محمد جمال الدین خان قادِری
محمد جمال الدین خان قادِری
February 18, 2025 at 01:20 PM
_अपने दिल का क़िब्लह, अपनी फ़िक्र दुरुस्त रखें_ ✍ मौलाना त़ारिक़ अनवर मिस़्बाह़ी स़ाह़ब 📝 मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी रज़वी *`हाँ, तुम भी अअ़्ला ह़ज़रत की त़रह़ इ़श्क़े मुस़्त़फ़वी और मुह़ब्बते नबवी में डूब जाओ तो ज़रूर बहुत कुछ पा लोगे, लेकिन येह काम तुम से हो नहीं पाएगा - तुम अ़ह्दे ह़ाज़िर के किसी अ़ज़ीम फ़र्द पर अपनी मुह़ब्बतें निसार करोगे और फिर वहीं तक मह़दूद होकर रह जाओगे, यअ़्नी वसीलह को मक़स़ूदे अस़्ली बना लोगे। .... सारी बुराई मक़स़ूद व वसीलह में फ़र्क़ न करने के सबब पैदा हुई है -`* https://whatsapp.com/channel/0029Va4xNTcBlHpj2ZXcdA3J ❶ क़ुरूने ऊला से आज तक यही त़रीक़े कार मुरव्वज है कि अस़ह़ाबे इ़ल्म व फ़ज़्ल किसी एक फ़न में कमाल व महारत ह़ास़िल करने की कोशिश करते और फिर फ़ज़्ले ख़ुदा वन्दी से माहिर व कामिल हो जाते - ह़स्बे ज़रूरत ज़िम्नी त़ौर पर दीगर उ़लूम व फ़ुनून की त़रफ़ भी पेश क़दमी करते - आप भी अपने लिए किसी एक फ़न का इन्तिख़ाब फ़रमा कर कमाल व महारत ह़ास़िल करने की कोशिश करें और ज़िम्नी त़ौर पर दीगर ज़रूरी उ़लूम व फ़ुनून से भी रब्त़ व तअ़ल्लुक़ बर-क़रार रखें। ❷ अअ़्ला ह़ज़रत या उन जैसी अ़ब्क़री शख़्स़ियात पर अल्लाह तआ़ला ﷻ का ख़ास़ फ़ज़्ल व एह़सान था कि बहुत से उ़लूम व फ़ुनून में मुन्फ़रिदुल मिसाल और बे नज़ीर व फ़ाइक़ुल अक़रान क़रार पाए - *हम लोग अअ़्ला ह़ज़रत के सामने वैसे ही हैं जैसे नारियल के झाड़ के सामने चने का पौदा -* *हाँ, तुम भी अअ़्ला ह़ज़रत की त़रह़ इ़श्क़े मुस़्त़फ़वी और मुह़ब्बते नबवी में डूब जाओ तो ज़रूर बहुत कुछ पा लोगे, लेकिन येह काम तुम से हो नहीं पाएगा - तुम अ़ह्दे ह़ाज़िर के किसी अ़ज़ीम फ़र्द पर अपनी मुह़ब्बतें निसार करोगे और फिर वहीं तक मह़दूद होकर रह जाओगे, यअ़्नी वसीलह को मक़स़ूदे अस़्ली बना लोगे -* शैख़े ईस़ाल अल्लाह तआ़ला तक रसाई का ज़रीअ़ह और शैख़े इत्तिस़ाल ह़ुज़ूरे अक़दस ﷺ तक रसाई का ज़रीअ़ह, येह दोनों ही अस़्ले मक़स़ूद नहीं हैं, लेकिन शैख़े ईस़ाल का पाना मुश्किल और अ़ह्दे ह़ाज़िर के शैख़े इत्तिस़ाल का दरबारे नबवी तक पहुँचाना मुश्किल - मुश्किल ज़माने में पैदा हुए तो तुम अअ़्ला ह़ज़रत कैसे बनोगे ? दर अस़्ल फ़िक्री पस्ती इन्सान को नाकारह बना देती है, वरना अ़ह्दे उ़रूज और अ़ह्दे ज़वाल दोनों अ़ह्द के इन्सान इन्सान ही होते हैं - स़िर्फ़ फ़िक्री बलन्दी और फ़िक्री पस्ती का फ़र्क़ होता है - अ़क़्ल-मन्दी अर्जमन्दी लाती है और ह़िमाक़त से हिलाकत आती है - *सारी बुराई मक़स़ूद व वसीलह में फ़र्क़ न करने के सबब पैदा हुई है -* वास्त़ह से बिल्-वास्त़ह मुह़ब्बत की जाती है, क्योंकि वोह मक़स़ूद तक पहुँचने का वास्त़ह होता है और वास्त़ह के लिए मुह़ब्बत का कुछ फ़ी स़द ह़िस़्स़ह मुख़्तस़ किया जाता है, न कि सारी मुह़ब्बतें उस पर निछावर की जाती हैं - हाँ बे-फ़ैज़ वसीलह ऐसी ही तमन्ना करेगा कि तुम उसके अंध-भक्त बन जाओ - ख़्वाह तुम्हारी तरक़्क़ी हो या तनज़्ज़ुली, फ़ाइदह हो या नुक़्स़ान, पस नादानी न करो। *ह़ुज़ूर ख़्वाजह ग़रीब नवाज़ رضی الله عنہ ने ह़ज़रते ख़्वाजह क़ुत़बुद्दीन बख़्तियार काकी علیہ الرحمہ को अल्लाह तआ़ला की मअ़्रिफ़त तक पहुँचाया या अपनी ज़ात का इ़रफ़ान अ़त़ा फ़रमाया ?* सोचो, समझो, ग़ौर करो, दोबारह दुनिया में भेजे नहीं जाओगे, लिहाज़ा आ जाओ उनकी बारगाहे अक़दस में जो ख़ास़ कर क़ुर्बे क़यामत वालों के लिए रसूल बना कर मबऊ़स फ़रमाए गए और ख़ूब भलाइयाँ समेट लो - ह़ुक्म है कि जब *तशह्हुद* में व अश्हदु अन्-न मुह़म्मदन अ़ब्दुहू व रसूलुह पढ़ा जाए तो ह़ुज़ूरे अक़दस ﷺ का तस़व्वुर किया जाए - हर शब व रोज (हर रात और दिन) फ़राइज़ व सुनन व नवाफ़िल मिलाकर 48 रकअ़ात हैं और उन में 25 बार *अत्-त ह़िय्यातु* पढ़ी जाती है - आप ख़ुद ही अपनी आज़माइश करलें कि कितनी बार *अत्-त ह़िय्यातु* पढ़ते वक़्त आपके दिल में तस़व्वुरे नबवी जलवह गर हुवा ? फिर आपको समझ में आ जाएगा कि आप ह़क़ाइक़ से किस क़दर दूर हैं और आप को कैसा होना चाहिए - लेकिन येह सब बातें ज़िन्दों के लिए हैं, मुर्दह दिलों से स़र्फ़े नज़र करना ही ख़ूब तर है - ✍ मौलाना त़ारिक़ अनवर मिस़्बाह़ी *जारी कर्दह:* 8 फ़रवरी 2025 ई़स्वी 📝मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी ▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬▬ یہ تحریر `اردو Urdu उर्दू` مِیں ↶ https://whatsapp.com/channel/0029Va4xNTcBlHpj2ZXcdA3J/763 येह तह़रीर `हिंदी Hindi ہندی` में ↷ https://whatsapp.com/channel/0029Va4xNTcBlHpj2ZXcdA3J/762
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