आचार्य श्री विद्यासागर
February 5, 2025 at 02:55 PM
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_यहां वहां, जहां तहां, मत पूछो, कहां कहां...._
_लगभग ग्यारह महीने बाद पहली बार रविवार को चंद्रगिरि के प्रवेश द्वार में आते ही मन उछलने लगा, कि आज बड़े दिनों बाद आचार्यश्री के दर्शन मिलेंगे....._
_प्रवेश करते ही बाई ओर संत भवन की ओर आंखे ठहर गई, लगा दौड़ कर पहुंच जाऊ......_
_लेकिन यह क्या हुआ... पिछले कई वर्षों से आचार्यश्री के संत भवन में विराजित रहने के समय द्वार बंद रहने की परम्परा रही है_ _ताकि संत भवन में हम जैसे अतिउत्साही भक्त कमबख्त, वक्त, बेवक्त शोर गुल कर उनकी साधना में बाधक न बने,,, लेकिन आज तो संत भवन का द्वार भी खुला है,,, और अंदर बाहर कोई भीड़ भाड़ भी नहीं दिख रही......_
_मंदिर में दर्शन करते समय के लगा शायद संत भवन के बगल के द्वार से आचार्यश्री मंदिरजी में पधार रहे हों_
_फिर लगा, हो न हो आचार्यश्री शौच के लिए जंगल की ओर निकल गए होंगे...._
_सो इत्ते दिनों बाद आचार्यश्री के दर्शन और गुरुचरणों के पीछे पीछे चलने का लोभ रोक नहीं पाया_ _सो जंगल मार्ग प्रतिभास्थली की ओर, बढ़ने लगा, बढ़ते बढ़ते नजर बाईं ओर निर्माणाधीन जिनालय की ओर गई लगा कहीं गुरुजी जिनालय के निर्माण की प्रगति देखने गए हों_
_फिर दाहिनी ओर बने चौके परिसर से अनेकों चौकों से लगातार आती हुई कुकर की सीटियों के साथ साथ भ्रम हुआ कि, चौकों से श्राविकाओं की आवाज़ों से भ्रम हो रहा था .... कि उनकी प्रमुख चर्चा का विषय, आज आचार्यश्री का पड़गाहन किस चौके को मिल सकता है...._
_प्रतिभास्थली की ओर बड़ी दूर तक देखने के बाद भी गुरुदेव के आने के कोई आसार नहीं दिख रहे थे....._
_बाईं ओर विशाल पांडाल से संगीतमय अभिषेक पाठ के स्वर एवं मंत्रोच्चार सुनाई दे रहे थे...._
_कुछ ही दूर बढ़ पाया था कि..... दाई ओर सामने के अतिथि भवन के आंगन देख मन बैठने लगा...._ _विगत वर्ष इसी स्थान पर ही तो कष्टकर, अप्रिय दृश्य देखा था, जहां चिरपरिचित सिंहासन पर आचार्यश्री की निर्जीव सी देह विराजित थी....._
_अंतिम समाधि साधना कक्ष में पहुंच कर लगा इतने छोटे से कक्ष के पाटे में इतने बड़े महासाधक, महातपस्वी, महामनीषी, अनियत विहारी, निर्मोही आचार्यश्री अपनी देह से विरक्त होकर कैसे आत्मस्थ हो गए होंगे...._
_फिर भी विशाल पांडाल में भी कई बार ऐसा लगा कि, शायद भीड़भाड़ से बचने पीछे के द्वार से आचार्यश्री आने वाले होंगे..... लेकिन यह सिर्फ भ्रम ही था,_
_दोपहर में आचार्यश्री की पूजन होती थी लेकिन आचार्यश्री चंद्रगिरि में होते तो मंच पर आते...._
_कल ही तो दोपहर में प्रतिभास्थली की दीदियों द्वारा आचार्यश्री के प्रिय प्रकल्प हथकरघा पर प्रस्तुति हो रही थी_ _हथकरघा को लेकर मंच पर बड़ी स्क्रीन पर एक छोटी वीडियो चल रही थी, अचानक स्क्रीन पर आचार्यश्री दिखे और उसी चिरपरिचित मुद्रा में आचार्यश्री ने मुस्कुराते हुए कहा... रुको...रुको.... लौट चलो..... उनके मुख से उनका प्रिय हाइकु सुन कर मैं तो क्या पूरे पांडाल तो क्या.... आचार्यश्री को आज मंच पर देख मुनिराज गण, समस्त माताजी संघ हर्षित हो गए_ _सभी को लगा कि आखिरकार हम सभी की दुर्लभ भावना सफल हुई और आचार्यश्री अचानक आज मंच पर आ ही गए आखिर भक्तों की भावना तो गुरुदेव भी जानते है_
_उपस्थित विशाल जन समुदाय आचार्यश्री के जयघोष करते हुए लगातार ताली बजाते रहे_
_आज पहली बार सभी के आंखों में प्रसन्नता का सागर हिलोर मार रहा था लेकिन स्क्रीन पर वीडियो बंद होते ही सभी भौचक्के से एक दूसरों को देखने लगे_
_आज सबको लगा.... क्या हमने जो देखा क्या वह सपना था???_
_आज सभी को लगा और अपने आप से एक ही शिकायत थी कि...._
_उनका स्वर्गीय सुंदर सपना अचानक कैसे चूर चूर हो गया_
_कुछ पल पूर्व हर्षित, रोमांचित समूचा मंच और पांडाल भी हतप्रभ सा जड़वत हो गया लगा आज सभी के आंखों केआंसू सभी तटबंध तोड़ चंद्रगिरि को डुबो देने आतुर हों_
_आज से पहले जब भी शाम को आचार्य भक्ति के बाद चंद्रगिरि से वापस जाता था तब मन में एक उत्साह होता था कि अगली बार जल्दी आऊंगा...._
_लेकिन आज वापस जाते समय अवरुद्ध गला, आंसुओं का सैलाब सभी बंधन तोड़ बाहर आने मचल उठा....._
_टूटे फूटे शब्द भावों को सहेजता_
_*राजेश जैन भिलाई*_
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