GitaVerZ
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February 3, 2025 at 12:10 AM
🌟 **कर्मयोग: कर्म और योग का सामंजस्य** 🌟 📖 **कर्मयोग का गूढ़ रहस्य!** 📖 ➡️ **श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में कर्मयोग शब्द का प्रयोग किया है, जो दो महत्वपूर्ण अवधारणाओं से मिलकर बना है:** 🔹 **कर्म** – सांसारिक दायित्वों का पालन। 🔹 **योग** – भगवान से एकत्व की भावना। 💡 **कर्मयोगी कौन है?** 👉 **जो मन को भगवान में अनुरक्त रखकर सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करता है।** 🙏 **वह सभी कर्म करता है, लेकिन उनके फलों में आसक्त नहीं होता, इसलिए वह कर्म के बंधन से मुक्त रहता है।** 🔥 **कर्मबंधन का रहस्य!** ➡️ कर्म हमें बांधता नहीं, बल्कि **कर्म के फलों में आसक्ति** हमें बांधती है। ⚖️ **कर्म करने से बंधन नहीं होता, परंतु परिणामों की इच्छा रखने से मनुष्य बंध जाता है।** 🛕 **पाखंडी संन्यासी vs. कर्मयोगी** 🚫 **जो व्यक्ति कर्म से विरक्त तो रहता है लेकिन कर्म के फलों की आसक्ति नहीं छोड़ता, वह पाखंडी संन्यासी है।** ✔️ **इसके विपरीत, एक गृहस्थ जो कर्मयोग में स्थित रहता है, वह अधिक श्रेष्ठ है।** 📜 **श्री कृपालु जी महाराज ने इस सिद्धांत को इन पंक्तियों में स्पष्ट किया है:** 📝 _*मन हरि में तन जगत में, कर्मयोग तेही जान।*_ _*तन हरि में मन जगत में, यह महान अज्ञान।।*_ _(_भक्ति शतक-84_)_ 💡 **अर्थ:** ✅ **यदि शरीर संसार में कार्य कर रहा हो, लेकिन मन भगवान में लीन हो, तो वह कर्मयोग है।** ❌ **यदि शरीर आध्यात्मिक कार्यों में हो, लेकिन मन संसार में भटक रहा हो, तो वह पाखंड है।** ✨ **सच्चा कर्मयोगी कौन?** ✅ **जो संसार में रहते हुए भी भगवान के प्रति समर्पित रहता है।** ✅ **जो निष्काम भाव से कर्म करता है और परिणामों की चिंता नहीं करता।**
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