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January 18, 2025 at 03:06 PM
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> *`किसी के बारे में राय बनाने में जल्दबाज़ी ना करें`*
एक रोज़ मैंने अपने जिगरी दोस्त को फोन किया और कहा:
"आज शाम को मैं अपनी बीवी के साथ तुम्हारे घर आऊंगा।"
दोस्त ने यह सुनते ही कहा:
"मरहबा! खुश आमदीद! ... बड़े अच्छे वक़्त पर याद किया।लेकिन मेरी तुमसे एक छोटी-सी दरख्वास्त है।"
मैंने पूछा, "वो क्या?"
वो कहने लगा, "जैसा कि तुम बड़े शहर में रहते हो, तो मैं चाहता हूँ कि तुम वहाँ से आते हुए वहाँ की सबसे मशहूर और महंगी बेकरी से दो पाउंड का ताज़ा केक भी लेते आओ। और उसके साथ फलां चॉकलेट, फलां बिस्किट और फलां जूस भी लेते आना।"
मैंने कहा, "क्यों? क्या ये हमारी दावत का इंतजाम है?"
दोस्त ने कहा:
"नहीं, ये सारी चीजें मेरे बेटे की पसंदीदा हैं। आज मैं अपने बेटे के साथ उसकी कामयाबी का जश्न मनाना चाहता हूँ, लेकिन इस वक्त बाहर नहीं जा सकता। और मैं उसे इस बात का एहसास दिलाए बिना सरप्राइज़ देना चाहता हूँ।"
मैंने दोस्त की फरमाइश के मुताबिक सारी चीजें खरीदीं। चूंकि लग्ज़री बेकरी थी इसलिए बिल भी खासा बड़ा बन गया। मैंने रकम अदा की, सामान लिया और दोस्त के घर की तरफ निकल पड़ा।
वहाँ पहुँचा तो थोड़ी देर बाद ही उसने अपने बेटे को सरप्राइज़ दिया और जश्न का माहौल बना दिया। उस शाम को उसने खुशियों से भर दिया।
रात को जब मैं दोस्त से वापसी की इजाज़त लेने लगा, तो उसने कहा:
"मेरे पास केक का एक बड़ा टुकड़ा बचा है। कृपया इसे अपने बच्चों के लिए ले जाइए।मना मत कीजिएगा "
उसने वही डिब्बा जबरदस्ती मुझे दे दिया जो मैं लाया था। न तो उसने मुझे मेरे खर्च की रकम दी और न ही उसका ज़िक्र तक किया। उसने केक का टुकड़ा देकर मुझे विदा कर दिया ।
मैं वहाँ से रवाना हुआ और रास्ते भर उसे कोसता रहा। साथ ही उस वक़्त को भी कोसता रहा जब मैंने उससे कहा था कि उसके साथ वक्त बिताने आ रहा हूँ।
गाड़ी में मेरी बीवी ने मुझे तसल्ली देते हुए कहा, "शायद तुम्हारा दोस्त पैसे देना भूल गया हो। वो कल ज़रूर याद करेगा और माफी मांगते हुए पैसे भिजवा देगा।"
लेकिन मैं गुस्से में उसे बुरा भला कहता रहा,
"उसने मुरव्वत में भी पैसों का नहीं पूछा। ये रवैया दोस्ती का इस्तेहसाल (शोषण) और अदब व एहतराम के खिलाफ है।"
मैं यूँ ही सारे रास्ते बड़बड़ाता रहा।
घर पहुँचा तो बीवी से कहा, "जो केक का टुकड़ा उसने दिया है, वो बच्चों को खिला दो। कम से कम कुछ तो सुकून मिलेगा।"
उसने केक का डिब्बा खोला, तो उसमें केक का एक टुकड़ा और मेरी पूरी रकम के साथ शुक्रिया का एक खत था।
उस खत पर लिखा था:
"मेरे दोस्त,बिल की एक बड़ी रकम होने के बावजूद मैं जानता हूँ कि तुम मुझसे हरगिज़ पैसे किसी सूरत में ना लेते । इसलिए मैंने तुम्हें बताए बिना ये पैसे डिब्बे में रख दिए हैं।"
मैं हैरान कम और शर्मिंदा ज्यादा था। उस वक्त समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ।
मैंने अपनी बीवी से पूछा, "इस दौरान मैंने दोस्त के बारे में जो सोच बना ली थी, क्या मुझे उससे माफी मांगनी चाहिए?"
उसने कहा:
"तुम्हारे बारे में उसका जो हुस्न-ए-ज़न (अच्छा गुमान) है, उसे कायम रहने दो। और खुद भी दूसरों के लिए अच्छा गुमान रखो।"
`हमारे ज़्यादातर मसले हमारे क़ौल-ओ-फे़ल (बातों और कामों) में पैदा हुई गलतफहमियों और हमारे रवैये की गलत तशरीह (व्याख्या) की वजह से होते हैं। हालांकि हकीकत में वैसा नहीं होता`
काश, हम एक-दूसरे के लिए भी ऐसे ही अच्छे बहाने बना पाते, जैसे मेरे दोस्त ने केक के टुकड़े के बहाने डिब्बे में पैसे रख दिए थे।
#मनकूल
हिन्दी ट्रांसलेशन : महताब अहमद
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