محمد جمال الدین خان قادِری
February 13, 2025 at 10:10 AM
*नफ़्ल नमाज़ जमाअ़त से पढ़ना कैसा*
📝 मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी
*`ह़ुज़ूर स़दरुश् शरीअ़ह फ़रमाते हैं:`*
स़लातुर् रग़ाइब कि रजब की पहली शबे जुमुअ़ह और शअ़्बान की पंद्रहवीं शब और शबे क़द्र में जमाअ़त के साथ नफ़्ल नमाज़ बअ़्ज़ जगह लोग अदा करते हैं, फ़ुक़हा इसे नाजाइज़ व मकरूह व बिदअ़त कहते हैं और लोग इस बारे में जो ह़दीस बयान करते हैं मुह़द्दिसीन इसे मैज़ूअ़् (बे-अस़्ल, मनगढ़त) बताते हैं - लेकिन अजिल्लए अकाबिर औलिया (बड़े बड़े औलिया) से बअसानीदे स़ह़ीह़ह मरवी है, तो इस के मनअ़् में ग़ुलू न चाहिए और अगर जमाअ़त में तीन से ज़ाइद मुक़तदी न हों जब तो अस़्लन कोई ह़रज नहीं - [बहारे शरीअ़त, जिल्द¹, ह़िस़्स़ह⁴, पेज⁶⁸⁷, मस्अलह¹]
*`फ़तावा रज़विय्यह शरीफ़ में है:`*
मुजद्दिदे अअ़्ज़म, अअ़्ला ह़ज़रत इमाम अह़मद रज़ा ख़ान علیہ الرحمہ फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁷, पेज⁴⁶⁵ पर फ़रमाते हैं: नफ़्ल ग़ैरे तरावीह़ में इमाम के सिवा तीन आदमियों तक तो इजाज़त ही है - चार की निस्बत कुतुबे ह़नफ़िय्यह में कराहत लिखते हैं यअ़्नी कराहते तन्ज़ीही जिसका ह़ास़िल ख़िलाफ़े औला है न कि गुनाह व ह़राम کما بیناہ فی فتاوٰنا (जैसा कि हमने इसकी तफ़्स़ील अपने फ़तावा में बयान कर दी है) मगर मस्अलह मुख़्तलफ़ फ़ीह है और बहुत अकाबिरे दीन से जमाअ़ते नवाफ़िल *बित्-तदाई़* (तदाई़ के लुग़वी मअ़्ना है *एक दूसरे को बुलाना* - और तदाई़ के साथ जमाअ़त का मत़लब है कि कम अज़ कम चार आदमी एक इमाम की इक़्तिदा करें - फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁷, पेज⁴³⁰) साबित है और अ़वाम फ़ेअ़्ले ख़ैर से मनअ़् न किए जाएंगे - उ़लमाए उम्मत व ह़ुकमाए मिल्लत ने ऐसी मुमानअ़त से मनअ़् फ़रमाया है - [फ़तावा रज़विय्यह, जिल्द⁷, पेज⁴⁶⁵]
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