Guru Nanak Blessings 🙌
February 27, 2025 at 03:53 PM
*कल के सत्संग का ज्ञान*👏
*!! धन गुरु नानक जी !!*
*!! श्री जपजी साहिब जी !!*
*!! DAY 59 !!*
*👉!! सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मानु !!*
*👉!! सुणिऐ लागै सहजि धिआनु !!*
* *सुणिऐ :- भाव (परमात्मा का नाम) सुनने से, * पड़ि पड़ि :- भाव विद्या पढ़ के, * पावहि :- भाव पाते हैं, * मानु :- भाव आदर, मान, इज़्ज़त, * लागै सहजि :- भाव सहज अवस्था मे, अडोलता मे , * धिआनु :- भाव सुरति, बिरती*
*अर्थ :- परमात्मा का नाम स्रवण (सुनने से) करने से, नाम मे सुरति जोड़ने से, जो आदर मनुष्य, विद्या पढ़ के प्राप्त करते हैं, वह आदर भक्त जनों को परमात्मा के नाम मे जुड़ के ही मिल जाता है, नाम सुनने के सदका अडोलता मे चित्त की बिरती टिक जाती है, भाव सहज अवस्था मे सुरति टिक जाती है !!*
*!! हम चाहे संस्कारी पढ़ाई करे या धार्मिक पढ़ाई करे हमे आदर मिलता है मान मिलता हमारी इज़्ज़त होती है, कहते है न लोग की बहुत पढ़ा लिखा है ऐसा आदर मिलता है, पर जब हम नाम के साथ सुर्त जोड़ते है तो हमे लोक और परलोक दोनों जगह आदर मिलता है, गुरु साहिब जी के पास जो बाणी पढ़ते है उनकी भी वडिआई होती है, पढ़ाई से आदर कैसे हुआ पहले सुना तो पढ़ा, परमात्मा का नाम सुना फिर जपा लोक परलोक मे आदर मिला, गुरु साहिब जी के पास बाणी पहले सुनी फिर पढ़ी तो वडिआई हुई, ये सब सुनने सो होंगा "सुणिऐ पड़ि पड़ि पावहि मानु" !!*
*!! अपने बच्चों को भी नाम से जोड़े गुरबाणी से जोड़े, नाम की ताक़त इतनी वर्तेंगीं बच्चे की संसारी तरक्की होनी होनी है, हम कहते है अभी बचे की उमर नहीं है नाम जपने की, कौन उठेंगा अमृतवेला बचे का स्कूल मिस होंगा, बचा अभी से नाम नहीं जपेंगा तो फिर आगे चलके माता पिता पछताते है की क्यू नहीं बचे को नाम से जोड़ा, गुरबाणी का शब्द साथ मे चलता है पढ़ाई मे भी आनंद आता है, बच्चा नाम जपने लगे तो बच्चा संस्कारी और आज्ञाकारी बन जाता है, एक माता चाहे अपने बच्चे को भगत बना सकती है एक्टर भी बना सकती है, माता का फर्ज है अपने बच्चों को नाम से जोड़े !!*
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* *सहज अवस्था भाव :- सह + ज , सह = साथ, ज = जन्मा, = वह स्वभाव जो शुद्ध-स्वरूप आत्मा के साथ जन्मा है*,
** *सहज अवस्था भाव :- शुद्ध-स्वरूप आत्मा का अपना असली धर्म, माया के तीनों गुणों को पार करके ऊपर की अवस्था, तुरिया अवस्था, शांति, अडोलता*
** *सहज अवस्था भाव :- सारे जगत को प्रभू पिता का एक परिवार समझने की सूझ, प्रमात्मा से जान-पहिचान*
*!! सहजि धिआनु, सहज अवस्था जैसे की, संत मत, सतगुरु, ब्रह्मज्ञानी, सब अडोल अवस्था मे है जो कभी डोलते नहीं, सहज अवस्था के चार नाम है,*
*(1) अडोल स्थिर, (2) परिवर्तन रहित , (3) जिसका एक रस हो, (4) आनंद रूप, इन अवस्थाओं को सहज अवस्था कहते है, माया से परे इंसान होता है तभी सहज अवस्था मे जाता है !!*
*🙏!! श्री गुरु रामदास पातशाह जी आप जी कहे रहे है, " मति प्रगास भई हरि धिआइआ गिआनि तति लिव लाइ ॥ अंतरि जोति प्रगटी मनु मानिआ हरि सहजि समाधि लगाइ" हे भाई, आत्मिक आनंद की सूझ के द्वारा जिस मनुष्य ने जगत के मूल-प्रभु मे लिव जोड़ के उसका स्मरण किया, उसकी मति मे आत्मिक जीवन का प्रकाश हो गया, उसके अंदर परमात्मा की ज्योति प्रकट हो गई, आत्मिक अडोलता ( सहज अवस्था) के द्वारा परमात्मा की याद मे मन एकाग्र करके उसका मन उस याद मे मान गया !!*
*🙏!! श्री गुरु अमरदास जी पातशाह आप जी कहे रहे है, " गुर विणु सहजु न आवई लोभु मैलु न विचहु जाइ ॥ खिनु पलु हरि नामु मनि वसै सभ अठसठि तीरथ नाइ ॥ सचे मैलु न लगई मलु लागै दूजै भाइ", भाव ये अडोल अवस्था (सहज अवस्था) सत्गुरू के बिना नहीं आती, और ना ही मन मे से लोभ मैल दूर होती है, अगर एक पलक भर भी प्रभू का नाम मन मे बस जाए (अर्थात, अगर जीव एक मन हो के एक पलक भर भी नाम जप सके) तो, मानो, अढ़सठ तीर्थों का स्नान कर लेता है, क्योंकि सच्चे (प्रभू) मे जुड़े हुए को मैल नहीं लगती !!*
*🙏!! श्री गुरु रामदास जी पातशाह आप जी कहे रहे है " हरि का नामु अगोचरु पाइआ गुरमुखि सहजि सुभाई ॥ नामु निधानु वसिआ घट अंतरि रसना हरि गुण गाई ॥ सदा अनंदि रहै दिनु राती एक सबदि लिव लाई ॥ नामु पदारथु सहजे पाइआ इह सतिगुर की वडिआई ' !!*
*!! भाव गुरु पातशाह आप जी कहे रहे है, जो मनुष्य गुरू की शरण पड़ता है, वह आत्मिक अडोलता (सहज अवस्था) मे टिक के प्रेम मे लीन हो के, उस परमात्मा का नाम का खजाना हासिल कर लेता है जिस तक ज्ञान-इन्द्रियों की पहुँच नहीं हो सकती, उस मनुष्य के हृदय मे नाम-खजाना आ बसता है, वह मनुष्य अपनी जीभ से परमात्मा के गुण गाता रहता है, एक परमात्मा की सिफत-सालाह के शबद मे सुरति जोड़ के वह मनुष्य दिन-रात सदा आनंद मे रहता है, आत्मिक अडोलता से वह मनुष्य कीमती हरि-नाम प्राप्त कर लेता है, यह सारी गुरू की ही बरकति है !!*
*!! "भाई रे गुर बिनु सहजु न होइ" भाव हे भाई, गुरु की शरण के बिना मनुष्य के अंदर आत्मिक अडोलता (सहज अवस्था) पैदा नहीं होती !!*
*!! नानक भगता सदा विगासु सुणिऐ दूख पाप का नासु !!*
*अर्थ :- हे नानक, परमात्मा के नाम में सुरति जोड़ने वाले भक्तजनों के हृदय में सदा ही आनन्द बना रहता है, क्योंकि परमात्मा की सिफत-सलाह सुनने से मनुष्य के दुखों व पापों का नाश हो जाता है !!*
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