीने बिना पैसे के स्कूलों के शौचालय साफ करेगा। *सहायक कर्मचारी रुटीन काम नहीं करते, बाथरूम क्यों साफ करेंगे* सरकारी कर्मचारी होने का ठप्पा इतना मजबूत है कि वे मूल काम ही कर लें तो ही बहुत है। सरकार चाहती है कि सहायक कर्मचारी शौचालयों की सफाई करें तो ये संभव नहीं। सहायक कर्मचारी तो शिक्षकों को ही सीधी आंखें दिखाते हैं। ऐसे कई विवाद सामने आ चुके हैं। कुछ मामले को इतना तूल पकड़ चुके कि मामला जातिगत अस्मिता तक पहुंच जाता है। वहीं, ग्रामीण स्कूलों के शौचालयों में पानी के कनेक्शन तक नहीं है। ना पानी की टंकी है। *शाला दर्पण के आंकड़े कर रहे हैं गुमराह* राज्य के सरकारी स्कूलों से संबंधित सभी तरह का डेटा विभाग के शाला दर्पण पोर्टल पर उपलब्ध है। लेकिन शाला दर्पण पोर्टल के आंकड़े गुमराह कर रहे हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक शिक्षिका ने बताया कि स्कूल में प्लेग्राउंड व शौचालय नहीं होने की स्थिति में भी जिले के अधिकारी रिपोर्ट में हां का ऑप्शन ही भरने के लिए कहते हैं। ताकि जिले की रिपोर्ट निगेटिव नहीं जाए।
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