
Farhan Alam Rahmani
February 13, 2025 at 04:49 PM
कभी शब-ए-मेराज़ कभी शब-ए-बरात तो कभी शब-ए-क़द्र देता हैं कितना मेहरबान हैं रब बख़्शिश के हज़ारों वसीले देता हैं.!!इबादत की रात शब-ए-बारात की सभी को दिली मुबारकबाद।
