जाने जैन इतिहास को ✨
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February 4, 2025 at 02:55 AM
*4 फरवरी* *कब क्या हुआ!* - जाने तेरापंथ के इतिहास को सन् 1968 में अर्हत् वंदना का संगान प्रारंभ हुआ। *सायंकालीन प्रार्थना* सन् 1944 (वि. सं. 2001) का सुजानगढ़ चातुर्मास सम्पन्न कर आचार्यश्री छापर-चाड़वास होते हुए बीदासर पधारे। आपके मन में चिन्तन आया कि प्रतिक्रमण के बाद कोई सामूहिक अनुष्ठान होना चाहिए। उसी चिन्तन के फलस्वरूप पौष कृष्णा पंचमी के दिन सायंकालीन प्रार्थना का प्रयोग शुरू हुआ। उस प्रार्थना के बोल थे-'ॐ जय जय त्रिभुवन अभिनन्दन त्रिशलानन्दन तीर्थपते' । वि. सं. 2006 तक यह क्रम चला। फिर जयपुर चातुर्मास में इस गीत के स्थान पर 'महावीर प्रभु के चरणों में' इस गीत का संगान होने लगा। सन् 1968 (वि. सं. 2025) आचार्यश्री का चातुर्मास मद्रास में हुआ। वहां महावीर प्रार्थना स्थल पर 'अर्हत वंदना' शुरू हुई। इनका प्रारम्भिक आगम पदों का संगान होता है। उनके बाद 'भावभीनी वंदना' गीत गाया जाता है। प्रार्थना के स्थान पर वन्दनाशब्द चिन्तनपूर्वक तय किया गया। प्रार्थना में याचना का भाव झलकता है। वन्दना स्तुति की प्रतीक है। अभ्यास रूप में 'अर्हत् वन्दना' का प्रारंभ 26 जुलाई, 1968 को (वि. सं. 2025 श्रावण शुक्ला एकम) पश्चिम रात्रि में हो गया था। उसका विधिवत प्रारंभ 23 अक्टूबर, 1968 (वि. सं. 2025 कार्तिक शुक्ला द्वितीया) को हुआ। तब से वह सुबह एवं सायं दोनों समय सामान्यतः यथाशक्य वज्रासन की मुद्रा में बैठकर की जाती है। जैन धर्म को जानने के लिए चैनल से जुड़े - https://whatsapp.com/channel/0029VayfLav6GcG8zAG6gz2G *समण संस्कृति संकाय* कार्यालय संपर्क सूत्र- *9784762373, 9694442373, 9785442373* 📲 प्रस्तुति : *समण संस्कृति संकाय, जैन विश्व भारती* 📲 संप्रसारक : *अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज़*

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