Poet And Pancakes
Poet And Pancakes
February 26, 2025 at 03:34 PM
*भोले की बारात* बजे डमरू ताल मृदंगा, हजार भूतन के साथ, भस्म लगाए, भांग चढ़ाये, चल पड़ी भोले की बारात। औघड़ नागा, राक्षस पिशाच, गंधर्वों की सजी हुई टोली, विचित्र दृश्य देख देख, करें राहगीर ठिठोली। भूतों की टोली मस्त पड़ी थी, नाचे ठुमक ठुमक, हल्ला गुल्ला खूब मचा, नभ मे गूंजे धमक धमक, देव सर असुर सब, पीछे पीछे आते थे, अनोखी ऐसी भोली बारात, मन ही मन मुस्काते थे। नंदी आगे आगे, सुंदर रुद्राक्ष की माला धारे, संग नारद वीणा बजाए, मंगल गीत संभाले, योगी साधु सिद्ध करते बाते अंतर्यामी, पूरी टोली बोले एक संग, "ओह्म् शंकर नमामि"! सजी हिमालय नगर नगरी, मंगल बजे चहूँ ओर, फूलों से महके गलियाँ, गूंजे शंखनाद घोर, पहूँची जो ये वरण यात्रा, गौरा माँ के द्वार, घराती देखे अचंभे मे, कैसे करे सत्कार? सबके नैन हुए तत्पर, दर्शन के आभारी, खोजे इधर उधर, कहाँ है भोले त्रिपुरारी? भूत गण खड़े खड़े, बम बम भोले चिल्लाते है, मटक मटक नंदी पर बाबा, महादेव तब आते है। ललाट पर चंदन सोहे, जटा में गंगा की धारा, त्रिनेत्र से अग्नि बरसे, बदन पे लगा भभूत सारा! मृगछाल ओढ़े हुए, कंठ मे नागों की माला, हाथ मे डमरू, त्रिशूल सुशोभित, मुस्का रहे महाकाला। मैना रानी खड़ी सिहरी, देख ये अनोखी बारात, करत रही चिंतन मनन, "ये कैसी है बात? भस्म ओढ़े, भूत संग, कंठ में नाग, बाघम्बर् तन, हे स्वामी, किस हृदय करूँ बिटिया इनकी शरण? " देव योगी हंस पड़े, "माँ न समझो इन्हें साधारण, सृष्टि का विकास इनसे, चेतन सृजन होत इनके कारण। " मैना रानी खड़े खड़े, फिर भी घबराती थी, दूल्हे राजा की ये रूप माया, उन्हें न समझ आती थी। तब शिव ने रूप संवारा, जगमग हुआ गगन, जटाओं में बिखरी चंद्रकला, दमके शक्ति का आभरण, देख शिव की छटा निराली, आया माई मैना का विवेक, "हर हर महादेव, स्वीकार करें यह अभिषेक। " ओट मे खड़ी गौरा, दृश्य देख शर्माती थी, भोले शंकर को गीत सलोने, मन ही मन सुनाती थी, सिंदूर सजा मस्तक पर, गूँज उठी शहनाई, शंकर संग चली गौरा, समूची सृष्टि हर्षायी। - चिन्मय
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