कविताएँ और साहित्य 🥀
कविताएँ और साहित्य 🥀
February 21, 2025 at 03:58 PM
मातृभाषा की तरफ जब मुड़ता हूँ / विनोद मिश्र (पूरी कविता...) जब कोई पूछता है - बताओ! तुम्हारी मातृभाषा क्या है? चरे गये खेत की तरह उदास हो जाता हूँ हमारा जनम वहाँ हुआ जहाँ लड़के अवधी-भाषी लड़कियों से ब्याहे जाते और लड़कियाँ भोजपुरी से दो शक्तिशाली भाषाओं के बीच जन्मे हम स्वभावतः कट्टर नहीं होते हमारी माँएँ सोहर गाती हैं और बहनें बिदेसिया हम जब पश्चिम जाते हैं भोजपुरिया कहते हैं लोग और जब पूरब में होते हैं मज़ाक बनाया जाता है अवधी के क्रियापदों का हम शक्तिशाली मातृभाषाओं के झंडाबरदार नहीं रहे न ही किसी भाषा पर एकाधिकार की कुण्डली मार के बैठे; हम बस भावों के प्रेमी बने रहे हमने दो भाषाओं के बीच की जीयस ज़मीन को बचाए रखा जबरन कब्जाया नहीं... आज जब हम अपनी कथित मातृभाषा में बोलते हैं माँ बस मुस्कुराती है वह अपनी मातृभाषा में कहती है - "बहुत अंगरेजी बूकत हया बबुआ! तनी हिन्दियौ में बोलल करा" अफ़सोस है! माँ की मातृभाषा हमारी मातृभाषा कभी नहीं बन पायी... ★ अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस #internationalmotherlanguageday
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