Dr. Azam.type
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February 4, 2025 at 02:03 PM
रोज़ा और इफ़्तार, दोनों अपने आप में अलग-अलग तजुर्बे हैं, लेकिन इन दोनों में एक गहरी हिकमत छुपी हुई है। इस ज़िंदगी की असलियत को समझने के लिए रोज़ा एक बेहतरीन ज़रिया है। दिनभर खाने, पीने और कुछ दूसरी चीज़ों से बचने का हुक्म दिया गया है, और यही चीज़ पूरी ज़िंदगी पर लागू होती है। एक सच्चे मोमिन को पूरी ज़िंदगी उन्हीं कामों से बचना होता है, जिन्हें अल्लाह ने मना किया है। वह अपनी ज़िंदगी को "रोज़े" की तरह गुज़ारता है—मतलब, अल्लाह के हर हुक्म की पाबंदी करता है और हर बुरी चीज़ से दूर रहता है। असल में यह दुनिया इम्तिहान की जगह है। रोज़ा इसी इम्तिहान का एक छोटा सा नमूना है। हमारी ज़िंदगी का मकसद है कि हम नेकी करें, अल्लाह के बताए हुए रास्ते पर चलें, और हर उस चीज़ से बचें जिसे उसने हराम ठहराया है। इसी आज़माइश का इनाम आख़िरत में दिया जाएगा, जहां अल्लाह की रहमत और बेहताशा इनामात हमारी इंतज़ार कर रही हैं। जिस तरह रोज़ा हमें सब्र और आज़माइश का अहसास कराता है, उसी तरह इफ़्तार हमें आख़िरत में मिलने वाले इनामों की झलक दिखाता है। Book 📚 Spirit of Ramzan Pg.28 MMaulana Wahiduddin Khan

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