धर्म ज्ञान R P Pathak
धर्म ज्ञान R P Pathak
February 11, 2025 at 04:51 AM
मन की मृत्यु होती है क्या ? मनुष्य मूलतः आत्म स्वरूप है। प्रकृति के साथ उसका संयोग भी अनादि है। इस संयोग से ही सर्वप्रथम मन का निर्माण होता है। यही मन अहंकार एवं वासनायुक्त होकर प्रकृति तत्त्वों का संग्रह कर अपनी वासना पुर्ति हेतु विभिन्न शरीरो का निर्माण कर लेता है। जिसका अन्तिम रूप यह स्थूल शरीर है। यह आत्मा ऐसे 7 शरीरों से आबद्ध है जो सुक्ष्म से सुक्ष्मतर होते चले गये है। ये सभी आवरण आत्मा के वस्त्र की भांति हैं। जिनको उतार फेकने पर ही आत्मा का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है। आवरण युक्त होने से मनुष्य आत्मा को न देख कर इन 7 शरीरो को ही अपना वास्तविक स्वरूप समझने लगता है। इस भ्रान्ति को मिटाना ही आत्मदर्शन का मार्ग है। ये सभी आवरण मन की कल्पना से ही रचित है। इसलिए इनके छुट जाने पर भी मन जीवित रहता है जो अपनी वासना पूर्ति हेतु पुनः नये शरीरो का निर्माण कर लेता है। यह क्रम कई जन्मो तक चलता रहता है। ज्ञान की अंतिम अवस्था मे भी मन मरता नही है बल्कि वह आत्मा का ही अंग होने से उसमे विलीन हो जाता है। तथा इच्छा शक्ति के जाग्रत होने पर पुनः प्रकट हो जाता है यह प्रतिक्रिया कई कल्पों तक चलती रहती है। इसलिए सृष्टि का भी कभी अन्त नही होता। जिसे हम मनुष्य का जीवन एवं मृत्यु कहते है वह एक भ्रान्त धारणा है। जिसका सम्बन्ध केवल भौतिक शरीर से है। भौतिक शरीर के छूटने पर आत्मा अपने शेष 6 आवरणो से युक्त रहता है जिसमे मन अपने पूर्ण भाव से जीवित रहता है। स्थूल लोक को छोड कर यह जीव चेतना सूक्ष्म लोक मे प्रवेश कर जाती है। जहॉ यह अपने पूरे परिवार मन बुद्धि चित्त अहंकार आदि के साथ जीवित रहती है। जिससे स्थूल शरीर के अलावा समस्तअनुभूतियॉ उसे होती रहती है। मन के स्तर के समस्त कार्य वह बिना शरीर के ही सम्पादित करती रहती है। केवल स्थूल शरीर के कर्म बन्द होते है। मनुष्य के सूक्ष्म शरीर मे 7 चक्र हैं जिनका सम्बन्ध स्थूल शरीर की 7 मुख्य ग्रन्थियों से है। आध्यात्मिक प्रगति इन्ही से सम्भव है। जय श्री महाकाल 🙏🙏🌹🌹
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