University Truthseeker Society (UTS)
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February 15, 2025 at 06:05 PM
*बुद्धिस्ट पर्व कुंभ का ब्राह्मणीकरण किया गया* ==================== एड आर एस वर्मा *कुंभ मेले का इतिहास* :- कुंभ मेले को सातवीं शताब्दी में प्रयाग में बौद्ध सम्राट हर्षवर्धन ने *महामोक्ष परिषद* के रूप में शुरू किया था, इस परिषद में कई दिनों तक विभिन्न मत के विद्वानों द्वारा डिबेट (वाद विवाद) होता था, इसमें भाग लेने के लिए दूर-दूर से विद्वान आते थे और अपनी-अपनी बातें रखते थे, डिबेट सुनने के लिए भारी संख्या में लोग पहुंचते थे, सम्राट हर्षवर्धन स्वयं उपस्थित होकर वाद विवाद को ध्यान से सुनता था और जो विद्वान विजयी होता था उसे ढेर सारा उपहार भी देता था, वाद विवाद का विषय भगवान बुद्ध के दर्शन से संबंधित होता था, मुख्य रूप से मनुष्य के दुखों को दूर करने के लिए भगवान बुद्ध ने जो *चार आर्य सत्य* और *अष्टांगिक मार्ग* का सिद्धांत दिया था उसी पर केंद्रित रहता था, मेले के सातवें दिन सम्राट हर्षवर्धन बुद्ध की मूर्ति को उत्तम रीति से सुसज्जित करता था और पूजा करने के बाद अपनी 5 वर्षों में एकत्रित की हुई सारी संपत्ति दान कर देता था, इसमें बहुमूल्य रत्न यहां तक कि वह अपने सिर का मुकुट भी दान कर देता था, सबसे पहले वह भिक्षुओं को फिर विद्वानों को दान से सम्मानित करता, इसके बाद दूसरे धर्म के लोगों की बारी आती थी, अंत में विधवा, दुखी, अनाथ बालक, रोगी, दरिद्र, महंत लोगों को दान करता था, इस मेले का आयोजन वह हर पांच में वर्ष करता था, प्रयाग के संगम में हर 5 वर्ष में *महामोक्ष परिषद* आयोजित करने और दान देने के कारण इस जगह को *महादान भूमि* कहा जाने लगा था नालंदा विश्वविद्यालय आदि को जला देने के कारण बुद्ध का सारा इतिहास ही मिटा दिया गया था, लोगों को पता ही नहीं था की कुंभ मेले का वास्तविक अर्थ क्या है, मुगल काल में जब सत्ता ब्राह्मणों के हाथ में आई, इन्होंने पुराण लिखें और कुंभ मेले का वास्तविक अर्थ ही बदलकर झूठी कथा परोस दी *स्कंद पुराण* के अनुसार देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, उसमें अमृत कलश निकला, अमृत के बंटवारे को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद हो गया, आकाश मार्ग से देवता कलश लेकर भागे तो उसकी चार बूंदें चार नदियों के जल में गिर गई, हरिद्वार गंगोत्री में, प्रयाग गंगा में, उज्जैन शिप्रा और नासिक की गोदावरी नदी के जल में अम्रत घुल गया, लोगों को यह बताए जाने लगा की जिस जगह पर अमृत गिरा है उस पानी से स्नान करने पर सारे पाप मिट जाते हैं सम्राट हर्षवर्धन महामोक्ष परिषद के नाम से भगवान बुद्ध के चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का दुखों से मोक्ष पाने का विद्वानों द्वारा जो लोगों को शिक्षा देते थे, उसके उलट उसका अर्थ बदलकर गपोड कथा के द्वारा गंगा आदि नदियों में स्नान करने से मोक्ष मिलने की परिपाटी डालकर महामोक्ष परिषद ( कुंभ ) का ब्राह्मणीकरण कर दिया गया साभार- "बुद्ध की तलाश में चीनी बौद्ध यात्री *ह्वेनसांग* की भारत यात्रा" पेज क्रमांक- 176,179,193

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