Dawah & iqra
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January 31, 2025 at 05:37 PM
*ज़िंदगी का मक़सद* इस्लाम में ज़िंदगी का मक़सद अल्लाह की इबादत करना और उसकी हिदायत के मुताबिक जीना है। यह बात क़ुरआन और नबी मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तालीमात से वाज़ेह होती है। *1. अल्लाह की इबादत (बंदगी)* अल्लाह क़ुरआन में फ़रमाता है: *"और मैंने जिन्न और इंसान को सिर्फ अपनी इबादत के लिए पैदा किया है।" (क़ुरआन 51:56)* इस्लाम में इबादत सिर्फ़ नमाज़ और रोज़े तक महदूद नहीं, बल्कि हर वह अमल जो अल्लाह की रज़ा के लिए किया जाए, इबादत है। *2. अल्लाह के ज़मीन पर वकील (ख़िलाफ़त)* अल्लाह ने इंसान को ज़मीन पर अपना ख़लीफ़ा बनाया: *"वही है जिसने तुम्हें ज़मीन का ख़लीफ़ा बनाया..." (क़ुरआन 35:39)* इसका मतलब है कि इंसान को इंसाफ़ क़ायम करना, समाज की भलाई करनी, और कुदरत की हिफ़ाज़त करनी है। *3. इल्म और समझ हासिल करना* इस्लाम इल्म हासिल करने की तल्क़ीन करता है: *"पढ़ो, अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया।" (क़ुरआन 96:1)* इंसान का मक़सद सिर्फ़ जीना नहीं, बल्कि इल्म हासिल करना, अपने आप को समझना और अल्लाह की हिदायत को अपनाना भी है। *4. ज़िंदगी एक आज़माइश है* हर शख़्स की ज़िंदगी इम्तिहान है: "और हम तुम्हें ज़रूर आज़माएँगे किसी डर और भूख से, माल, जान और फलों के नुक़सान से, मगर सब्र करने वालों को खुशख़बरी दे दो।" (क़ुरआन 2:155) मुसीबत और ने’मत दोनों अल्लाह की तरफ़ से इम्तिहान हैं, जो देखने के लिए दिया जाता है कि हम शुक्र और सब्र करते हैं या नहीं। *5. आख़िरत की कोशिश* ये दुनिया कुछ दिनों का सफ़र है, असल ज़िंदगी आख़िरत की है: *"और ये दुनिया की ज़िंदगी सिर्फ़ एक खेल तमाशा है, असल ज़िंदगी तो आख़िरत की है, काश लोग समझते।" (क़ुरआन 29:64)* मोमिन का मक़सद सिर्फ़ दुनिया नहीं, बल्कि अल्लाह की रज़ा हासिल करना और जन्नत का तालिब बनना है। *नतीजा* इस्लाम के मुताबिक़, ज़िंदगी एक मक़सद के साथ दी गई है। अल्लाह की इबादत, इंसाफ़, इल्म, और आख़िरत की तैयारी ही इंसान का असल मक़सद है।

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