
विरेंद्र बौद्ध (चिंतनशील)
February 11, 2025 at 05:25 PM
जगतगुरु जननायक क्रांतिकारी संतशिरोमणि रविदास जयंती पर विशेष
*बोधिसत्व रैदास और तथागत बुद्ध का कितना वैचारिक संबंध हैं?*
*कुछ बंधु सद्गुरु रैदास को समाज सुधारक और क्रांतिकारी संत की बजाय चमतकारी संत बनाने पर तुले हुए हैं।*
*"मन ही पूजा मन ही धूप* *पुस्तक से लिए गए महत्व पूर्ण अंश(ओशो रजनीश)*
*भारत का आकाश संतों के सितारों से भरा हुआ है। उन तारों मे रैदास जी धुरुतारा है।*
*ओशो आगे बताते है कि रैदास की सारी की सारी वानियाँ नष्ट कर दी जाती और मीरा बाई की सिर्फ एक लाइन बच जाती; मैंने गुरु मिला हे रैदास। समझो सब बच गया। ठाकुर राजपूत घर की मीरा जैसी अनुभूति को उपलब्ध एक चमार के चरणो मे नतमस्तक होती है। कोई अनूठी बात रही होगी। उसी काशी नगरी मे कबीर भी तो रहते थे।*
*#रैदास ने वही कहा है जो बुद्ध ने कहा है। बुद्ध की भाषा बहुत मंजी हुई है, शब्द नपे-तुले हैं, लेकिन बुद्ध को भी तर्क का तूफान सहना पड़ा और बुद्ध की भी जड़े उखड़ गई भारत से।*
*रविदास ने बुद्ध की बातें ही कही है पुनः लेकिन भाषा बदल दी। नया रंग डाला, पात्र वही था, बात वही थी अत: रविदास को नहीं उखाड़ा जा सका।*
*यह जानकर तुम हैरान होओगे कि चमार मूलतः बौद्ध हैं, जब भारत से बौद्ध धर्म उखाड़ डाला गया और बौद्ध भिक्षुओं को जिंदा जलाया गया और बौद्ध दार्शनिकों को खदेड़ कर देश के बाहर कर दिया गया तो एक लिहाज से तो यह अच्छा हुआ क्योंकि इसी कारण पूरा एशिया बौद्ध हुआ। कभी-कभी बुरे में भी अच्छा छिपा होता है।*
*जैनी नहीं फैल सके क्योंकि जैनों ने समझौते कर लिए। बच गए, लेकिन क्या बचना! आज कुल 30-35 लाख की संख्या है 5000 साल के इतिहास में 30-35 लाख की संख्या कोई संख्या होती है। किसी तरह अपने को बचा लिया मगर बचाने में सब गंवा दिया।*
*ध्यान दें ; बौद्धों ने समझौता नहीं किया, उखड़ गए, टूट गए, मगर झुके नहीं। उसका फायदा हुआ, सारा एशिया बौद्ध हो गया क्योंकि जहां भी बौद्ध दार्शनिक और मनीषी गए वहीं उनकी प्रकाश किरणे फैली, वहीं उनका रस बहा, सुगंध फ़ैली, वहीं लोग तृप्त हुए। चीन कोरिया ,कमबोडिया,श्रीलंका, थाईलैंड बर्मा आदि दूर-दूर तक बौद्ध धर्म फैलता गया। इसका श्रेय हिंदू पंडितो को है। जो भाग सकते थे भाग गए। भागने के लिए सुविधा चाहिए, धन चाहिए जो नहीं भाग सकते थे-इतने दीन थे, इतने दरिद्र थे-वे हिंदू जमात में सम्मिलित हो गए। लेकिन हिंदू जमात में अगर सम्मिलित होना हो तो सिर्फ शुद्रों में सम्मिलित हो सकते हो। क्योंकि ब्राह्मण तो जन्म से ब्राह्मण होता है। क्षत्रिय और वैश्य भी। सिर्फ एक ही जगह रह जाती है शुद्र, अछूत। वह असल में हिंदू धर्म के बाहर ही है। हो जाओ शूद्र अगर बचना है।*
*तो जो बौद्ध बच गए और नहीं भाग सके, मजबूरी में सम्मिलित हुए हिंदू धर्म में, वे ही बौद्ध चमार हैं। कारण-कभी किसी ने सोचा भी ना होगा। बुद्ध के बाद में कि वह कारण इतना बड़ा परिणाम लाएगा। जिंदगी बड़ी रहस्यपूर्ण है। बुद्ध ने कहा मांसाहार पाप है लेकिन अगर कोई जानवर मर ही गया हो तो उसके मांसाहार में क्या पाप हो सकता है। *चमार भारत में अकेली जाती है जो मरे हुए जानवर का मांस खाती है और यही प्रमाण है उनका कि वे बौद्ध थे कभी। दूसरे प्रमाण भी है लेकिन यह प्रमाण बहुत बड़ा प्रमाण है। इसी आधार पर *डॉ अंबेडकर ने यह निर्णय किया कि *चमारों को कम से कम और संभव हो तो सभी शूद्रों को पुनः *बौद्ध हो जाना चाहिए क्योंकि मूलत: *हम बौद्ध थे।*
*रैदास के अंतस्तल में बुद्ध गूंज रहे हैं, वही आग। लेकिन रविदास ने उस आग को आग नहीं बऩने दिया, रोशनी बना लिया। आग जला भी सकती है और प्रकाश भी दे सकती है। बुद्ध के वचन अंगारो जैसे हैं। बडा साहस चाहिए उन्हें पचाने का। रैदास के वचन फूल जैसे हैं। पचा जाओगे तब पता चलेगा कि आग लगा गए।*
*आज दुनिया में अगर भारत की कोई प्रतिष्ठा है तो उस प्रतिष्ठा में 50% हाथ तो बुद्ध का है। दूसरे देशों के लोग भारत को बुद्ध के कारण याद करते हैं। सारा एशिया भारत कोे सम्मान से देखता है, भारत को तीर्थ मानता है तो बुद्ध के कारण। जैसे सारे मुसलमान मक्का की यात्रा करते हैं, ऐसे ही सारे बौद्धों के मन में, करोड़ों करोड़ों बौद्धों के मन में एक ही अभीप्सा होती है कि कभी बुद्धगया, कभी भारत की भूमि पर पैर पड़ जाएं। भारत ने इतना बड़ा दूसरा बेटा पैदा नहीं किया जितना बुद्ध।*
*ओशो, पुस्तक-"मन ही पूजा मन ही धूप" (रैदास वाणी) प्रवचन माला*
*इसके अलावा भी तथागत बुद्ध व सतगुरु रविदास की वैचारिक समानताएं। उनकी शिक्षाओं में साफ नजर आती है।*
*अप्प दीपो भव* :-- तथागत बुद्ध।
*मन चंगा तो कठौती में गंगा* :-- सतगरू रविदास
बुद्ध का त्रिशरण व पंचशील
*बुद्धम शरणम गच्छामि*
*धम्मम शरणम गच्छामि*
*संघम शरणम गच्छामि*
*पंचशील*
*पाणातिपाता वेरमणी सिक्खापद्म समादयामि।*
*आदिन्नदाना वेरमणि सिक्खापद्म समादियामि*
*कामेसु मिच्छाचारा वेरमणिसिक्खापद्म समादियामि*
*मूसावादा वेरमणिसिक्खापद्म समादियामि*
*सुरा-मेरय-मन्ज पदमट्ठाना वेरमणिसिक्खापद्म समादियामि *
*सतगुरु रविदास जी का त्रिशरण व पंचशील*
*त्रिशरण*
*माधौ अविद्या अहित कीन्हीं,विवेक दीप मलीन*
*सत्संगत मिल रहियो माधौ, जैसे मधुप मक्खीरा*
*पंचशील*
(1)
*प्राणी वध नहीं कीजिए, यही जीव ब्रह्म समान*
(2)
*रविदास समकरी खाइहि, जो लो पार बसाय*
*नेक कमाई जऊ करई, कबहु न निष्फल जाए*
(3)
*जो बस राखि इंद्रियां, सुख-दुख समझी सामान*
*सोऊ असरित पद पाईंगों, कहि रविदास बरवान*
(4)
*रविदास सतमत तिअागिये, जो लो घट माहि प्राण*
*असत भ्रिष्ट करि जगत महि, सदा होत अपमान*
(5)
*रविदास मदिरा का पीजिए, जो चढ़ि-चढ़ि उतराय*
*नाम महारस पीजिए, जो चढ़े नाहि उतराय*
दोनों ही महापुरुषों ने समयानुसार एक ही बात कही है।
विरेंद्र बौद्ध चिंतनशील
9812112158