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February 28, 2025 at 12:29 PM
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> *`Ramzan की क़दर कैसे करें... Part 1`*
✍ मौलाना इमदाद उल हक़ बख्तियार
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Ramzan-ul-Mubarak का महीना अल्लाह जल शानहु की बड़ी अज़ीम नेमत है। अल्लाह तआला के बातौफ़ीक़ बंदे ही इसकी क़दर जानते हैं और इसके अनवार व बरकात से पूरे तौर पर मुस्तफ़ीद होते हैं; चूँकि रसूलुल्लाह ﷺ जब रजब के महीने का चाँद देखते तो यह दुआ फ़रमाया करते थे:
**اللهم بارک لنا فی رجب وشعبان وبلغنا رمضان․** (मजमउज़-ज़वाइद: 4774)
"ऐ अल्लाह! हमारे लिए रजब और शाबान के महीनों में बरकत अता फ़रमा और हमें रमज़ान के महीने तक पहुँचा दीजिए।"
Ramzan से दो महीने पहले ही इसका इंतज़ार और इश्तियाक वही कर सकता है जिसे Ramzan-ul-Mubarak की सही क़दर व क़ीमत मालूम हो।
अगर हम भी चाहते हैं कि Ramzan की बरकतों से महज़ूज़ हों तो हमारे ऊपर लाज़िम है कि इस मुबारक महीने की क़दर करें, इस महीने के आमाल और इबादात को पूरे एहतिमाम के साथ अदा करें, अदना कोताही से भी मुकम्मल एहतियात की कोशिश करें, अल्लाह और उसके रसूल ﷺ के फ़रमान के मुताबिक़ यह मुक़द्दस महीना गुज़ारें, नफ़्स और शैतान से दूरी इख़्तियार करें और नीचे दिए गए कामों को पाबंदी और अच्छे तरीक़े से अदा करें।
> *रोज़े का एहतिमाम*
Ramzan-ul-Mubarak की सबसे बड़ी इबादत रोज़ा रखना है। अल्लाह तआला का इरशाद है:
**﴿یَا أَیُّہَا الَّذِیْنَ آمَنُواْ کُتِبَ عَلَیْْکُمُ الصِّیَامُ کَمَا کُتِبَ عَلَی الَّذِیْنَ مِن قَبْلِکُمْ لَعَلَّکُمْ تَتَّقُونَ﴾․** (सूरतुल-बक़रा: 183)
"ऐ ईमान वालो! तुम्हारे ऊपर रोज़े इसी तरह फ़र्ज़ किए गए हैं जैसे पहली उम्मतों पर फ़र्ज़ किए गए थे, ताकि तुम तक़वा इख़्तियार करो।"
और रसूलुल्लाह ﷺ का इरशादे-गिरामी है:
*”جعل اللہ صیامہ فریضة“* (शिअबुल-ईमान, बैहक़ी, हदीस नंबर: 3336)
"यह ऐसा महीना है जिसके रोज़े अल्लाह ने फ़र्ज़ क़रार दिए हैं।"
Ramzan के रोज़ों का एक बड़ा फ़ायदा यह है कि इससे पिछले तमाम गुनाह माफ़ हो जाते हैं। आप ﷺ का इरशाद है:
**”من صام رمضان ایمانا واحتسابا غفرلہ ما تقدم من ذنبہ“** (बुख़ारी: 38, मुस्लिम: 760)
"जो ईमान की हालत और सवाब की नीयत से Ramzan के रोज़े रखते हैं, उनके पिछले सब गुनाह माफ़ कर दिए जाएँगे।"
इसी तरह यह रोज़े क़यामत के दिन हमारी सिफ़ारिश करेंगे और जहन्नम के अज़ाब से बचाने में अहम किरदार अदा करेंगे। (शिअबुल-ईमान, बैहक़ी, हदीस नंबर: 3336)
Ramzan-ul-Mubarak के रोज़ों की क़दर व क़ीमत और अहमियत का अंदाज़ा आप ﷺ के इस मुबारक इरशाद से भी लगाया जा सकता है:
**”من افطر یوما من رمضان من غیر رخصة ولا مرض، لم یقض عنہ صوم الدہر کلہ وإن صامہ“** (तिर्मिज़ी: 723)
"जो शख़्स सफ़र या बीमारी जैसे किसी शरई उज्र के अलावा Ramzan का एक रोज़ा भी छोड़ दे, फिर अगर वह उसकी क़ज़ा के तौर पर उम्र भर भी रोज़े रखता रहे तो Ramzan के छूटे हुए रोज़े का हक़ अदा नहीं हो सकता।"
इन तमाम इरशादात-ए-नबवी से यह क़ीमती हिदायत मिलती है कि Ramzan-ul-Mubarak के महीने में तमाम मुसलमानों को रोज़ों का एहतिमाम करना चाहिए। बिना किसी उज्र-ए-शरई के रोज़े क़ज़ा करना इंतिहाई दर्जे की महरूमी होगी।
> *गुनाहों से बचना**
Ramzan-ul-Mubarak में सबसे अहम और बुनियादी चीज़ यह है कि हम गुनाहों से मुकम्मल परहेज़ करें। गुनाहों के साथ रोज़ों की बरकात और Ramzan के अनवार का हक़ीक़ी लुत्फ़ नहीं मिल सकता। आप ﷺ का इरशादे-आली है:
**”وإذا کان یوم صوم أحدکم فلا یرفث ولا یصخب، فإن سابہ أحد أو قاتلہ فلیقل إنی أمرأ صائم“** (बुख़ारी: 1904)
"जब किसी का रोज़ा हो तो वह फ़ोह्श और गंदी बातें और शोर-ओ-शग़ब बिलकुल न करे और अगर कोई दूसरा शख़्स उससे उलझे और ग़लत बातें करे फिर भी रोज़ेदार उससे कोई सख़्त बात न कहे, बल्कि सिर्फ़ इतना कह दे कि जनाब! मेरा रोज़ा है।"
इस हिदायत में इशारा है कि रोज़े की ख़ास फ़ज़ीलतें और बरकतें उन्हीं को हासिल होती हैं, जो गुनाहों से, हत्ता कि बुरी और नापसंदीदा बातों से भी परहेज़ करते हैं।
हमें इस बात का भी ख़याल रखना चाहिए कि अल्लाह तबारक व तआला हमारे रोज़ों की हिफ़ाज़त के लिए, सरकश शयातीन को क़ैद कर देते हैं, जहन्नम के तमाम दरवाज़े बंद कर देते हैं, यानी शर के तमाम रास्ते बंद कर देते हैं। जब अल्लाह की तरफ़ से हमारे रोज़ों की हिफ़ाज़त का इतना एहतिमाम है तो अगर हम खुद अपने रोज़ों को ग़लत चीज़ों से महफ़ूज़ न रख सकें तो यह कितनी बेग़ैरती की बात होगी?!
> *इफ़्तार की अहमियत*
Ramzan के मुबारक महीने में जहाँ अपने और अपने अहले ख़ानदान के लिए इफ़्तार का इंतज़ाम करना बाइस-ए-सवाब है, वहीं मुसाफ़िरों, ग़रीबों और राहगीरों का भी हमें ख़याल रखना चाहिए। यह एक बड़ी फ़ज़ीलत और फ़ायदे की चीज़ है। इस फ़ज़ीलत को हासिल करने का मौक़ा हमें सिर्फ़ Ramzan के महीने में ही पूरे तौर पर मिलता है।
............. जारी है
हिन्दी ट्रांसलेशन : महताब अहमद
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