
Abde Mustafa Organisation
February 8, 2025 at 05:50 PM
कॉपी-पेस्ट वाले मुसन्निफ़
कुछ लोगों को रातों-रात मुसन्निफ़ बनने का शौक़ है, ऐसे लोग हमारे दरमियान पाए जा रहे हैं। ये एक मौज़ू पर कुछ आयतों को चुनते हैं, फिर उनकी तफ़्सीर को 'एक मशहूर ऐप' से कॉपी करके पेस्ट कर देते हैं और फिर एक नया नाम देकर उसे किताब कह देते हैं, और उस पर अपना नाम चिपका देते हैं। किताब लिखना इतना आसान नहीं है जितना ऐसे लोगों ने समझ रखा है।
कुछ नाशिरीन भी इनका भरपूर साथ दे रहे हैं। हम आए दिन लोगों को मना करते हैं कि "हम आपकी किताब शाया नहीं कर सकते," मगर दूसरे नाशिरीन अपने फ़ायदे के लिए ऐसे लोगों को "एक मुसन्निफ़" बनाकर पेश कर रहे हैं। इस पर रोक लगाने की ज़रूरत है।
नाशिरीन को चाहिए कि अब अपने मेयार को बदलें। केवल भीड़ बढ़ाना काफ़ी नहीं है। अपने फ़ायदे के लिए हर किसी की किताब शाया न करें। इस भीड़ में ऐसी खिचड़ी पक रही है कि जो वाक़ई काम की किताबें हैं, वे भी इसमें गुम हो रही हैं और उनकी मार्केटिंग सही से नहीं हो पा रही।
अ़ब्दे मुस्तफ़ा
मुह़म्मद साबिर क़ादिरी
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