
PABNA(Print & Broadcast News Agency)
February 9, 2025 at 02:51 AM
*दिल्ली चुनाव के नतीजों का विस्तृत विश्लेषण बाद में। फिलहाल समझने लायक कुछ मोटी-मोटी बातें* 👇
2013 में शीला जी की हार का बदला उनके बेटे संदीप दीक्षित ने ले ही लिया। जितना वोट संदीप दीक्षित को मिला करीब-करीब उतने ही वोट से 😎 केजरीवाल जी 😎 हारे हैं।
1. बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच सिर्फ 2.5 से 3 प्रतिशत वोट का का अंतर है। फिर सीटों का अंतर आधे से ज्यादा क्यों है। ये बात समझने के लिए इस चुनाव में कांग्रेस की भूमिका पर गौर करना ज़रूरी है।
2. कांग्रेस पिछले चुनाव में वेंटिलर पर थी। इस बार वेंटिलेटर हटा लेकिन आईसीयू में अब भी है। यह कहा जा रहा था कि कांग्रेस दिल्ली के नतीजों पर उसी स्थिति में असर डाल पाएगी जब कम से कम 10 फीसदी वोट ले। लेकिन सिर्फ साढ़े छह परसेंट वोट लेकर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया।
3. कांग्रेस ने सीधे-सीधे 19 सीटों के नतीजों पर असर डाला है। आम आदमी पार्टी अपनी 14 सीटें कांग्रेस की वजह से हारी है। अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती, राखी बिड़लान, महेंद्र चौधरी और दुर्गेश पाठक जैसे बड़े आप नेता या तो कांग्रेस की वजह से हार चुके हैं या हारने वाले हैं।
4. बीजेपी भी पांच सीटें कांग्रेस की वजह से हारी। इनमें कालकाजी में आतिशी के खिलाफ विधूड़ी की हार भी शामिल है। कस्तूरबा नगर और बादली जैसी सीटों को छोड़कर खुद कांग्रेस ने किसी भी सीट पर बहुत ज्यादा वोट नहीं लिये। लेकिन उसका प्रदर्शन बताता है कि अपनी सुस्ती के बावजूद वोटरों के समूह के बीच पार्टी जिंदा है और उसके लिए खोया जनाधार हासिल करने की संभावनाएं खुली हुई हैं।
5. यह दावा किया जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के राजनीतिक अंत की उल्टी गिनती शुरु हो गई है। 44 प्रतिशत वोट लाने वाली किसी पार्टी के बारे में ऐसा दावा करना बचकाना है। इतना जरूर है कि केजरीवाल का राजयोग खत्म हो चुका है और असली इम्तिहान अब शुरू होनेवाला है। असली चुनौती ये है कि बीजेपी के साम-दाम-दंड-भेद के सामने केजरीवाल अपनी पार्टी का बिखराव किस तरह रोकेंगे।
6. आम आदमी पार्टी से नाराजगी के बावजूद मुसलमानों ने उसे ठीक-ठाक मात्रा में वोट दिया है। मुस्तफाबाद और ओखला जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी के उम्मीदवार को कांग्रेस से तीन गुना ज्यादा वोट मिले हैं। दिल्ली ने बता दिया है कि ओवैसी बिहार में बीजेपी के भरपूर काम आनेवाले हैं।
7. इस चुनाव में कांग्रेस के लिए कई सबक है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दो ऐसे राजनीतिक दल हैं जो किसी भी हिसाब से एक साथ नहीं आ सकते। उनके बीच अधिकतम सहयोग उसी तरह हो सकता है, जिस तरह केरल में लेफ्ट और कांग्रेस के बीच है। केजरीवाल ने हारना पसंद किया लेकिन कांग्रेस से हाथ मिलाकर अपनी जमीन खोने को तैयार नहीं हुए। ये बात कांग्रेस को समझनी पड़ेगी कि विपक्षी एकता को मजबूत करने का ठेका सिर्फ उसका नहीं है। खुद को मजबूत किये बिना इंडिया गठबंधन की मजबूती की बातें बेमानी है।
8. आम आदमी पार्टी जैसे विरोधियों के शीर्ष नेतृत्व में दलित और ओबीसी ढूंढ रहे राहुल गांधी का कनफ्यूजन और बढ़ेगा। इस चुनाव ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जिससे कांग्रेस ये दावा कर सके कि उसकी बहुजन राजनीति को पर्याप्त समर्थन मिल रहा है। गर्वेन्स की अपनी विशेषज्ञता का दावा पीछे छोड़ चुकी कांग्रेस को चुनावी राजनीति को समग्रता से समझना होगा।