Arpit sir Reasoning
February 21, 2025 at 04:01 PM
*गीता के दूसरे अध्याय में 47th श्लोक है*
*कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन*
*मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि.*
*अर्थात् : हमारा नियंत्रण हमारे द्वारा किए जाने वाले कर्मों पर है, उसके बदले परिणाम क्या होगा? उस पर नही.*
*तो इसीलिए सही भावना एवं उद्देश्य के साथ अपने कर्म करते चलिए, बिना किसी को नुकसान पहुंचाए.*
*आपका काम है अपना कर्म पूरी ईमानदारी के साथ करना. उसके बाद उसका फल क्या होगा, कैसा होगा, फल मिलेगा या नही मिलेगा, कब तक मिलेगा. ये सब आपके हाथ में नही है और जो चीज़ आपके हाथ में है ही नही उसके लिए क्यों ही इतना सोचना.*
*अपना ध्यान लक्ष्य की ओर केंद्रित रखिए और अपना कर्म करते चलिए.*
*All The Best For The Exam.*
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