पीपीआईडी - झारखंड, PEOPLES PARTY OF INDIA DEMOCRATIC JHARKHAND
पीपीआईडी - झारखंड, PEOPLES PARTY OF INDIA DEMOCRATIC JHARKHAND
February 3, 2025 at 09:58 AM
जब एक मूलनिवासी नेता दूसरे मूलनिवासी नेता से गठबंधन करता है तो दोनों मूलनिवासी नेताओं और उनके समर्थकों की ताकत मनोबल और उत्साह बढ़ जाता है और दोनों मिलकर मूलनिवासी बहुजन समाज के हित में निर्णय लेते हैं, नीतियां बनाते हैं और संविधान को अमल में लाते हैं। लेकिन इसके विपरीत अगर कोई मूलनिवासी नेता किसी भी ब्राह्मणवादी पार्टी से गठबंधन करता है तो उस मूलनिवासी नेता और उसकी पार्टी के कार्यकर्ताओं की ताकत, मनोबल और उत्साह घट जाता है। ब्राह्मणवादी पार्टी से गठबंधन के बाद मूलनिवासी बहुजन समाज के हित में बोलने से वह डरने लगते हैं और इस और गठबंधन ज्यादातर निर्णय मूलनिवासी बहुजन समाज के हितों के विरोध में लेता है और ब्राह्मणवादी पार्टी का ही एजेंडा लागू होता है। क्योंकि मूलनिवासियों का आपसी गठबंधन नेचुरल होता है जबकि और ब्रह्मणवादियों का गठबंधन ब्राह्मणवादी पार्टी के दबाव में या किसी षड्यंत्र के तहत होता है। उदाहरण-1 जब नीतीश कुमार राजद के साथ गठबंधन करते हैं तो हमेशा मंडल आयोग, आरक्षण, जाति आधारित जनगणना, समुचित भागीदारी, आर्थिक गैरबराबरी जैसे मुद्दों पर मुखर होकर बोलते हैं। लेकिन जब भाजपा के साथ जाते हैं तो इन मुद्दों पर चुप्पी साध लेते हैं। क्या बीजेपी से गठबंधन के बाद नीतीश कुमार केंद्र में जाति आधारित जनगणना करने और जनसंख्या के अनुपात में भागीदारी देने की बात करने की हिम्मत भी कर सकते हैं? शायद नहीं? उदाहरण-2 जब ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया था तो मूलनिवासी बहुजन समाज के हित के मुद्दों पर वह अखिलेश यादव से भी ज्यादा आक्रामक होकर बोलते थे। वही ओमप्रकाश राजभर भाजपा के साथ जाने पर मूलनिवासी बहुजन समाज के हित वाले मुद्दों पर प्रायः चुप रहते हैं। उदाहरण-3 जब स्वामी प्रसाद मौर्य बहुजन समाज पार्टी में होते थे तब मूलनिवासी बहुजन समाज के मुद्दों पर बहुत आक्रामक होकर बयान देते थे और भारतीय जनता पार्टी पर आरोप प्रत्यारोप करते थे। वही स्वामी प्रसाद मौर्य जब भाजपा में चले गए तो लगभग चुप रहने लगे और फिर से समाजवादी पार्टी में वापस आने के बाद फिर से आक्रामक हो गए हैं। उदाहरण-4 जब तक बहुजन समाज पार्टी में ब्राह्मण लोगों ने घुसपैठ नहीं किया था तब तक बहुजन समाज पार्टी का नेतृत्व और उसके कार्यकर्ता ब्राह्मणवाद पर आक्रामक रूप से प्रहार करते थे और आवाज बुलंद करते थे। सपा बसपा के गठबंधन के समय भी दोनों पार्टियों और उनके समर्थकों का मनोबल बहुत बढा हुआ था। लेकिन जैसे ही सतीश मिश्रा बहुजन समाज पार्टी में प्रमुख पद पर आसीन हुए वैसे ही बसपा के हाई कमान के साथ-साथ उनके कार्यकर्ताओं के भी सुर बदल गए। वे समरसता की भाषा बोलने लगे और अपना समता का एजेंडा भूल गए। उदाहरण और भी हैं..… उपरोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट है की ओबीसी एससी एसटी सहित सभी मूलनिवासी बहुजन समाज को आपस में मिलकर लोकतांत्रिक प्रणाली, फुले-अंबेडकरी विचारधारा और मूलनिवासी बहुजन पहचान के तहत संगठित होना चाहिए और संगठित प्रयास कर देश की सत्ता हासिल कर संविधान को अमल में लाना चाहिए जिससे कि देश में सामाजिक और आर्थिक गैरबराबरी दूर की जा सके। कोई भी ब्राह्मणवादी पार्टी देश में सामाजिक और आर्थिक गैर बराबरी को दूर नहीं करेगी बल्कि वह बढ़ाएगी। क्योंकि ब्राह्मणवादी पार्टियां यथास्थिति को बनाए रखना चाहती हैं और सामाजिक परिवर्तन को आगे नहीं बढ़ाना चाहती है। यह काम मूलनिवासी बहुजन समाज को मिलकर स्वयं करना होगा। बाबा साहब डॉ अंबेडकर ने कहा था कि, "भारत में सच्चा लोकतंत्र गैर-ब्राह्मण पार्टी के हाथों में ही सुरक्षित हो सकता है। इसलिए गैर-ब्राह्मण पार्टी को खुद का पुनर्निर्माण करना चाहिए" Dr Baba Saheb Ambedkar Writings and speeches volume 17, Part-(III), message-82 NON-BRAHMIN PARTY SHOULD REBUILD ITSELF The view that true democracy in India could be safe only in the hands of the Non-Brahmin Party was expressed by Dr. B. R. Ambedkar, Labour Member, Government of India, while speaking at party given in his honour on behalf of the Maratha and allied communities at the R. M. Bhatt High School, Parel, Bombay on Sunday the 17th January 1943. He regretted that the Non-Brahmin Party which was in power in the Madras and Bombay Provinces had now disintegrated owing to various reasons, and expressed the hope that, profiting by the mistakes of the past, it would shed the minor differences that existed among its various sections and rebuild itself into a united and strong force again. For the success of a party he mentioned three things as necessary- a leader, a good organisation and a clear and definite objective and programme. It was a pity that many members of the Non-Brahmin Party had left it and joined the Congress, but they were now regretting their mistake. It was necessary not only for members of the particular communities but also in the interest of democracy in India that the Non-Brahmin Party should rebuild itself and become a power. – Dr. B. R. Ambedkar, Labour Member. 🇮🇳 #पीपल्स_पार्टी_ऑफ_इंडिया_डेमोक्रेटिक
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