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February 14, 2025 at 03:45 AM
क्या कहें, ज़िन्दगी मुझपे कुछ मढ़ रही है, ताने मार-मार कर, जख्म खूब गढ़ रही है, बिना शोर की हर आवाज़ है दरमियान, जाने किस डगर पे, ज़िन्दगी कुछ अड़ रही है कहने को तो, बहुत कुछ कह रही है, चुप-चाप सही, मगर वो सब सह रही है, रात में अँधेरी थोड़ी ज्यादा है तो क्या हुआ, कल की सुबह तो, तुम्हारे हक़ में कह रही है. ........✍️✍️
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