
Dawah & iqra
February 4, 2025 at 12:28 PM
*दरीया-ए-नील और हज़रत उमर (रज़ि.) का वाकिया*
जब हज़रत अम्र बिन आस (रज़ि.) ने मिस्र को फ़तह किया और वहाँ के गवर्नर बने, तो उन्होंने देखा कि मिस्र के लोग एक अजीब रस्म अदा करते थे। उनका यह अक़ीदा था कि अगर दरिया-ए-नील को बहता रखना है, तो हर साल एक कुंवारी लड़की को क़ुर्बान कर के नदी में बहाया जाता था। ये एक जहालत भरी रस्म थी जो सदियों से चली आ रही थी।
*अम्र बिन आस (रज़ि.) की तशवीश*
जब इस रस्म का वक्त आया, तो मिस्र के लोग अम्र बिन आस (रज़ि.) के पास आए और कहा कि अगर यह रस्म अदा ना की जाए, तो नील का पानी रुक जाएगा और सूखा पड़ जाएगा। अम्र बिन आस (रज़ि.) ने इस गैर-इस्लामी अमल को रोक दिया और इस रस्म से मना कर दिया। लेकिन जैसा कि लोगों को डर था, कुछ ही दिनों में दरिया-ए-नील का पानी कम होने लगा और सूखा पड़ने लगा।
*हज़रत उमर (रज़ि.) का ख़त*
यह मामला जब हज़रत उमर बिन ख़त्ताब (रज़ि.) के पास पहुँचा, तो उन्होंने एक ख़त लिखा और अम्र बिन आस (रज़ि.) को भेजा, ताकि उसे दरिया-ए-नील में डाल दिया जाए। ख़त में लिखा था:
*"अल्लाह के बंदे उमर बिन ख़त्ताब की तरफ़ से मिस्र के नील दरिया के नाम। अगर तू अपने आप बहता है, तो हमें तेरी कोई ज़रूरत नहीं। और अगर तू अल्लाह के हुक्म से बहता है, तो हम अल्लाह से दुआ करते हैं कि वो तुझे जारी रखे।"*
*दरिया-ए-नील का मौजिज़ा*
जब यह ख़त दरिया-ए-नील में डाला गया, तो चंद घंटों के अंदर पानी फिर से तेज़ी से बहने लगा और मिस्र के लोगों की परेशानी दूर हो गई। इस के बाद फिर कभी इस क़ुर्बानी की रस्म मिस्र में नहीं दोहराई गई।
इस वाकिए से सीख
*1. तौहीद का सबक़* – इस्लाम ने साबित कर दिया कि अल्लाह ही हर चीज़ का मालिक है और कोई भी चीज़ उसके हुक्म के बग़ैर नहीं चल सकती।
*2. कायदाना अक़्लमंदी*– हज़रत उमर (रज़ि.) ने एक मुनासिब तरीक़े से इस ग़ैर-इस्लामी रस्म को खत्म किया।
*3. जिहालत का खातमा*– इस्लाम ने इंसानों को जहालत और बेकार की रस्मों से निजात दिलाई।
*4. ईमान की ताक़त* – जब सच्चे ईमान के साथ किसी अमल को किया जाए, तो अल्लाह की मदद भी शामिल होती है।
यह वाकिया इस्लामी तारीख़ का एक अहम हिस्सा है और यह बताता है कि सच्चा ईमान और अक़्लमंदी कैसे दुनिया को बदल सकती है।
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