PuruṣārTha
PuruṣārTha
February 1, 2025 at 09:18 AM
॥ श्रीहरिः ॥ *भगवान् की प्राप्तिके लिये श्रीगीताजीका अर्थसहित अभ्यास करना चाहिये। निष्कामभावसे सब भाइयोंकी सेवा करनेसे भी अन्तःकरणकी शुद्धि होकर बहुत ही शीघ्र श्रीभगवान् की प्राप्ति हो सकती है।* *मनसे सबका हित चाहना भी सेवा है और सबको श्रीभगवान् की भक्तिमें लगानेकी चेष्टा करना तो परम सेवा है।* *इन बातोंसे भगवान् बहुत प्रसन्न होते हैं, अतएव निष्कामभावसे इस विषयकी दलाली करनी चाहिये, अर्थात् लोगोंको भगवान् के भजन-ध्यानमें लगाना चाहिये।* *आपको विचार करना चाहिये। समय बहुत थोड़ा रह गया है। अब भी नहीं चेतेंगे तो फिर कब चेतेंगे ? फिर कौन-सी वस्तु आपके काम आवेगी ?* *जब शरीर ही आपका नहीं है तब स्त्री, पुत्र, घर और धनकी तो बात ही क्या है ? वहाँ तो केवल भगवान् का प्रेम ही काम आता है और कोई भी चीज काम नहीं आती।* *संसारके लोग सब अपने मतलबमें लगे हैं। यों समझकर उस परमप्रेमी, दीनदयालु भगवान् के शरण होकर केवल उसीसे प्रेम करना चाहिये। अपने प्राणोंसे भी अधिक उससे प्रेम करना चाहिये।* *प्राण भले ही चले जायँ, परन्तु उसके प्रेममें कभी कलंक न लगने पावे। आपको बारम्बार विचार करना चाहिये, आप किसलिये आये थे, यहाँ क्या करना चाहिये और आप क्या कर रहे हैं।* –"सच्ची सलाह" गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकसे साभार🌹

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