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February 13, 2025 at 11:01 AM
**रा-धा/ध:-स्व-आ-मी! 13-02-25- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:- (8-9.9.32- बृहस्पत व शुक्र)- सुबह साढ़े सात बजे मद्रास सेन्ट्रल स्टेशन पर पहुँचे। मद्रास के बहुत से ढाई मौजूद थे। पौने आठ बजे रेल रवाना हुई। मुतअदिदद (अनेक) भाई आबदीदह (अश्रुपूरित ) हो गये। मेरा भी दिल भर आया। बेगरज (निस्वार्थ) मोहब्बत अपना ही लुत्फ (आनन्द) रखती हैं। चार बजे बेजवाड़ा स्टेशन आया। यहाँ क़रीबन तीन सौ सतसंगी जमा थे। रेलवे अफ़सरान ने सतसंगियों की दरख्वास्त पर दस मिनट मुकर्ररह (नियत) वक़्त से ज्यादा रेल ठहराना मंजूर कर लिया था। उन भाइयों व बहनों का प्रेम क़ाबिले-दीद (दर्शनीय ) था। अक्सर भाइयों ने माह दिसम्बर के जलसा में शमूलियत (उपस्थिति) के लिये इरादा ज़ाहिर किया। और सबके सब एक जबान कहते थे कि इस जलसे से कुल संगत को अज़ीम (बड़ा) फ़ायदा पहुँचेगा। मैंने दो चार बातें तेलगू ज़बान में कीं। उसका उन भाइयों पर जबरदस्त असर पड़ा। एक सिन-रसीदा (वयोवृद्ध) भाई ने कहा आप हमारे लिये इतना कष्ट उठा रहे हैं और हम मदहोश (बेसुध) हैं। मैंने जवाब दिया-यह जिन्दगी सतसंगी भाइयों की सेवा के लिये वक़्फ़ हो चुकी है इसलिये किसी काम में कष्ट नहीं है। इतने में एक मुसलमान औरत सतसंगियों की सफ़ों (पंक्तियों ) को चीरती फाड़ती मेरे सामने आ गई और दर्द भरी आवाज़ से कहने लगी "आप मेरे खावन्द" (पति) को मुझसे मिला दें" दरयाफ़्त करने पर उसने अपने दर्द का हाल बयान किया। मैंने हत्तलमक़दूर (यथाशक्ति) तसल्ली दी। ए इंसान ! तेरी रूह अपने सच्चे खावन्द से अरसा दराज से बिछड़ी है और लापरवाह है। आफ़रीन (साधुवाद) है इस नेक बख्त की मोहब्बत पर कि जहाँ भी ज़रा सी मदद की उम्मीद नजर आई यह आ मौजूद हुई। और सब बातों को बालाएताक़ (पृथक) रखकर अपना दिली मक़सद (उद्देश्य) बेतकल्लुफ पेश कर दिया उधर तेरी रूह है कि न उसे अपनी सुध बुध है न अपने सच्चे पति की! क्रमशः------- 🙏🏻 रा-धा/ध:-स्व-आ-मी! रोजाना वाक़िआत परम गुरु साहबजी महाराज!** **परम गुरु हुजूर मेंहताजी महाराज के बचन- भाग-1- (102 का ही भाग)- पिछले युद्ध के बाद शैक्षिक उन्नति के बारे में बहुत समय से मेरी यह राय रही है कि हमारी शैक्षिक संस्थाओं का वर्तमान कोर्स हमारी व हमारे समय की आवश्यकताओं के विचार से बिल्कुल अनुपयुक्त और व्यर्थ है। इसलिए देहाती क्षेत्रों और छोटे नगरों के बारे में यह तजवीज है कि मिडिल स्टैंडर्ड तक शिक्षा निःशुल्क कर दी जावे और इस शिक्षा में छात्रों की इन्डस्ट्रियल रुचि को खास तौर से बढ़ाने की कोशिश की जाय । इस तरह से छात्र आसानी से लिख पढ़ सकेंगे और हिसाब के आसान सवाल हल कर सकेंगे। १४ या १५ साल की आयु हो जाने पर वे या तो सीधे इन्डस्ट्रीज या कारखाने में जाकर काम कर सकते हैं या अपनी खुद कोई छोटी इन्डस्ट्री जारी कर सकते हैं। कला और दस्तकारी को भी शैक्षिक कोर्स में स्थान देना चाहिए। ऐसे विद्यार्थी जो आगे शिक्षा में अधिक रुचि लें तीव्र-वृद्धि और चतुर हों और आगे शिक्षा में अधिक रूची लें और जो ऊँची शिक्षा के खर्चे को उठा सकें उनको ऊँची शिक्षा के लिए भेजना चाहिए । परन्तु उनके बारे में मै़ इस बात पर जोर दूँगा कि उनको अपने जीवन का कोई खास उद्देश्य नियत करना चाहिए और उनकी सारी कोशिश उसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए होनी चाहिए । मेरी यह दृढ़ सम्मति है कि जिन जिन इलाकों में (खास कर गाँवों और कस्बों में) शिक्षा बहुत कम है वहाँ जगह जगह लोअर सेकेंडरी व प्रायमरी स्कूल खोले जायँ और यथासंभव देश से अशिक्षा को दूर करने के लिए कोशिश की जाय। साथ में स्थान स्थान पर लोकल आवश्यकताओं के अनुसार होम्योपैथिक शफाखाने गरीबों व मोहताजों की मदद के लिये खोले जायें। 🙏🏻रा-धा/ध:-स्व-आ-मी🙏🏻**

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