Kirti Vardhan Singh
January 30, 2025 at 02:57 AM
*विश्व आर्द्रभूमि दिवस पर विशेष*
*'अमृत धरोहर' पार्वती अरगा*
कीर्तवर्धन सिंह
तीर्थ नगरी अयोध्या से मात्र 28 किलोमीटर दूर
गोण्डा ज़िले में स्थित पार्वती अरगा रामसर साइट प्रकृति संस्कृति का अद्भुत केंद्र बिंदु है। इस बार विश्व आर्द्रभूमि दिवस के आयोजन का अवसर पार्वती अरगा पक्षी विहार को मिली है, जो न केवल इस क्षेत्र बल्कि पूरे उत्तरप्रदेश के लिए गौरव का विषय है। 2 फरवरी को यहाँ देश-विदेश के आर्द्रभूमि विशेषज्ञ जुटेंगे, जिससे इसकी पहचान राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहले की तुलना में और अधिक बढ़ेगी। पार्वती अरगा सहित उत्तरप्रदेश में अंतर्राष्ट्रीय-स्तर पर आर्द्रभूमियों की संख्या 10 है। ये आर्द्रभूमि धरती पर मानव जीवन के अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी है। इसके बिना जीवन की कल्पना बेमानी है। इसलिए हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने इसे *अमृत धरोहर* की संज्ञान दी है।
देश में लंबे कालखंड के बाद पिछले एक दशक में जलीय पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता संरक्षण की अद्भुत मिसाल रखी गई है। प्रोजेक्ट टाइगर, एलिफेंट, लायन, लेपर्ड आदि की सफलता के साथ अन्य सभी वन्य व जलीय जीवों के संरक्षण व संवर्द्धन की मिसाल देख रही है। मिशन लाइफ(LiFE Style For Environment ) और 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान को जनांदोलन बनते हम सभी ने देखा और इसमें बढ़ चढ़ कर भाग भी लिया है। इसकी चर्चा वैश्विक स्तर पर हुई। पूरी दुनिया ने भारत की इस पहल को सराहा है।
हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री मोदी ने टाइगर प्रोजेक्ट के 50 साल पूरे होने के अवसर पर कहा था कि:- "वन्यजीवों के फलने-फूलने के लिए इकोलॉजी का भी फलना-फूलना जरूरी है।" आज देश में 85 रामसर साइट इस बात का प्रमाण है कि केंद्र सरकार जैव विविधता को सुदृढ़ बनाए रखने के अति संवेदनशील है। 2014-2024 के दौरान रामसर स्थलों की सूची में 59 नई वैटलैंड्स जोड़े गए हैं। यह उपलब्धि प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने, हमारे वैटलैंड्स को अमृत धरोहर कहने और उनके संरक्षण के लिए निरंतर काम करने के प्रयास को दर्शाती है। 1982 से 2013 के दौरान, केवल 26 साइटों को रामसर साइटों की सूची में जोड़ा गया था।
हम लोगों के लिए गर्व का विषय है कि पार्वती अरगा पक्षी विहार एक रामसर साइट है। यह मानव, जलीय व वन्य जीवों के लिए आवश्यक है। इसके अपग्रेडेशन का प्रस्ताव तैयार किया गया है। जिसका इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट प्लान शीघ्र ही रिलीज किया जाएगा।
आने वाले समय में यहाँ विभिन्न तरह की गतिविधियों को विकसित किया जाएगा। जिससे यहाँ पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ रोजगार के नए द्वार भी खुले। साथ ही यहाँ आने वाले पर्यटकों को रोमांच का एहसास हो, इसे ध्यान में रखकर टिकरी में जंगल सफारी को लेकर प्रस्ताव पर काम हो रहा है। इसके शुरू होने से अयोध्या आने वाले पर्यटकों को कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रकृति के अनुपम उपहार को देखने का मौका मिलेगा। इसे सरयू नहर से जोड़ने का भी प्रस्ताव है। रामसर साइटें देश की सदियों पुरानी संस्कृति और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने की परंपरा को भी आगे बढ़ाने का भी माध्यम है। इस कड़ी में यह प्रयास किया जा रहा है। यह रामसर साइट 35 से अधिक विभिन्न प्रजाति के पक्षियों का घर है। प्रवासी पक्षी एशिया व यूरोप के अन्य देशों से यहाँ आते हैं। इनमें ब्राउन हेडेड गल यानि भूरा सिर ढोमरा, ब्लैक हेडेड गल यानि काला सिर ढोमरा, जल कुकरी, लालसर, सुर्खाब, नीलसर, बेतुल, बतख, कामनकूट (ठेकड़ी), सफेद रंग के गैरी पक्षियों छोटी मुर्गाबी, नकटा, गिरी व सुर्खाब, काज, चट्टा व लगलग प्रमुख हैं। इसके अलावा स्थानीय व बाहरी पक्षियों में काला तीतर, भूरा तीतर, बटेर, रंगीन बटेर, लक बटेर, पहाड़ी भट तीतर, भट तीतर, जंगली मैना, अगरका, खजन लाल मोनिया, बया, छपका, नीलकंठ, धनेश, कठफोड़वा, बाज, चील और हरियल पक्षी शामिल हैं। जो पर्यटकों को लुभाते है। यहाँ विभिन्न तरह के पौधों की प्रजाति भी पाई जाती है। यहां पौधों के 73 परिवारों से संबंधित लगभग 283 प्रजातियाँ और 1 उप-प्रजातियाँ हैं।
मुझे बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि जलीय पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता की दिशा में देश के लोगों के भीतर वर्षों से व्याप्त उदासीनता कुछ वर्षों में कम हुई है। प्रकृति प्रदत्त संसाधनों के प्रति लोग सजग हुए हैं। इस विश्व आर्द्रभूमि दिवस के लिए आयोजित जागरूकता अभियान में देशभर में 2 हजार से अधिक स्कूल व कालेज के छात्रों ने शिरकत की। इसमें बड़ी संख्या में गोंडा के भी छात्र है। यहाँ अच्छी संख्या में वेटलैंड मित्र भी बने हैं। मानव व प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं और इनके बीच केंद्र व राज्य की सरकार ने बेहतरीन सामंजस्य स्थापित किया है। ऐसे प्रयासों से मानव, प्रकृति, पर्यावरण, वन्यजीव व आर्द्रभूमि के बीच एक संतुलन बनने के साथ पीपल-कनेक्ट की भावना भी विकसित हुई, जो पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
(लेखक केंद्रीय विदेश व पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री हैं)
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