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January 24, 2025 at 05:17 PM
काम के घंटे बढ़ाने की वकालत: भारतीय मजदूरों पर CEO की सोच और उसके प्रभाव विश्लेषण" चंचल वत्स (एक युवा मजदूर) हाल के दिनों में भारतीय श्रम व्यवस्था में बड़े बदलावों की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है। (L&T) के CEO एस. एन. सुब्रह्मण्यम, इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति जैसे प्रमुख उद्योगपतियों ने लंबे काम के घंटों की वकालत की है। उनका कहना है कि भारतीयों को सप्ताह में 70-90 घंटे तक काम करना चाहिए ताकि देश आर्थिक और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ सके। हालांकि, इन बयानों ने मजदूर वर्ग और श्रमिक संगठनों के बीच चिंता का माहौल पैदा कर दिया है। काम के घंटे बढ़ाने का तर्क एस. एन. सुब्रह्मण्यम और नारायण मूर्ति का तर्क है कि अगर भारत को वैश्विक स्तर पर चीन, अमेरिका और अन्य विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है, तो भारतीय श्रमिकों को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। सुब्रह्मण्यम ने इसे "आर्थिक प्रगति के लिए त्याग" का नाम दिया है। उनका मानना है कि अगर श्रमिक लंबे समय तक काम करेंगे तो उत्पादन और लाभ में वृद्धि होगी, जिससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। मजदूरों पर संभावित प्रभाव हालांकि इन तर्कों के पीछे आर्थिक प्रगति का उद्देश्य है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम श्रमिकों के स्वास्थ्य, परिवार और समाज पर गंभीर असर डाल सकते हैं: 1. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: लंबे समय तक काम करने से तनाव, थकान और बीमारियां बढ़ सकती हैं। 2. परिवार और सामाजिक जीवन पर असर: मजदूरों के पास अपने परिवार और व्यक्तिगत जीवन के लिए समय नहीं बचेगा। 3. अधिकारों का हनन: लंबे घंटे काम कराने से श्रम अधिकार कमजोर होंगे, खासकर अगर कंपनियां उचित मुआवजा और सुविधाएं नहीं देतीं। क्या है सच्चाई? भारत जैसे देश में जहां पहले से ही मजदूरों के लिए बुनियादी सुविधाओं की कमी है, लंबे काम के घंटे उनकी स्थिति को और खराब कर सकते हैं। भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर पहले से ही न्यूनतम वेतन, अनियमित रोजगार और खराब कार्य परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। ऐसे में 70 घंटे या 90 घंटे के कार्य सप्ताह की मांग उन्हें शोषण के और करीब ले जाएगी। क्या यह साजिश है? यह विचार कि उद्योगपति और बड़े सीईओ संगठित होकर श्रम नियमों को कठोर बनाने की वकालत कर रहे हैं, कई मजदूर संगठनों के लिए चिंता का विषय बन गया है। नए श्रम कानून, जो तीन छुट्टियों का प्रावधान रखते हैं, को भी कई कंपनियां लागू नहीं कर रही हैं। सरकार और समाज की जिम्मेदारी 1. मजदूरों की सुरक्षा: सरकार को श्रम कानूनों को सख्ती से लागू करना चाहिए। 2. सीईओ और उद्योगपतियों की भूमिका: उद्योगपतियों को मजदूरों की भलाई और विकास पर ध्यान देना चाहिए, न कि केवल मुनाफे पर। 3. यूनियनों को मजबूत करना: मजदूर संगठनों को श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होना होगा। निष्कर्ष: एस. एन. सुब्रह्मण्यम और नारायण मूर्ति जैसे बड़े उद्योगपतियों का लंबे काम के घंटे की वकालत करना यह दिखाता है कि भारतीय उद्योग जगत उत्पादन और लाभ में वृद्धि की सोच पर केंद्रित है। हालांकि, यह दृष्टिकोण मजदूरों के लिए लंबे समय में नुकसानदेह हो सकता है। इस मुद्दे पर व्यापक संवाद और संतुलित नीतियों की आवश्यकता है, ताकि देश की प्रगति के साथ श्रमिकों का कल्याण भी सुनिश्चित किया जा सके।

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