☝️Haqq Ka Daayi (An Islamic Channel)
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February 28, 2025 at 09:38 AM
Ramzan: ╭ *✨﷽✨* ╮ ┌═✿ ┇ _ तरावीह _ ┻───────────────✿* *╠☞ तरावीह की इब्तिदा कहां से हुई ?,* *❀__, तरावीह की इब्तिदा तो हुजूर सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से हुई मगर आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने इस अंदेशा से कि यह फर्ज ना हो जाए 3 दिन से ज्यादा जमात नहीं करवाई। सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम फरदन फरदन पढा़ करते थे और कभी 2-2,4-4 सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम जमात कर लेते थे। ★_ हजरत उमर रजियल्लाहू अन्हु के जमाने से आम जमात का रिवाज हुआ और उस वक्त से आज तक 20 ही रकात चली आ रही है और 20 रकात ही सुन्नते मोक्कदा है । * आप के मसाइल और उनका हल 3 /29_,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ *╠☞ रोजे और तरावीह का आपस में क्या ताल्लुक है ?क्या रोजा रखने के लिए जरूरी है कि तरावीह भी पढ़ी जाए,?* *❀__, रमजान उल मुबारक के मुकद्दस महीने में दिन की इबादत रोजा है और रात की इबादत तरावीह है । चुनांचे इरशाद है :- "_ अल्लाह ताला ने इस माह ए मुबारक के रोजे को फर्ज किया है और इसमें रात के कि़याम को निफली इबादत बनाया है। इसलिए दोनों इबादतें करना जरूरी है। रोजा फर्ज है और तरावीह सुन्नते मोक्कदा है । * आप के मसाइल और उनका हल 3/29-30_,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞क्या गैर रमजान में तरावीह तहज्जुद की नमाज़ को कहा गया है,?* *❀__तहज्जूद अलग नमाज है जो कि रमजान और गैर रमजान दोनों में मसनून है ,तरावीह सिर्फ रमजान मुबारक की इबादत है। तहज्जूद और तरावीह को एक नमाज नहीं कहा जा सकता। तहज्जुद की रकात भी 4 से 12 तक है ।दरमियाना दर्जा 8 रकात है ।इसलिए 8 रकात तहज्जूद को तरजीह दी गई । *╠☞अगर कोई शख्स बीमारी की वजह से रोजा़ ना रखे तो ऐसे शख्स की तरावीह का क्या बनेगा , वह तरावीह पड़ेगा या नहीं ?* ★_जो शख्स बीमारी की वजह से रोजे़ की ताकत ना रखता हो और तरावीह पढ़ने की ताकत हो तो तरावीह जरूर पढ़नी चाहिए। *╠☞ तरावीह बा जमात पढ़ना कैसा है ?अगर तरावीह मस्जिद में जमात के साथ ना पड़ी जाए तो क्या गुनाह होगा?* ★_ रमजान मुबारक में मस्जिद में तरावीह की नमाज होना सुन्नते किफाया है ,अगर कोई मस्जिद तरारीह की जमात से खाली रहेगी तो सारे मोहल्ले वाले गुनहगार होंगे । * आप के मसाइल और उनका हल 3/30_,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞ कुछ लोग कहते हैं नमाजे तरावीह का आगाज एक इज्तिहाद के तहत हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने किया था ,अगर यह दुरुस्त है तो फिर नमाज ए तरावीह सुन्नत कैसे हुई?,* *❀__, नमाजे तरावीह को इज्तिहाद कहना एक गलत इज्तिहाद है । नमाज ए तरावीह की तरगीब खुद हुजूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम से साबित है और तरावीह का जमात से अदा करना भी आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम से साबित है। मगर इस अंदेश से कि कहीं यह उम्मत पर फर्ज ना हो जाए आप सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने जमात का अहतमाम तर्क फरमा दिया । ★_हजरत उमर फारूक रजियल्लाहु अन्हु के जमाने में चुंकी अब यह अंदेशा नहीं रहा था इसलिए इस सुन्नत जमात को दोबारा जारी किया गया ।इसके अलावा खुलफा ए राशिदीन रजियल्लाहु अन्हुम की इकतिदा का लाजिम होना शरीयत का एक मुस्तकिल उसूल है। "_ अगर बिल फर्ज तरावीह की नमाज हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने इज्तिहाद ही से जारी की होती तो चुंकी तमाम सहाबा किराम रजियल्लाहू अन्हुम ने इस बिला एतराज कुबूल कर लिया और बाद के खूलफा ए राशिदीन ( हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु , हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु) ने इस पर अमल किया। "_ इसलिए बाद के किसी शख्स के लिए इजमाए सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम और सुन्नते खुल्फा ए राशिदीन रजियल्लाहु अन्हुम की मुखालफत की कोई गुंजाइश नहीं रही। यही वजह है कि अहले हक में से कोई एक भी तरावीह के सुन्नत होने के मुनकिर नहीं । * आप के मसाइल और उनका हल 3 /31 _,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞ चंद जरूरी फवाइद-१ ,20 रकात तरावीह सुन्नते मोक्कदा है* *❀__ हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु का अकाबिरे सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम की मौजूदगी में 20 रकात तरावीह जारी करना सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम का उस पर नकीर ना करना और अहद ए सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम से लेकर आज तक 20 रकात तरावीह का मुसलसल अहतमाम रहना इस अम्र की दलील है कि अल्लाह ताला के पसंदीदा दीन में दाखिल है। "_ अल्लाह ताला खुल्फा ए राशिदीन के लिए उनके इस दीन को करार व तमकीन बख्सेंगें जो अल्लाह ताला ने उनके लिए पसंद फरमा लिया ।" ★_अल अख्त्यार शरह अल मुख्तार में है :- "_असद बिन उमर व इमाम अबू यूसुफ रहमतुल्लाह अलेह से रिवायत करते हैं कि मैंने हजरत इमाम अबू हनीफा रहमतुल्लाहि अलैह से तरावीह और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु के फैल के बारे में सवाल किया तो उन्होंने फरमाया कि :- तरावीह सुन्नतें मौक्कदा है और हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने इसको अपनी तरफ से जारी नहीं किया ना वो कोई बिदअत इजाद करने वाले थे, उन्होंने जो हुक्म दिया वो किसी असल की बिना पर था जो उनके पास मौजूद थी और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के किसी अहद पर मुबनी था। हजरत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने यह सुन्नत जारी की और लोगों को हजरत अबी बिन काब पर जमा किया। पस उन्होंने तरावीह की जमात कराई। उस वक्त सहाबा किराम रजियल्लाहू अन्हुम कसीर तादाद में मौजूद थे । हज़रत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु, हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु, हजरत इब्ने मसूद रजियल्लाहु अन्हु, हजरत तलहा रजियल्लाहु अन्हु, हजरत अब्बास रजियल्लाहु अन्हु , हजरत ज़ुबैर रजियल्लाहु अन्हु, हजरत मुआज़ रजियल्लाहु अन्हु और भी दिगर मुहाजिरीन व अंसार रजियल्लाहु अन्हुम सब मौजूद थे । मगर एक ने भी इस फैल को रद्द नहीं किया बल्कि सब ने हजरत उमर रजि अल्लाह से मुवाफकत की और इसका हुक्म दिया । * आप के मसाइल और उनका हल 3/56_,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞खुलफा ए राशिदीन की जारी करदा सुन्नत के बारे में वसीयत ए नबवी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ,* *❀__, 20 रकात तरावीह तीन खुलफा ए राशिदीन रजियल्लाहु अन्हुम की सुन्नत है और सुन्नते खुल्फा ए राशिदीन के बारे में हुजूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का इरशाद ए गिरामी है :- "_ जो शख्स तुम में से मेरे बाद जीता रहा वह बहुत से इख्तिलाफ देखेगा पस मेरी सुन्नत को और खुल्फा ए राशिदीन मुहद्दिसीन की सुन्नत को लाजिम पकड़ो इसे मजबूत थाम लो और दातों से मजबूत पकड़ लो और नई नई बातों से ऐतराज़ करो क्योंकि हर नई बात बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है ।" *(रवाह अहमद व तिर्मिजी व अबू दाऊद, मिश्कात- 30)* ★_ इस हदीस पाक से सुन्नते खुल्फा ए राशिदीन की पैरवी की ताकीद मालूम होती है और यह कि इसकी मुखालफत बिदअत और गुमराही है । *आप के मसाइल और उनका हल 3/57__,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞ आइम्मा अरबा के मज़ाहिब से खुरूज जायज़ नहीं ,* *❀__, पहले मालूम हो चुका है कि आइम्मा अरबा कम से कम 20 रकात तरावीह के कायल हैं। आइम्मा अरबा के मज़ाहिब का इत्तेबा सवाद ए आज़म का इत्तेबा है और मजा़हिबे आइम्मा अरबा से खुरूज सवाद ए आज़म से खुरूज है । ★_ मसनद उल हिंद शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी " अक़दुल मजीद" में (रवाह इब्ने माजा मिन हदीस अनस रजियल्लाहु अन्हु ,कमा फि मिश्कात सफा 30) नकल करते हैं:- "_ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम का इरशाद गिरामी है कि सवाद ए आज़म की पैरवी करो और जबकि इन मजा़हिबे अरबा के सिवा बाकी़ मजाहिबे हक़ मिट चुके हैं तो इनका इत्तेबा सवादे आज़म का इत्तेबा होगा और इनसे खुरूज सवाद ए आज़म से खुरूज होगा ।" * आप के मसाइल और उनका हल 3/ 58_,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞ तरावीह में जब हाफिज नियत बांधकर किरत करते हैं तो अक्सर नमाजी पीछे यूं ही बैठे रहते हैं या टहलते रहते हैं और जैसे ही हाफिज रुकू में जाता है यह लोग जल्दी जल्दी नियत बांधकर नमाज में शामिल हो जाते हैं ,इनका यह फैल कैसा है ?,* *❀__, तरावीह में एक बार पूरा कुरान मजीद सुनना जरूरी है और सुन्नते मौक़दा है ।जो लोग इमाम के साथ शरीक नहीं होते उनसे इतना हिस्सा कुरान ए मजीद का फौत हो जाता है। इसलिए यह लोग ना सिर्फ एक सवाब से महरुम रहते हैं बल्कि निहायत मकरूह काम करते हैं। क्योंकि इनका यह काम कु़राने करीम से ऐराज के मुशाबे है । * आपके मसाइल और उनका हल-3/64_,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞ इमामत,* *❀__, तरावीह की इमामत के लिए वहीं शरायत हैं जो आम नमाज़ों की इमामत के लिए हैं इसलिए हाफिज़ का मुत्तबा ए सुन्नत होना जरूरी है । ढाड़ी मुंडाने या कतराने वाले को तरावीह में इमाम ना बनाया जाए। *★_ मुआवजा या उजरत:_,* मुआवजा लेकर तरावीह पढ़ाने वाले के पीछे तरावीह जायज़ नहीं। ऐसे हाफिज के पीछे तरावीह पढ़ना मककरूहे तेहरीमी है । अगर मुखलिस हाफिज़ ना मिले तो "अलम तरा " के साथ पढ़ लेना बेहतर है। *★_ हदिया_:-* _जिस इलाके में हाफिजों को उजरत देने का रिवाज हो वहां हदिया भी उजरत ही समझा जाता है। चुनांचे अगर कुछ ना दिया जाए तो लोग उसको बुरा समझते हैं इसलिए तरावीह सुनाने वाले को हदिया भी नहीं लेना चाहिए । * आप के मसाइल और उनका हल 3 /60_,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞ दूसरी मस्जिद में तरावीह के लिए जाना ?* *❀__, अगर अपने मोहल्ले की मस्जिद में कुरान मजीद खत्म ना होता हो या इमाम कुरान मजीद गलत पड़ता हो तो तरावीह के लिए मोहल्ले की मस्जिद को छोड़कर दूसरी मस्जिद में जाना जायज़ है । *★तेज रफ्तार तरावीह :-* _ तरावीह की नमाज में आम नमाजो़ की बनिस्बत जरा तेज़ पढ़ने का मामूल तो है मगर ऐसा तेज पढ़ना की अल्फ़ाज़ सही तौर पर अदा ना हो और सुनने वालों को भी सही समझ ना आए हराम है। ऐसे हाफिज के बजाय "अलम तरा " से तरावीह पढ़ लेना बेहतर है। *★_ कि़रात की मिक़दार :-* _ तरावीह में कम से कम एक कुरान मजीद मुकम्मल करना सुन्नत है, लिहाजा इतना पढ़ा जाए कि 29 रमज़ान को क़ुरान मजीद पूरा हो जाए । * आप के मसाइल और उनका हल -3/ 65_,* ┅┈•✿ ‌✯ ‌‌ ۝‌‌ ✯‌ ✿•┄┅ *╠☞ औरतों के जिम्में भी नमाजे़ तरावीह सुन्नत है,* *❀__, तरावीह सुन्नते मौक़दा है और तरावीह की नवाज जैसे मर्दों के लिए जरूरी है ऐसे ही औरतों के लिए भी जरूरी है ।इमामे आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाहि अलैह के नजदीक औरतों का मस्जिद में जाना मकरूह है उनका अपने घरों में नमाज पढ़ना मस्जिद में कुरान मजीद सुनने की बनिस्बत अफज़ल है । *★_तरावीह में एक रात में या तीन रातों में पूरा कुरान मजीद सुनना :_* _ तरावीह पढ़ना मुस्तकिल सुन्नत है और तरावीह में पूरा कुरान मजीद सुनना अलग सुन्नत है। जो लोग एक रात या तीन रातों में पूरा कुरान मजीद तरावीह में सुन लेते हैं और बाकी दिनों में तरावीह नहीं पढ़ते ऐसे लोग एक सुन्नत को तर्क करते हैं। *★_ तरावीह में बिस्मिल्लाह का पढ़ना :-* _ तरावीह में एक मर्तबा बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम का पढ़ना बुलंद आवाज से किसी सूरत के शुरू में पढ़ना जरूरी है। क्योंकि यह कुरान मजीद की एक मुस्तकिल आयत है ,अगर इस को जबरन ना पढ़ा गया तो मुक़तदियों का कुरान मजीद का सुनना पूरा नहीं होगा । *★_तरावीह के दरमियान वक़फा :-* _ नमाज़े तरावीह की हर 4 रकात के बाद इतनी देर बैठना जितनी देर में 4 रकात पढ़ी गई थी मुस्तहब है। लेकिन इतनी देर बैठने में लोगों को तंगी हो तो कम वक़फा किया जाए । *_ अल्हम्दुलिल्लाह मुकम्मल हुए_,* * आप के मसाइल और उनका हल- 3/ 65_,* *ʀєαd,ғσʟʟσɯ αɳd ғσʀɯαʀd* ✍ *❥ Haqq Ka Daayi ❥* http://www.haqqkadaayi.com/ *Visit for All updates,* *Telegram_* https://t.me/haqqKaDaayi ┣━━━━━━━━━━━━━━━━━━━━┫ 

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