Rudrametaverse
February 28, 2025 at 12:55 AM
*🔱 शिव सूत्र 1.12: "विस्मयो योगभूमिकाः" 🔱*
🕉️ *"कैसे पहचाने वे आत्माएँ जो परम चेतना (God-Consciousness) तक पहुँच चुकी हैं?"*
💫 *वे सदा "आश्चर्य और आनंद" (Amazement & Joy) से भरे रहते हैं!*
👉 लेकिन यह कोई *साधारण आनंद* नहीं है, जो इंद्रियों द्वारा अनुभव किया जाता है।
👉 यह *स्थायी और सूक्ष्म आनंद* है, जो *स्वयं की पहचान* से उपजता है।
🌀 *"सुख-दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं!"**
📌 *संस्कृत में 'सुख' और 'दुःख' एक साथ लिखे जाते हैं!*
📌 *इंद्रियों से मिलने वाला सुख अल्पकालिक होता है और उसके साथ दुःख जुड़ा ही होता है!*
💡 *परंतु परम चेतना में आनंद किसी भी इंद्रिय सुख से परे होता है!*
📜 *अभिनवगुप्त (परमार्थसार, श्लोक 80-81) कहते हैं:*
*"जो सब कुछ स्वयं के रूप में देखता है, वह आत्मानंद के अमृत का पान करता है!*
*"ऐसे ज्ञान के उदय के बाद जीवन में कुछ भी प्राप्त करने योग्य नहीं रह जाता!"*
⚡ *"इस ब्रह्मांड का एकमात्र उद्देश्य स्वयं को छुपाना और प्रकट करना है!"**
🔱 **भगवद गीता (7.2) में श्रीकृष्ण कहते हैं:**
*"जिसने यह जान लिया, उसके लिए अब कुछ भी जानने योग्य नहीं बचा!"*
🔹 *यही कारण है कि परम चेतना को प्राप्त योगी की तृप्ति कभी नहीं होती!*
🔹 *वह "आश्चर्य और आनंद" से निरंतर भरा रहता है!*
🌀 *"चक्रों (Chakras) से परे चेतना!"**
📌 कुछ लोग सोचते हैं कि यह आनंद *मूलाधार (Muladhara)* या *आज्ञा चक्र (Ajna)* में स्थित होता है,
📌 *लेकिन यह केवल उच्चतम अहं-बोध (I-Consciousness) में ही प्रकट होता है!*
🔥 *"सहस्रार (Sahasrara) भी केवल मानवीय चेतना का अंतिम बिंदु है, यह दिव्य चेतना का प्रारंभ मात्र है!"*
👉 यदि हम *इंद्रिय सुख की अपेक्षा* करते हैं, तो हम इस सूक्ष्म आनंद को अनुभव नहीं कर सकते!
👉 *हमें और अधिक "सूक्ष्म" बनना होगा!*
📜 *स्पंद कारिका (1.11) कहती है:*
"फिर साधक इस सत्य के साथ एक हो जाता है।
*"आश्चर्य और अद्भुत आनंद से भरकर, उसके लिए पुनर्जन्म और मृत्यु का मार्ग समाप्त हो जाता है!"*
🕊️ *"यह आनंद अविनाशी है – यह हमारा वास्तविक स्वरूप है!"*
📌 *"रहें जिज्ञासु और अपने भीतर की चेतना से जुड़े रहें!"*
🌟 *"रहें जुड़े *rudrametaverse* से!" 🚀
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