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February 14, 2025 at 11:48 AM
**रा-धा/ध:-स्व-आ-मी! 14-02-25- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-(8-9.9.32 बृहस्पत व शुक्र का शेष भाग)-बेजवाड़ा से चलकर फुरसत ही फुरसत रही। अलबत्ता जगह जगह बारिश होने से मौसम निहायत खुशगवार (सुहावना) था। और बार बार तबीयत रा-धा/ध:-स्व-आ-मी दयाल के चरनों की जानिब मुखातिब (आकृष्ट) होती थी। बल्हारशाह से इटारसी तक का रास्ता क़ाबिले-दीद (देखने योग्य ) है। दोनों तरफ़ सरसब्ज (हरे भरे) पहाड़ व जंगल हैं। हवा निहायत ही खुशगवार है। गर्जेकि 8 व 9 सितम्बर के दिन बड़े आनंद से गुजरे। कोई काम नहीं कोई बुलाने वाला नहीं, चुपचाप कमरे में लेटे हैं, ठंडी हवा के झोंके लग रहे हैं और रा-धा/ध:-स्व-आ-मी दयाल अपनी दया का इजहार फरमा रहे हैं। 🙏🏻 रा-धा/ध:-स्व-आ-मी! रोजाना वाक़िआत परम गुरु साहबजी महाराज!**
**परम गुरु हुजूर मेहता जी महाराज के बचन- भाग-1- ( 103 )- 1 अगस्त, 1943 को लड़कों का सतसंग हुआ। दो शब्द मौज से निकाले गये- (१) में भूला सतगुरु स्वामी। में चूकी अन्तरजामी ।।१।। क्या क्या कह में बिथा बरवानी । सब जग को पँडियन कीन्ह दिवानी ॥ २।। (सारबचन, वचन २२, शब्द ६) (२) बाल समान चरन गुरु आई। देख दरश अतिकर हरखाई।।१।। खेलूँ गुरु सन्मुख धर प्यार। सुनता रहूँ गुरु बानी सार।।२।। आरत धार उर्मंग प्रेम से। जपत रहें गुरु नाम गुरु नेम से॥३॥ गुरु की लीला निरख निहार। बिस्तर मन और बढ़त पियार॥४॥ रा-धा/ध:-स्व-आ-मी दीना भक्ती साज। चरन सरन हिये धारी आज॥५।। (प्रेमबानी भाग २,बचन ९ (३), शब्द (१०)- फरमाया-पहला शब्द ऐसे विद्यार्थियों के लिए है जो गत वर्ष बार्षिक परीक्षाओं में उत्तीर्ण न हो सके और जिन्होंने साल भर अपना ध्यान पढ़ाई की तरफ नहीं रक्खा। शब्द की गई पानी नाम का दान नाम के प्रताप से मुक्ति पाना सकती हैं जब आदर्श सतसंगी के बीच में जो बाते वर्णन पाना, नाम की पुक्ति कमाना और आदि सच बाते उसी दशा में संभव हो बना जाय। परन्तु यहाँ पर छात्रों को सतसंगी बनाने का नियम नहीं है, इसलिए आपके लिए इस शब्द के अनुसार आदर्श सतसंगी होना यही है कि शिक्षा के संबंध में जो आदेश आपको ऊपर दिए गए हैं उन पर आप चलें । जो रुपया आप अपने माता-पिता से मैगाएँ उसका सदुपयोग करें, उसे शिक्षा के अलावा हानिकारक खेलों व तमाशों में न नष्ट करें। यदि आप ऐसा नहीं करते तो आप आदर्श सतसंगी नहीं बन सकते और जिस तरह से पिछले साल की लापरवाही, ध्यान न देने और समय के नष्ट करने का नतीजा निकला, संभव है कि अगले साल भी वैसा ही बुरा नतीजा निकले । यह शब्द व्यपको इस शैक्षिक वर्ष के शुरू में चेतावनी देता है जिससे आप आरंभ ही से संभल कर चलें और जिस उद्देश्य से आप यहाँ पर आए हैं उसके पूरा करने में सफल हों। अनुत्तीर्ण छात्रों को चाहिए कि वे इस वर्ष आरंभ ही से ऐसा परिश्रम करें कि हर एक विषय में ७० प्रतिशत नंबर लायें। आप लोगों में से जिनको ये बातें स्वीकार हों वे हाथ उठावें । समस्त कात्रों ने हाथ उठा कर अपनी स्वीकृति दी। 🙏🏻रा-धा/ध:-स्व-आ-मी🙏🏻**