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February 19, 2025 at 08:38 AM
*अच्युताय नमः अनंताय नमः गोविंदाय नमः* श्रीमद् भगवद् गीता: १८ फरवरी २०२५ अध्याय-०२: गीता का सार (श्लोक ०२.४२-४३) श्लोक ०२.४२-४३: *यामिमां पुष्पितां वाचं* *प्रवदन्त्यविपश्चितः।* *वेदवादरताः पार्थ* *नान्यदस्तीति वादिनः||४२||* *कामात्मानः स्वर्गपरा* *जन्मकर्मफलप्रदाम् |* *क्रियाविशेषबहुलां* *भोगैश्वर्यगतिं प्रति||४३||* याम् इमाम्– ये सब; पुष्पिताम्– दिखावटी; वाचम्– शब्द; प्रवदन्ति– कहते हैं; अविपश्चितः– अल्पज्ञ व्यक्ति; वेद-वाद-रताः– वेदों के अनुयायी; पार्थ– हे पार्थ; न– कभी नहीं; अन्यत्– अन्य कुछ; अस्ति– है; इति– इस प्रकार; वादिनः– बोलनेवाले; काम-आत्मनः– इन्द्रियतृप्ति के इच्छुक; स्वर्ग-पराः– स्वर्ग प्राप्ति के इच्छुक; जन्म-कर्म-फल-प्रदाम्– उत्तम जन्म तथा अन्य सकाम कर्मफल प्रदान करने वाला; क्रिया-विशेष– भड़कीले उत्सव; बहुलाम्– विविध; भोग– इन्द्रियतृप्ति; ऐश्वर्य– तथा ऐश्वर्य; गतिम्– प्रगति; प्रति– की ओर।   भावार्थ- अल्पज्ञानी मनुष्य वेदों के उन अलंकारिक शब्दों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हैं, जो स्वर्ग की प्राप्ति, अच्छे जन्म, शक्ति इत्यादि के लिए विविध सकाम कर्म करने की संस्तुति करते हैं | इन्द्रिय तृप्ति तथा ऐश्वर्यमय जीवन की अभिलाषा के कारण वे कहते हैं कि इससे बढ़कर और कुछ नहीं है। तात्पर्य- साधारणतः सब लोग अत्यन्त बुद्धिमान नहीं होते और वे अज्ञान के कारण वेदों के कर्मकाण्ड भाग में बताये गये सकाम कर्मों के प्रति अत्यधिक आसक्त रहते हैं | वे स्वर्ग में जीवन का आनन्द उठाने के लिए इन्द्रिय तृप्ति कराने वाले प्रस्तावों से अधिक और कुछ नहीं चाहते जहाँ मदिरा तथा तरुणियां उपलब्ध हैं और भौतिक ऐश्वर्य सर्वसामान्य है | वेदों में स्वर्गलोक पहुंचने के लिए अनेक यज्ञों की संस्तुति है जिनमें ज्योतिष्टोम यज्ञ प्रमुख है | वास्तव में वेदों में कहा गया है कि जो स्वर्ग जाना चाहता है उसे ये यज्ञ सम्पन्न करने चाहिए और अल्पज्ञानी पुरुष सोचते हैं कि वैदिक ज्ञान का सारा अभिप्राय इतना ही है | ऐसे लोगों के लिए कृष्ण भावनामृत के दृढ़ कर्म में स्थित हो पाना अत्यन्त कठिन है | जिस प्रकार मूर्ख लोग विषैले वृक्षों के फूलों के प्रति बिना यह जाने कि इस आकर्षण का फल क्या होगा आसक्त रहते हैं उसी प्रकार अज्ञानी व्यक्ति स्वर्गिक ऐश्वर्य तथा तज्जनित इन्द्रिय भोग के प्रति आकृष्ट रहते हैं | वेदों के कर्मकाण्ड भाग में कहा गया है– अपाम सोममृता अभूम तथा अक्षय्यं ह वे चातुर्मास्ययाजिनः सुकृतं भवति। दूसरे शब्दों में जो लोग चातुर्मास तप करते हैं वे अमर तथा सदा सुखी रहने के लिए सोम-रस पीने के अधिकारी हो जाते हैं | यहां तक कि इस पृथ्वी में भी कुछ लोग सोमरस पीने के अत्यन्त इच्छुक रहते हैं जिससे वे बलवान बनें और इन्द्रिय तृप्ति का सुख पाने में समर्थ हों | ऐसे लोगों को भव बन्धन से मुक्ति में कोई श्रद्धा नहीं होती और वे वैदिक यज्ञों की तड़क-भड़क में विशेष आसक्त रहते हैं | वे सामान्यता विषयी होते हैं और जीवन में स्वर्गिक आनन्द के अतिरिक्त और कुछ नहीं चाहते | कहा जाता है कि स्वर्ग में नन्दन-कानन नामक अनेक उद्यान हैं जिनमें दैवी सुन्दरी स्त्रियों का संग तथा प्रचुर मात्रा में सोमरस उपलब्ध रहता है | ऐसा शारीरिक सुख निस्सन्देह विषयी है, अतः ये लोग वे हैं जो भौतिक जगत के स्वामी बन कर ऐसे भौतिक अस्थायी सुख के प्रति आसक्त हैं। *सत्यम् सत्यम् वदाम्यहम्* *जय श्री कृष्ण* 🙏🏹🙏🚩 *********************

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