
YoGi
February 16, 2025 at 10:35 AM
पृथ्वीराज चौहान को अंधा करके अफगानिस्तान के गजनी ले गए।
रानी पद्मावती को आग में कूदकर जौहर करने पर मजबूर किया।
हरपाल देव यदुवंशी को जिंदा खौलते तेल में डाला गया।
हेमू विक्रमादित्य का सर काटकर काबुल भेज दिया गया और धड़ दिल्ली में लटका दिया गया।
गुरू अर्जुनदेव को गर्म तवे पर मृत्यु होने तक बैठाया गया।
गुरू गोबिंद सिंह को दो छोटे बच्चे जिंदा दीवार में चिनवाए गए।
छत्रपति संभाजी को 40 दिनों तक गंभीर यातनाएं दी गईं।
गोकुल जाट का आगरा कोतवाली पर लटका कर अंग-अंग काटा गया।
पानीपत में कई दिनों तक हिन्दू नरसंहार चला, हजारों की तादाद में हिन्दु गुलाम बनाकर काबुल ले जाए गए।
1857 की हार के बाद बीहड़ में भूखे- प्यासे तात्या टोपे भटकते रहे और अंत में फांसी पर लटका दिए गए।
सावरकर को काला पानी में अपने ही मल-मूत्र में छह-छह महीने सॉलिट्री कन्फनमेंट झेलना पड़ा।
आजादी के कथित शुभ अवसर तक पर 10 लाख लोगों का नरसंहार, विस्थापन, बलात्कार और एक तिहाई देश सदा के लिए कटकर अलग हो गया।
जनवरी 1990 की एक रात कश्मीर हिन्दू विहीन हो गया।
इतिहास का हर पन्ना यातनाओं, चीखों, नरसंहारों और खून से स्याह है लेकिन उसके बावजूद गंगा जमुनी तहजीब की घुट्टी इतनी बेशर्मी से पिलाई जाती है
इन सारी घटनाओं पर तो अभी फिल्मे बनी भी नहीं लेकिन जिन पर बनी हैँ उन फिल्म वालों को आपके टिकट के पैसे वसूल कराने हैं वो आपको हार में भी कुछ सकारात्मक अंत दिखाकर ही थिएटर से निकालेंगे
लेकिन सच्चाई यह है कि हम शायद पहली पीढ़ी होंगे जो तीर्थ जाने के लिए जजिया नहीं दे रहे, देशभक्ति के लिए फांसी पर नही लटकाए जा रहे। धर्मांतरण और विस्थापन नहीं झेल रहे। एक स्थिर सरकार में एक बढ़ती इकोनॉमी में कल के लिए बेहतर उम्मीद लिए जीवन जी रहे हैं।
इतिहास बताता है कि हमारा संगठित होकर एक लक्ष्य की तरफ बढ़ना कितना आवश्यक है ताकि जब 100 वर्ष बाद हमारे वर्तमान पर फिल्में बनें तो उनमें केवल बलिदान की कहानियां न हों जीत की भी कहानियां हों। #chhaava
-अविनाश त्रिपाठी @राष्ट्रदेव