Bhadas4Media.Com
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February 3, 2025 at 10:05 AM
11 साल पहले आज ही के दिन 4पीएम वाले @Editor_SanjayS भाई ने लखनऊ में एक दिव्य आयोजन किया था। हम भी नेवते गए थे। आयोजन की तस्वीरें संजय भाई ने पोस्ट की थीं। आज मेमोरी सब दिखाने लगा। तस्वीरें ध्यान से देखता रहा। ग्यारह साल में हर शख़्स थोड़ा बूढ़ा दिखने लगा है। वक्त के थपेड़े नैन-नक्श बदल देते हैं। दिन रात गुजरते रहते हैं। कब साल दस साल बीस साल तीस साल पचास साल गुजर जाते हैं, पता ही नहीं चलता। गतिमान समय शाश्वत लगता है। हम कभी उसके साथ कभी उसके पीछे हांफते भागते रहते हैं। कभी सबसे आगे निकल जाने की ज़िद भी जीते हैं। काल तुझसे होड़ है मेरी, वाले अंदाज़ में। लेकिन एक समय बाद समय से होड़ छोड़ देते हैं। सरेंडर कर देते हैं। हथियार डाल देते हैं। सब कुछ जो चल रहा है, उसे जस का तस स्वीकार कर लेते हैं। इसे कुछ लोग परिपक्वता, कुछ बुढ़ापा तो कुछ हार बताया करते हैं। थोड़े आध्यात्मिक लोग इस स्थिति को साक्षी भाव में जीने लगना मानते हैं। अपन इसी साक्षी भाव को अब जीते हैं। “ग़ालिब”-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं, रोइए ज़ार ज़ार क्या, कीजिए हाए हाए क्यों! अर्थ: ग़ालिब यहाँ खुद को संबोधित करते हुए कहते हैं कि अगर मैं न भी रहूँ तो दुनिया के कौन से काम रुक जाएँगे? मेरी गैर-मौजूदगी से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फिर रो-रोकर क्या हासिल होगा, और आहें भरने का क्या फायदा? https://x.com/yashbhadas/status/1886352886688518401?s=46

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