
GitaVerZ
February 12, 2025 at 12:10 AM
*🌿 भगवद गीता: अध्याय 3, श्लोक 16 📖✨*
🔹 _*एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः।*_
🔹 _*अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति ॥*_
📜 *शब्दार्थ:*
🔹 *एवम्* – इस प्रकार
🔹 *प्रवर्तितम्* – कार्यशील
🔹 *चक्रम* – चक्र
🔹 *न* – नहीं
🔹 *अनुवर्तयति* – पालन करना
🔹 *अघ-आयुः* – पापपूर्ण जीवन
🔹 *इन्द्रिय-आरामः* – इन्द्रियों का सुख
🔹 *मोघम्* – व्यर्थ
🔹 *पार्थ* – अर्जुन
🔹 *सः जीवति* – ऐसा व्यक्ति व्यर्थ जीवन जीता है
📖 *अनुवाद:*
_*हे पार्थ!*_ जो मनुष्य *यज्ञ कर्म के चक्र* का पालन नहीं करता, वह *पाप* अर्जित करता है। ऐसा व्यक्ति केवल *इन्द्रियों की तृप्ति* के लिए जीता है, और उसका *जीवन व्यर्थ* हो जाता है। 💫
🌀 *यज्ञ का चक्र: ब्रह्मांड का नियम* 🌍
भगवान कृष्ण यहाँ *संपूर्ण ब्रह्मांड की कार्यप्रणाली* समझा रहे हैं। यह सृष्टि एक *नियमित चक्र* के तहत चलती है – जिसमें *सृजन, पालन और विनाश* का क्रम चलता रहता है। 🌿🔥
🔹 *यज्ञ कर्म का पालन* – सृष्टि का संतुलन बनाए रखता है।
🔹 *स्वार्थी जीवन* – प्रकृति के नियमों को तोड़ता है।
🔹 *परिणाम* – पर्यावरण असंतुलन 🌪️, महामारियाँ 🦠, प्राकृतिक आपदाएँ ⚡
⚖️ *स्वार्थ बनाम यज्ञ जीवन*
_आज का समाज_ अत्यधिक *भौतिकवादी* हो गया है। लोग *सिर्फ अपने लाभ* के लिए कार्य कर रहे हैं, जिससे समाज और प्रकृति को क्षति पहुँची है।
❌ *स्वार्थी जीवन का परिणाम:*
🔹 पर्यावरण असंतुलन 🌍
🔹 नैतिक पतन 🏚️
🔹 बढ़ता अपराध 🚔
🔹 मानसिक अशांति 😵
✅ *यज्ञमय जीवन का लाभ:*
🔹 प्रकृति का संतुलन 🍃
🔹 समाज में सहयोग 🤝
🔹 सुख-शांति और समृद्धि 🕊️
🌎 *यज्ञ और प्रकृति संतुलन*
यदि हम केवल *भोगवादी दृष्टिकोण* से कार्य करेंगे, तो *माँ प्रकृति* को इसका *प्रतिशोध* लेना होगा। यह *बाढ़ 🌊, सुनामी 🌪️, महामारी* आदि के रूप में सामने आता है।
✨ *तो क्या करें?*
🙏 *निस्वार्थ सेवा करें*
🙏 *प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करें*
🙏 *समाजहित में कार्य करें*
_जो इस यज्ञ चक्र का पालन नहीं करता, वह व्यर्थ जीवन जीता है।_ – *श्रीकृष्ण*
💬 *आपका क्या विचार है? क्या आज की दुनिया इस चक्र को समझ रही है?* 🤔
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🙏
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