दीन सिखाओ बेटी बचाओ
दीन सिखाओ बेटी बचाओ
February 22, 2025 at 05:28 AM
मातृभाषा उर्दू और मुसलमानों की मेहनत ******************************** मुग़ल काल में हिंदुस्तान की सरकारी भाषा फारसी थी , जो भारत के आम लोगों की भाषा नहीं थी मुसलमान भी घरों में फारसी नहीं बोलता था वह अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न भाषाएं बोलता था पर सरकारी भाषा होने के नाते फारसी शिक्षा की भाषा थी दीनी पुस्तकें भी फारसी में थीं जब मुग़ल साम्राज्य कमजोर पड़ा और देश में अंग्रेजी सरकार आई उस ने फ़ारसी के स्थान पर हिंदुस्तान की किसी भाषा को सरकारी भाषा बनाना चाहा उस समय उर्दू ही ऐसी भाषा थी जो पेशावर से मद्रास तक और गुजरात से कलकत्ता तक समझी और बोली जाती थी अंग्रेजों ने भी अपने अफसरों व अधिकारियों से उर्दू सीखने को कहा और इस के लिए सन् 1800 में फोर्ट विलियम कॉलेज कलकत्ता की स्थापना की जहां पूरे हिन्दुस्तान से उर्दू विद्वानों को इकट्ठा किया गया उर्दू में कोर्स की किताबें तैयार की गई और आखिर कार 1838 में अंग्रेजी के साथ उर्दू सरकारी भाषा क़रार पाई जैसा कि मैं बता चुका हूं पहले दीनी पुस्तकें फ़ारसी में थीं उलमा को अंदाजा हो गया था कि अब इस देश में फ़ारसी का भविष्य नहीं है इसलिए वह सचेत हो गएं और दीनी पुस्तकों को उर्दू में अनुवाद करने का काम शुरू किया लगभग 1799 में शाह वलीलुललाह देहलवी के बेटे शाह अब्दुल कादिर ने पहली बार कुरान का उर्दू भाषा में तर्जुमा किया इस के साथ ही उर्दू में दूसरी किताबें लिखी जाने लगीं उर्दू में समाचार पत्रों का छपना भी शुरू हुआ शुरू में उर्दू में फ़ारसी भाषा का प्रभाव था पहले गालिब और उसके बाद सर सैयद अहमद खां और उनके साथियों ने उर्दू में फारसी का प्रभाव कम करके उसे आसान भाषा बनाया इसी प्रकार उल्मा ने भी काफ़ी मेहनत की जिस का नतीजा यह हुआ कि सिर्फ 100 वर्षों में इस्लामी लिटरेचर उर्दू में हस्तांतरित हो गया आरबी व फ़ारसी के बाद उर्दू विश्व की तीसरी ऐसी भाषा हो गई जिसमें सबसे अधिक इस्लामी पुस्तकें पाई जाती थीं हिंदुस्तानी मुसलमानों का यह इतना बड़ा काम है जिसकी मिसाल विश्व में और कहीं नहीं मिलती एक भाषा से दूसरी भाषा की ओर हस्तांतरण एक असंभव जैसा दिखने वाला काम हम ने कर दिखाया इस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हम में कितना दम है और हम ने कितने बड़े बड़े काम किए हैं वह भी बगैर किसी सरकारी सहयोग के कुछ लोग राजनीति में मुसलमानों की कमजोरी को लेकर सीना पीटते हैं कुछ लोग हालात की परेशानियों पर रोते हैं कोई सरकारी नौकरियों में हमें दलितों से पीछे होने का ताना देता है तो कोई कहता है कि नहीं आता है जिसे दुनिया में कोई फन तुम हो मैं ऐसे तमाम लोगों से कहना चाहता हूं कि हीनभावना व एहसास ए कमतरी को त्याग दें खुद से नफ़रत करना छोड़े हम जिंदा कौम हैं हमने परेशानी की हालत में भी बहुत कुछ किया है उसे जानें और समझें खुद को पहचानने की कोशिश करें नकारात्मक बातों को छोड़कर आगे के लिए मेहनत करें Khursheeid Ahmad
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