GIRISH CHANDRA DWIVEDI 🙏
GIRISH CHANDRA DWIVEDI 🙏
May 14, 2025 at 02:38 PM
स्त्री का पहला गुरूर उसका शरीर होता है, दूसरा गरूर उसका पति होता है और अंतिम गुरूर उसके बच्चे होते है, वह अपने अंतिम गुरूर को पाने के लिए अपने पहले गुरूर को खाक मे मिला देती है, बच्चों के लिए अपनी सुंदर काया को बेडोल बना लेती है और आखरी सांस तक ढाल बनकर उनकी सुरक्षा करती है। इस मामले मे पुरुष उसकी बराबरी नहीं कर सकता। मगर यही अंतिम गुरूर बुढ़ापे मे जब उसे आँखे दिखाता है तब वह टूट जाती है..

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