
जाने जैन इतिहास को ✨
February 7, 2025 at 02:18 AM
*7 फरवरी*
*कब क्या हुआ!*
- जाने तेरापंथ के इतिहास को
सन् 1950 से नवदीक्षित व्यक्ति को नया नाम मिलना प्रारंभ हुआ।
*दीक्षार्थी के नामों में परिवर्तन*
पहले दीक्षार्थी के नामों में परिवर्तन नहीं होता था। घर पर जो नाम होता उसी नाम से पुकारा जाता था। एकाधिक नाम वाले होते तो उनके आगे गांव का नाम बोला जाता था, जैसे- सूरजकंवरजी सरदारशहर, सूरजकंवरजी टमकोर, सूरजकंवरजी बीदासर आदि। नाम भी खाद्य पदार्थों अथवा जवाहरातों आदि के नाम पर होते थे, जैसे-नोजांजी, पिस्तांजी, दाखांजी, हीरांजी, पन्नाजी आदि। आचार्य श्री तुलसी ने चिन्तन किया कि नाम सांस्कृतिक होने चाहिए। वि. सं. 2007 हांसी चातुर्मास में दीक्षित होने वाली मुमुक्षु बहिनों के नामों में सर्वप्रथम परिवर्तन हुआ। वहां छह बहिनों की दीक्षा हुई थी जिनमें एक थी रायकुमारी। उसका नाम रखा गया साध्वी राजीमतीजी। तब से प्रायः नामों में परिवर्तन होता है। गुरुमुख से दीक्षार्थी को नये नाम से सम्बोधित किया जाता है।
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*समण संस्कृति संकाय*
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📲 प्रस्तुति : *समण संस्कृति संकाय, जैन विश्व भारती*
📲 संप्रसारक : *अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज़*
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