
محمد جمال الدین خان قادِری
February 26, 2025 at 07:15 AM
मुसलमानों को नुक़्स़ान से बचाने के लिए
किसी का ऐ़ब बयान करना ग़ीबत नहीं !!
📝 मुह़म्मद जमालुद्दीन ख़ान क़ादिरी
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*`ह़ुज़ूर स़दरुश् शरीअ़ह फ़रमाते हैं:`*
एक शख़्स़ नमाज़ पढ़ता है और रोज़े रखता है मगर अपनी ज़बान और हाथ से दूसरे मुसलमानों को ज़रर (नुक़्स़ान) पहुँचाता है उसकी इस ईज़ा रसानी (दुख, तकलीफ़ पहुँचाने) को लोगों के सामने बयान करना ग़ीबत नहीं, क्योंकि इस ज़िक्र का मक़्स़द येह है कि लोग उसकी इस ह़रकत से वाक़िफ़ (ख़बरदार, होशियार) हो जाएं और उससे बचते रहें कहीं ऐसा न हो कि उसकी नमाज़ और रोज़े से धोका खा जाएं और मुस़ीबत में मुब्तला हो जाएं - ह़दीस में इरशाद फ़रमाया कि क्या तुम फ़ाजिर के ज़िक्र से डरते हो जो ख़राबी की बात उसमें है बयान करदो ताकि लोग उससे परहेज़ करें और बचें - [बहारे शरीअ़त, जिल्द³, ह़िस़्स़ह¹⁶, पेज⁵³², मस्अलह¹]
*`मज़ीद फ़रमाते हैं:`*
ऐसे शख़्स़ का ह़ाल जिस का ज़िक्र ऊपर गुज़रा अगर बादशाह या क़ाज़ी से कहा ताकि उसे सज़ा मिले और अपनी ह़रकत से बाज़ आ जाए येह चुग़्ली और ग़ीबत में दाख़िल नहीं - येह ह़ुक्म फ़ासिक़ व फ़ाजिर का है जिसके शर से बचाने के लिए लोगों पर उसकी बुराई खोल देना जाइज़ है और ग़ीबत नहीं - [बहारे शरीअ़त, // // // मस्अलह²]
*`और फ़रमाते हैं:`*
किसी के ज़ुल्म की शिकायत ह़ाकिम के पास करना भी ग़ीबत नहीं, मस्लन येह कि फ़ुलां शख़्स़ ने मुझ पर येह ज़ुल्म व ज़्यादती की है, ताकि ह़ाकिम उसका इन्स़ाफ़ व दाद-रसी (इन्स़ाफ़, न्याय) करे - [बहारे शरीअ़त, // // पेज⁵³⁵, मस्अलह²]
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