विद्यावंशी ~ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
February 18, 2025 at 02:49 AM
गुरुदेव की अंतिम साधना – मृत्यु से परे जाग्रति का प्रकाश आचार्य श्री के जीवन का हर क्षण संयम, तपस्या और आत्मशुद्धि का उदाहरण था।जब शरीर ने अपनी सीमा को छू लिया, जब सांसों की गति धीमी हो गई, तब भी गुरुदेव पूर्णतः जाग्रत थे। न कोई भय, न कोई मोह, न किसी प्रकार की पीड़ा का आभास—बस एक दिव्य शांति, एक अलौकिक तेज। उन्होंने मृत्यु को एक साधारण घटना नहीं, बल्कि आत्मा की परिपक्वता का एक महत्वपूर्ण पड़ाव बना दिया। उनका शरीर शांत हुआ, परंतु उनका प्रकाश कहीं खोया नहीं। वह अनंत में विलीन होकर भी अमर हो गया। जैसे सूर्य अस्त होता है, परंतु उसकी रोशनी आकाश में देर तक बनी रहती है, वैसे ही गुरुदेव की उपस्थिति आज भी हर भक्त के हृदय में, उनके विचारों में, उनके मार्गदर्शन में अनुभव की जा सकती है। उनका जीवन एक प्रेरणा था, और उनकी मृत्यु भी एक उपदेश बन गई— "शरीर नश्वर है, पर आत्मा अमर है। संयम और साधना के द्वारा इस सत्य को जानो और जीओ।" अनंत नमन ऐसे महापुरुष को, जिन्होंने जगत को आत्मशुद्धि और धर्म का वास्तविक स्वरूप दिखाया।
✍🏻 *विद्यावंशी 🌈*
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