
ISLAAM KA NOOR💖इस्लाम का नूर💓
February 18, 2025 at 10:52 AM
🔴✅निकाह़ की सादगी: एक बाबरकत अ़मल
हमारे समाज (मुअ़ाशरे) में बेह़याई और बुराई के फैलने की एक बड़ी वजह ये है कि नौजवान, चाहे लड़का हो या लड़की, वक़्त पर निकाह़ नहीं करते। इसमें कई रुकावटें हैं, जिनमें सबसे बड़ी रुकावट शादियों का ह़द से ज्यादा महंगा और रस्मी होना है। हालाँकि इस्लाम ने निकाह़ को बेह़द आसान रखा है।✅फर
हदीसे पाक में इरशाद फरमाया गया:👇
"सबसे बाबरकत निकाह वह है जिसमें कम खर्च हो।"
इसके बावजूद आज हमारे यहाँ शादियों को बेवजह महंगा और पेचीदा बना दिया गया है। फुज़ूल रस्में, भारी-भरकम जहेज़, महंगे मैरिज हॉल, सैकड़ों मेहमानों की दावत, दर्जनों तरह के पकवान—ये सब ऐसे बोझ हैं जो निकाह को मुश्किल बना देते हैं। नतीजतन, गरीब और मध्यम वर्ग (मुतवस्सित़ दर्जे) के लोग इस सामाजिक (मुअ़ाशरती) दबाव में आकर क़र्ज़ लेने पर मजबूर हो जाते हैं, और कई नौजवान मुनासिब रिश्ता मिलने के बावजूद देर का शिकार हो जाते हैं। दूसरी तरफ, ज़िना और बेह़याई के दरवाज़े खुलते जा रहे हैं, जिससे समाज तबाही की तरफ बढ़ रहा है।
अगर अल्लाह पाक ने आपको खूब ह़लाल माल व दौलत अ़ता की है तो बेशक यह बड़ी नेअ़मत है, लेकिन शादी में गैर-ज़रूरी खर्च करके अपनी दौलत को ज़ाया (बर्बाद) न करें।
अगर आपको दावते तअ़ाम का इंतज़ाम करना ही है तो किसी और मौके पर, जैसे कि गौसे पाक या ख़ाजा ग़रीब नवाज़ की नियाज़ के मौक़े पर लंगर का इंतज़ाम कर सकते हैं, मगर निकाह़ को हर ह़ाल में सादा रखें।
सादगी से निकाह़ करना सिर्फ सुन्नते रसूल ﷺ ही नहीं, बल्कि एक ऐसी बरकत है जिससे ज़िंदगी के मसाइल कम हो जाते हैं, और मियां-बीवी के बीच मह़ब्बत और उल्फ़त में इज़ाफा होता है।
मैंने कई खुश-नसीब लोगों को देखा है जिन्होंने सादगी के साथ निकाह़ किया और कम से कम खर्च में इस अ़ज़ीम सुन्नत को अदा किया।
यही तरीका अपनाने से समाज (मुअ़ाशरे) में निकाह को आसान और ज़िना को मुश्किल बनाया जा सकता है।
अल्लाह पाक हमें दीने इस्लाम के मुत़ाबिक़ ज़िंदगी गुज़ारने, फुज़ूल रस्मों से बचने और सादगी के साथ निकाह़ करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। आमीन।
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