
ISLAAM KA NOOR💖इस्लाम का नूर💓
February 23, 2025 at 05:55 AM
🔴 इस आयत करीमा से हासिल होने वाले अहम मसाएल: 👇
➊ नबी की गुस्ताख़ी करने वाला काफ़िर है।
कोई भी शख़्स, चाहे वह कितना ही कलिमा पढ़ने वाला हो, अगर वह नबी करीम ﷺ की शान में गुस्ताख़ी करता है, तो वह काफ़िर हो जाता है।
सिर्फ़ कलिमा पढ़ लेना या ईमान का दावा करना उसके कुफ़्र से बचाव के लिए काफ़ी नहीं होगा, बल्कि इस गुस्ताख़ी से तौबा करनी होगी।
➋ कुफ़्र और ईमान का तअ़ल्लुक़ सिर्फ़ दिल से नहीं, बल्कि ज़बान से भी है। ✅
कुछ जाहिल लोग यह ग़लतफ़हमी रखते हैं कि: 👇
"कुफ़्र का ताल्लुक़ सिर्फ़ दिल से है, अगर कोई ज़बान से गुस्ताख़ी करे और कलिमा पढ़े तो वह काफ़िर नहीं होगा।"
यह सोच सरासर ग़लत और ख़िलाफ़े क़ुरआन व हदीस है।❗️✅
जिस तरह ईमान सिर्फ़ दिल से मानने का नाम नहीं बल्कि ज़बान से इक़रार भी ज़रूरी है, ✅✅
यानी "इक़रारुं बिल्लिसान (इक़रारे लिसानी) भी ज़रूरी है और तस्दीक़ुं बिलक़ल्ब (तस्दीक़े क़लबी) भी।" ✅
बिल्कुल इसी तरह कुफ़्र भी सिर्फ़ दिल से होने वाली चीज़ नहीं, बल्कि अगर कोई ज़बान से गुस्ताख़ी करे तो वह काफ़िर क़रार दिया जाएगा। ✅✅✅
❸ सिर्फ़ कलिमा पढ़ना किसी को मुसलमान नहीं बनाता: 👇
अगर कोई शख़्स नबी करीम ﷺ की गुस्ताख़ी करे, तो सिर्फ़ उसका कलिमा पढ़ना उसे ईमान में नहीं रख सकता।
जैसे किसी का सिर्फ़ ज़बान से कलिमा पढ़ लेना उसे मुसलमान नहीं बना सकता जब तक कि वह सही अ़क़ीदा न रखे,
वैसे ही अगर कोई शख़्स गुस्ताख़ी करे तो वह काफ़िर हो जाता है, चाहे वह बार-बार कलिमा ही क्यों न पढ़ता रहे।
❹ गुस्ताख़ी मज़ाक़ में भी हो, तब भी कुफ़्र है: 👇
अगर कोई गुस्ताख़ी मज़ाक़ या हंसी में करे (यानी वह उसका अ़क़ीदतन क़ाइल न हो) तब भी वह काफ़िर हो जाता है,
क्योंकि नबी करीम ﷺ की शान में गुस्ताख़ी किसी भी ह़ाल में माफ़ नहीं।
यही बात अल्लाह तअ़ाला ने क़ुरआन मजीद में बयान फ़रमाई: 👇
"तुम बहाने न बनाओ, तुम अपने ईमान के बाद काफ़िर हो चुके हो।"
(सूरह तौबा, आयत 66)
ये आयत उन लोगों के बारे में नाज़िल हुई जो नबी करीम ﷺ की शान में गुस्ताख़ी करके मज़ाक़ का बहाना बना रहे थे।
अल्लाह तअ़ाला ने उनके कुफ़्र का ऐलान फ़रमा दिया, चाहे वे दिल से उसको न मानते हों।
❺ इकराहे शरई के बिना गुस्ताख़ी का हुक्म: 👇
अगर किसी ने बिना किसी इकराहे शरई (शरई जब्र) के नबी करीम ﷺ की शान में गुस्ताख़ाना अल्फ़ाज़ कहे, तो वह अल्लाह तअ़ाला के नज़दीक भी काफ़िर हो जाएगा,
(यानी क़ज़ाअً (दुनियावी क़ानून के हिसाब से) तो काफ़िर होगा ही, दियानतन (अल्लाह की बारगाह में भी) काफ़िर माना जाएगा।)
चाहे वह गुस्ताख़ी मज़ाक़ में ही क्यों न की गई हो।
❻ सरीह़ (खुली) गुस्ताख़ी करने के बाद कोई उज़्र या ता'वील क़ाबिले क़ुबूल नहीं: 👇
जब किसी शख़्स ने सरीह (खुल्लम-खुल्ला) गुस्ताख़ी कर दी, तो उसके बाद अगर वह कोई बहाना करे या ता'वील (वजह) पेश करे तो वह क़ुबूल नहीं होगी।
क्योंकि क़ुरआन पाक खुद फ़रमा चुका है: 👇
"तुम काफ़िर हो गए, अपने ईमान के बाद"
(सूरह तौबा 66)
अगर गुस्ताख़ी ख़ुद कुफ़्र न होती तो उनकी ता'वील को रद्द न किया जाता।
🔴 हासिल-ए-कलाम: 👇👇👇
अगर कोई शख़्स नबी करीम ﷺ की शाने अक़दस में गुस्ताख़ी करे, तो वह काफ़िर हो जाता है,
चाहे वह लाख बार कलिमा पढ़े और चाहे वह गुस्ताख़ी को संजीदगी से करे या मज़ाक़ में, बहरहाल उसका ईमान ख़त्म हो जाएगा,
जब तक वह सच्ची तौबा और तज्दीदे ईमान न करे।
ये अहलेसुन्नतो जमाअत का मुत्तफ़क़ा अकीदा है,
और यही क़ुरआन व हदीस और फ़िक्हे इस्लामी का फ़ैसला है। ✅✅✅
✍ मुह़म्मद अ़म्मार रज़ा क़ादरी रज़वी पलामवी
24 शअ़बान 1446 हिजरी, एतवार
📢 चैनल को फ़ॉलो करें: ✅👇
https://whatsapp.com/channel/0029Va6A5Kn5K3zaa8nAIE0q
🌟🌟🌟🔵🔵🔵
https://t.me/Urdu_Tahrir_Telegram/479
✅✅✅🔴🔴🔴
👍
1